झारखण्डेय राय पूर्व मंत्री, पूर्व सांसद जिसकी अर्थी भी चंदे से उठी

लखनऊ।  भारतीय राजनीति एवं आजादी तथा राष्ट्रप्रेम में त्याग एवं बलिदान करने वालों की कहानी, उनकी दास्तां अब लोग भूलते जा रहे हैं। मऊ के अमिला ग्रामसभा में राधे राय जी के घर 10 सितम्बर 1914 को झारखण्डेय राय ने जन्म लिया। वह जब मात्र पांच वर्ष के थे तो उन्होंने 13 अप्रैल 1919 को घटित जलियांवाला बाग सामुहिक नरसंहार के बाद रक्त से रंजित मिट्टी जिसे स्वतंत्रता सेनानी अलगू राय शास्त्री लाये थे का अपने गॉव में ही दर्शन करके अपने माथे पर तिलक लगाकर ब्रिटिश साम्राज्यवाद को खत्म करने का संकल्प लिया तो गॉव के लोगों ने उस वाकये को बचपना माना।

“उन्हें मित्रों, परिचितों को चिट्ठियां लिखने का बहुत शौक था। उनकी चिट्ठियों में खास बात यह होती थी कि वह जिस स्थान से चिट्ठी लिखते, उस स्थान-विशेष के नाम का उल्लेख जरूर करते। ईमानदार इतना कि दिल्ली में जब निधन हुआ तो उनके शव को गांव लाने भर के पैसे नहीं थे, और बेटे अशोक को लोगो से चंदा मांग कर उन्हें पैतृक गॉव अमिला लाना पड़ा। शुभचिंतकों और मित्रों ने जब उनके बैंक खातों को खंगाला तो उसमें फूटी कौड़ी तक नहीं थी। यही नहीं जमींदार परिवार में पैदा होने के बावजूद ‘जमीदारी प्रथा’ के उन्मूलन के लिए आंदोलन किया। इस नेता का घर आज भी खंडहर से ज्यादा कुछ भी नहीं है जबकि लगातार चार बार घोसी से विधायक एवं तीन बार सांसद रहे।

सादगी और ईमानदारी का दूसरा नाम ‘झारखंडेय राय’ कहना गलत नहीं होगा। उनका पूरा जीवन ही सादगी भरा था। यहां तक कि अपना कुर्ता-धोती भी वह खुद ही धोते थे, सूखने पर उसे तह करके तकिया के नीचे रख देते थे और एक दिन बाद उसे पहनते थे। उन्होंने लगभग एक दर्जन किताबें लिखी थीं। मन्त्री रहने के दौरान उन्होंने गन्ना किसानों को लाभ दिलाने के लिए पूर्वाचल में चीनी मिलों की स्थापना का प्रयास किया। झारखंडेय राय ने अपने द्वारा लिखी हुई पुस्तक “भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन का एक विश्लेषण” में इस जालिया वाला बाग सामूहिक नरसंहार की मिट्टी से स्वयं के प्रभावित होने का तथ्य स्वीकार किया है।

इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक प्रथम वर्ष की परीक्षा देकर घर वापस आने के दौरान वाराणसी में गिरफ्तार कर लिए गये। उन्होंने 19 अप्रैल 1938 को पिपरीडीह में ट्रेन से जा रहे सरकारी खजाने को लूट लिया। 18 अक्टूबर 1939 को वह किसान सभा कार्यालय पुलिस ने प्रतिबंधित साहित्य रखने के आरोप में पकड़ लिया। इन मामलों के अतिरिक्त ‘गाजीपुर हथियार केस’, और ‘लखनऊ षणयंत्र केस’ में अंग्रेजी सरकार द्वारा उन्हें 29 वर्ष की सजा सुनाई गई। जेल में उन्होंने 21 अक्टूबर 1941 से 32 दिनों तक भूख हड़ताल की। यहीं नहीं आजादी के लड़ाई का यह नायक आजादी के बाद, आजाद भारत में भी गरीबों और मज़लूमों की आवाज उठाने के लिए 18 बार जेल गया। लोगों की मदद करने में वे कोई संकोच नहीं करते थे, उन्होंने कभी भी उसूलों से समझौता नहीं किया। यही कारण है की चौधरी चरण सरकार में भूमिहीनों को भूमि वितरण में उनके विचारों से विभिन्नता होने पर सरकार के मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। 18 मार्च 1987 को यह जननेता भारत माता की गोद में हमेशा हमेशा के लिए चिरनिद्रा में सो गया।

 

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