महाभारत काल मे इस वन मे पांडवों का हुआ अज्ञातवास
देवी ने दिया यहां अचानक दर्शन
नाविक बना पत्थर की शिला,देवी पिंडी रूपमें
फरेंदा से सात किमी दूर लेहरा माता मंदिर
बलराम कुमार मणि त्रिपाठी
महाराज गंज जनपद के फरेंदा तहसील में कस्बे( तहसील मुख्यालय) से उत्तर दिशा में जंगल हैं जिसे आद्रिवन( अदरौना का जंगल) कहा जाता है।
बताते हैं अदरौना के जंगल मे अज्ञातवास के दौरान पांडवो ने भ्रमण किया। कलियुग की बात है जंगल मे जलाशय था,जिसे पार करने के लिए नौका ही साधन थी। एक नाविक ने अचानक एक दिन एक षोडशी बाला को सरोवर पार करने के लिए मनुहार करते देखा। उसने नाव किनारे लगा कर उस सुंदरी बालिका को नाव मे बिठा ली। पर उसके मन मे कुछ गलत विचार आने लगे तो जलाशय मे गोल गोल नौका घुमाने लगा। देवी उसकी मंशा समझ गई। उन्होंने शाप दिया कि यदि मुझे स्पर्श किया तो पत्थर के होजाओगे। वही हुआ।
देवी का स्पर्श पाते ही वह पत्थर का होगया और देवी भी स्वयं पत्थर की पिंडी होगई । कालांतर में चूंकी लेहरा रेलवे स्टेशन के निकट यह घटना घटी। इसलिये देवी का वही स्वरूप लेहरा माता के रूप मे जाना गया। तबसे देवी की पिंडी की पूजा अर्चना वर्षों से यहां होने लगी। मंदिर के पीछे नाविक की प्रतिमा है। बचपन मे हमलोग यहां दर्शन के लिए साईकिल से और पैदल जाते थे। यहां नवरात्रि मे नौदिन और बासंतीय नवरात्रि मे पंद्रह दिन का मेला लगता है। देवी की सिद्ध पीठ की ख्याति दूर दूर तक है। दर्शन के लिए लोग दूर दूर से आते हैं।मनोकामना पूरी होने पर लोग चढ़ावा चढ़ाते हैं। मुंडन यज्ञोपवीत आदि यहां होते हैं। कालांतर मे श्रद्धालुओ ने मंदिर को भव्य बना दिया।
तपसी बाबा का आश्रम
किसी समय एक महात्मा आकर इसी मंदिर के समीप आकर साधना करने लगे। उनकी धूनी अनवरत जलती रहती थी। उन्होंने यहां सिद्धियां प्राप्त कीं। उनकी धूनी की राख लोग लेजाते और पशुओं को लगाने से उनके रोग खत्म हो जाते। इसकी प्रसिद्धि भी दूर दूर तक हुई। तपसी बाबा तो ब्रह्मलीन होगए। पर अभी भी उनका आश्रम मंदिर के उत्तर कुछ दूरी पर बरकरार हैं।