दो टूक : खूबियों से भरे खड़गे और खाबरी भाजपा की कैसे खड़ी करेंगे खटिया

राजेश श्रीवास्तव


इन दिनों देश और उत्तर प्रदेश में कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव सियासत में गर्मी भर रहा है। लेकिन राहुल गांधी की ना-नुकूर के बाद से शुरू हुई सियासत अशोक गहलौत पर आकर पटाक्षेप हो गयी। अब लगभग यह तय हो गया है कि अगले कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ही होंगे। अपने राजनीतिक जीवन में सिर्फ 2०19 का लोकसभा चुनाव हारने वाले और अब तक 1० बार चुनाव जीत चुके खड़गे की उम्र भले ही 8० बरस की हो। लेकिन वह खांटी कांग्रेसी के रूप में जाने जाते हैं। तमाम कोशिशों के बावजूद कांग्रेस उत्तर भारत से कोंई अपना अध्यक्ष नहीं तलाश कर पायी । जबकि उसको जरूरत हिंदी पट्टी से ही थी। इस नार्थ पट्टी से अगर कोई अध्यक्ष होता तो निश्चित रूप से कांग्रेस को 2०24 में ऊर्जा मिलती । खड़गे को उत्तर प्रदेश, बिहार, गुजरात, राजस्थान में कितने लोग जानते है।

यह इसी से जाना जा सकता है कि खड़गे को ठीक से हिंदी तक नहीं आती। बाबू जगजीवन राम के बाद कांग्रेस दूसरी बार किसी दलित अध्यक्ष को अपनी पार्टी की कमान सौंपने को लगभग तैयार है। बाबू जगजीवन राम 197०-71 में कांग्रेस अध्यक्ष थे। तो अब 2०22 में खड़गे इस भूमिका के लिए लगभग तैयार हैं। हालांकि इसकी पुष्टि चुनाव के बाद होगी। लेकिन जिस तरह के आसार दिख रहे हैं, उससे साफ है कि वही अध्यक्ष होंगे। वहीं उधर उत्तर प्रदेश में लल्लू के बाद से लगभग छह महीने से अधिक समय से खाली चल रही सीट को शनिवार को बृजलाल खाबरी से भर दिया गया। कभी बसपा से पारी शुरू करने वाले खाबरी हमीरपुर, जालौन से आते हैं। धनबली के रूप में ख्यात खाबरी बसपा से कांग्रेस में 2०16 में आये थे। खाबरी भी दलित समाज से आते हैं ।

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इस चुनाव से एक बात और साफ हो गयी है कि अस्तित्व के लिए जूझ रही कांग्रेस भले ही अपना अध्यक्ष का चुनाव परेशानी में लड़ रही है लेकिन इतना तो तय है कि कांग्रेस अभी भी दूसरे दलों के सामने यह कहने का साहस तो कर ही सकती है कि उसके यहां लोकतंत्र अभी जिंदा है। भाजपा में एक चिट्ठी से अध्यक्ष तय हो जाता है, कभी आज तक चुनाव नहीं हुआ। समाजवादी पार्टी दिखावे के लिए बड़ा भारी-भरकम सम्मेलन करती है लेकिन राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए अखिलेश का नाम का ऐलान हो जाता है। लालू की पार्टी के लिए लालू प्रसाद यादव अध्यक्ष का नामांकन दिखावे के लिए कर रहे हैं अन्य कोई नामांकन पत्र खरीदेगा ही नहीं। इसी तरह नीतीश की पार्टी में नीतीश हो जाते हैं। बसपा में मायावती ही अध्यक्ष होंगी, यह भी ब्रम्ह सत्य है। भाजपा कांग्रेस पर परिवारवाद का आरोप चाहे जितने लगाये लेकिन उनके यहां पहली बार नहीं इससे पहले भी कई बार लोकतंत्र दिखायी दे चुका है। 1939 में सुभाष चंद्र बोस और पट्टभि सीतारमैया के बीच अध्यक्ष पद का चुनाव हुआ और बोस जीत गये। 195० में जेबी कृपलानी और पुरुषोत्तम दास टंडन के बीच चुनाव हुआ और टंडन जीते। 1997 में सीताराम केसरी ने शरद पवार और राजेश पायलट को हराकर चुनाव जीता। 2००० में जितेंद्र प्रसाद ने सोनिया गांधी को चुनौती दी लेकिन हार गये।

इससे साफ होता है कि कांग्रेस में जो इतिहास दिखायी देता है वह अन्य किसी पार्टी में अब तक नहीं मिलता है। अमित शाह के कार्यकाल के बाद जेपी नड्डा के लिए कोई चुनाव नहीं हुआ। पार्टी ने जिसको चाहा घोषित कर दिया। खड़गे कांग्रेस में कितने मजबूत हैं यह इससे समझा जा सकता है कि पूरी जी-8 उनके साथ आकर खड़ी हो गयी है, जो हमेशा गांधी परिवार के विरोध में रही। ये नेता उसी समूह के हैं जिन्होंने कभी आलाकमान को चुनौती दी थी। 2०2० में इस समूह के नेताओं ने कांग्र्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखकर संगठन में बदलाव की पैरवी की थी। यही नहीं, नेतृत्व पर भी सवाल खड़े किए थे। थरूर भी उन्हीं नेताओं में थे। थरूर को छोड़ खड़गे के साथ खड़े होना दिखाता है कि थरूर की दावेदारी कितनी कमजोर है। 2० साल बाद यह पहला कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव है जिसमें गांधी परिवार नहीं होगा। गांधी परिवार ने ऐसा करके सीनियर नेताओं के लिए पार्टी का नेतृत्व करने का रास्ता साफ कर दिया है और भाजपा से यह कहने का मौका भी छीन लिया है कि कांग्रेस से गांधी परिवार ही अध्यक्ष होगा।

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हालांकि, वह यह कभी नहीं चाहेगी कि पार्टी का चीफ कोई ऐसा बने जिस पर उसका कंट्रोल नहीं हो। गहलोत के मैदान में उनके हट जाने के बाद फिर किसी लॉयलिस्ट की तलाश थी। खड़गे इस मामले में खरे उतरते हैं। एक बात तो यह है कि वह बहुत वरिष्ठ हैं। दूसरा यह है कि गांधी परिवार के प्रति उनकी वफादारी पर कोई सवाल नहीं खड़े कर सकता है। यह बात थरूर के लिए नहीं कही जा सकती है। वह अपनी धारा के नेता हैं। थरूर उन नेताओं में हैं जो अपनी मर्जी की बात कहते और करते हैं। फिर इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि सामने कौन है। उन्हें काबू में रखा पाना शायद मुश्किल होगा। लेकिन इतनी खूबियों के बावजूद घुटने का आपरेशन कराने के बाद सहारे से सीढ़ी चढèने वाले खड़गे और बसपा से आये खाबरी के सामने भाजपा का मुकाबला करना सबसे बड़ी चुनौती होगी। यह ध्यान रखने की जरूरत है कि उनका मुकाबला भाजपा की उस लीडरशिप से है, जहां पीएम नरेंद्र मोदी और यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ जैसे नेता 18-18 घंटे काम करते हैं। जबकि खड़गे बीपी और हाइपरटेंशन से भी जूझ रहे हैं।

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