ठगे से हैं राममंदिर के लिए प्राणोत्सर्ग करने वालों के परिजन

मनोज श्रीवास्तव
मनोज श्रीवास्तव

अयोध्या। लम्बे इंतजार के बाद वह घड़ी आ ही गयी जब एलान किया गया कि अयोध्या में श्रीरामजन्मभूमि पर विराजमान प्रभु रामलला अपने भव्य मंदिर में 22 जनवरी 2024 को सिंहासनारूढ़ हो जायेंगे। सनातनी हिन्दुओं के लिए इससे बड़ी प्रसन्नता की कोई बात हो ही नहीं सकती। लेकिन यहां सवाल भी खड़ा होता है कि आखिर उन वलिदानियों के परिवारों के लिए सरकार और मंदिर निर्माण के लिए लम्बे समय से दुंदुभी बजा रहे संगठन क्या कर रहे है जिन्होंने इस मंदिर निर्माण के यज्ञ में अपने प्राणों की आहुति दी। जिन रामभक्तों ने प्राणोत्सर्ग किया वे तो महाप्रयाण कर गये लेकिन उनके परिवार किन झंझावातों से जूझ रहे हैं, इनका ख्याल करने वाला कौन है। राम मंदिर में घंटे-घड़ियालों की गूंज कराने में जीवन उत्सर्ग करने वाले इन रामभक्तों के परिवारों के प्रति सभी मंदिर समर्थकों का यह अनिवार्य दायित्व है। ऐसे रामभक्तों की कीर्तिगाथा भी राममंदिर निर्माण के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखी जानी चाहिए।

फिलहाल जो जानकारी है उसके मुताबिक मंदिर निर्माण करने वाले राम मंदिर के लिये शहीद हुये कार सेवकों के परिजनों के लिये अभी तक कोई ऐसा कदम नहीं उठाये गये हैं जिससे बलिदान की परंपरा को नई ऊंचाई मिले। सबसे बड़ा बलिदान 30 अक्टूबर और 2 नवंबर 1990 का है जिसे देखने वाले आज भी बताने में हिल जाते हैं। न्यू लुक ने आज उन स्थानों की दशा देखी जहां 2 नवंबर को कारसेवकों का बलिदान हुआ था। 1990 का वह रक्तरंजित अयोध्या को जिसने भी देखा है वह दृश्य शायद ही कोई भूल सकता है। जो नहीं देखे उनका उस खौफनाक मंजर की कहानी सुनकर ही दिल बैठ जाता है। विहिप प्रवक्ता की मानें तो दिगम्बर अखाड़ा में शोक श्रद्धांजलि का कार्यक्रम हुआ, मीडिया वाले आये थे लेकिन उसका कोई प्रेस रिलीज तक जारी नहीं किया गया। शहीद कारसेवक राजेन्द्र धारिकर के भाई से बात हुई तो उन्होंने बताया कि मुझे आज किसी कार्यक्रम की जानकारी नहीं है। उन्होंने बताया कि परिवार का हाल खस्ता है, जब से प्लास्टिक ने अपनी पैठ बनायी तब से बांस का धंधा बंद हो गया।

वैसे भी हम लोगों को कोई पूछने वाला नहीं है। एक अन्य शहीद वासुदेव के परिजन जिस दुकान से जीवन यापन करते थे वह सड़क के विस्तार में टूट गयी। राजेंद्र धरिकार के भाई ने बताया कि हमारे और रमेश शुक्ला के परिजन 30 अकटूबर को शोक श्रद्धांजलि करते हैं, जबकि 2 नवंबर को कोठारी वन्धुओं की शहादत हुई थी। दिगंबर अखाड़े के निकट जिस लाल कोठी के सामने कोठारी वन्धुओं की शहादत हुई थी वहां कोई स्मारक आदि भी नहीं बन पाया है। अयोध्या आंदोलन में इनकी भी शहादत हुई है। राम अचल गुप्ता, विनोद कुमार गुप्ता, महेन्द्रनाथ बहौरी, महाबीर, राम औतार सिंघल, सर्वेश कुमार भी इसी आंदोलन में शहीद हुए थे लेकिन कोई इनका नामलेवा तक नहीं दिखता। नयी पीढ़ी में अयोध्या के ही बहुत सारे लोग इनको नहीं जानते। न्यू लुक ने कोठारी वन्धुओं की बहन पूर्णिमा कोठारी से संपर्क किया तो पता चला वह कोलकाता में हैं। दिसंबर-जनवरी में अयोध्या आयेंगी।

छायाकार व अयोध्या प्रेसक्लब के अध्यक्ष महेंद्र तिवारी ने इस बात पर बहुत नाराजगी व्यक्त की कि शहीदों और उनके परिजनों को विस्मृत किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि मंदिर के लिये शहीद हुये लोगों को यथोचित सम्मान मिल जाता तो अपने धर्म के लिये मर-मिटने का जब्बा रखने वालों को नई ऊर्जा मिलती। हिन्दू समाज अपने बलिदानियों के सम्मान में बहुत सुस्त है। इन्हें जगाना पड़ेगा।

वाराणसी में श्रीरामजन्मभूमि मुक्ति के लिए प्राणों की आहुति देने वाले बलिदानियों की आत्मा की शांति के लिए काशी विश्वनाथ का महारुद्राभिषेक किया गया। 492 वर्ष तक अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि स्थान पर भगवान श्रीराम के भव्य मंदिर बनाने के लिए जिन संतों, गृहस्थों व कारसेवकों ने अपने प्राणों की आहुति दी उनकी मुक्ति के लिए काशी विश्वनाथ मंदिर में देशभर से आए संतों द्वारा 2 नवंबर की शाम को महारुद्राभिषेक किया गया। यह आयोजन अखिल भारतीय संत समिति, अखाड़ा परिषद, श्रीकाशी विद्वत परिषद के सहयोग से गंगा महासभा द्वारा आयोजित किया गया। संस्कृति संसद में भाग लेने पहुंचे 400 महामण्डलेश्वर समेत 1200 समेत संतों ने राममंदिर निर्माण के लिये शहीद हुतात्माओं की शांति के लिये रुद्राभिषेक किया।

गुम न होने पायें बुनियाद के पत्थर

अक्सर ऐसा होता है कि इमारत भव्य दिखायी देती है लेकिन इसका निर्माण में लगे बुनियाद के पत्थरों पर किसी की नजर नहीं जाती। हालांकि इमारत इन्हीं पत्थरों पर टिकी होती है। राममंदिर के साथ भी कुछ ऐसा ही हो रहा है। यह निर्विवाद है कि अगर कारसेवकों ने शहादत न दी होती तो शायद राममंदिर का स्वप्न आज भी पूरा न होता। कोठारी बंधुओं से लेकर अन्य जिन कारसेवकों ने शहादत दी है वे सचमुच राममंदिर की बुनायाद के पत्थर हैं। कम से कम उनके नाम का एक स्मारक वहां अवश्य बनाना चाहिए जिसमें बलिदानी कारसेवकों प्राणोत्सर्ग की कहानी अंकित हो ताकि अन्य भक्तों को भी हमेशा याद रहे कि कितने बलिदानों के बाद इस मंदिर का निर्माण हुआ है। इससे प्रभु में आस्था रखने वालों का उत्साहवर्धन होगा और बलिदानियों के परिवारों को कम से कम सांत्वना तो मिलेगी। उन परिवारों के लिए भी सरकार की ओर से ऐसी व्यवस्था की जानी चाहिए ताकि वे इस बात पर गर्व महसूस कर सकें कि उनके बेटे का बलिदान व्यर्थ नहीं गया।

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