गीता में श्रीकृष्ण ने बताया है धर्म का सही मतलब

जयपुर से राजेंद्र गुप्ता

श्रीमद्भागवत गीता में भगवान कृष्ण के उपदेशों का वर्णन है। गीता के ये उपदेश श्रीकृष्ण ने महाभारत युद्ध के दौरान अर्जुन को दिए थे। गीता में दिए उपदेश आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं और मनुष्य को जीवन जीने की सही राह दिखाते हैं। गीता की बातों को जीवन में अपनाने से व्यक्ति को खूब तरक्की मिलती है। गीता एकमात्र ऐसा ग्रंथ है जो मानव को जीने का ढंग सिखाता है। गीता जीवन में धर्म, कर्म और प्रेम का पाठ पढ़ाती है। श्रीमद्भागवत गीता का ज्ञान मानव जीवन और जीवन के बाद के जीवन, दोनों के लिए उपयोगी माना गया है। गीता संपूर्ण जीवन दर्शन है और इसका अनुसरण करने वाला व्यक्ति सर्वश्रेष्ठ होता है। गीता में श्रीकृष्ण ने धर्म का सही तात्पर्य समझाया है।

गीता में श्रीकृष्ण ने धर्म का सही मतलब बताया है। गीता के अनुसार, गौर से समझो कि तुम्हें जो चाहिए, वो क्या है और उसकी प्राप्ति में पूरा ज्ञान लगा दो, यही धर्म है।

गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं दूसरे के कर्तव्य का पालन करने से भय होता है और स्वधर्म में मरना भी बेहतर होता है। अर्थात हमें दूसरे का अनुसरण या नकल करने की बजाय स्वधर्म को पहचानना चाहिए। दूसरों का अनुसरण करने से मन में भय उत्पन्न होता है। श्रीकृष्ण के अनुसार डर हटाने का एक ही उपाय है और वो है अपना स्वधर्म पहचानना और उस में जीना।

श्रीकृष्ण कहते हैं शरीर नश्वर हैं पर आत्मा अमर है। यह तथ्य जानने पर भी व्यक्ति अपने इस नश्वर शरीर पर घमंड करता है जोकि बेकार है। शरीर पर घमंड करने के बजाय मनुष्य को सत्य स्वीकार करना चाहिए।

आप खुश हैं या दुखी, यह दोनों आपके विचारों पर निर्भर है। अगर आप प्रसन्न रहना चाहते हैं तो आप हर हाल में प्रसन्न ही रहेंगे। अगर आप नकारात्मक विचार लाते हैं तो दुखी ही होंगे। विचार ही हर व्यक्ति का शत्रु और मित्र होता है।

किसी के साथ चलने से न तो कोई खुशी मिलती है और न ही लक्ष्य, इसलिए मनुष्य को सदैव अपने कर्मों पर विश्वास करते हुए अकेले चलते रहना चाहिए।

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