राजा रानी की कहानी के बजाय गांव के साधारण लोगों पर कहानी लिखने वाले मुंशी प्रेमचन्द की वर्तमान के लिए प्रेरणास्रोत हैं। जमींदारों का अन्याय और अत्याचार किस तरह गरीब को व्यथित करता है। कर्ज में डूबा किसान किस तरह वसूली के नाम पर पैदा हुई फसल ही नहीं बैलों से भी हाथ धो बैठता है।
समाज में दबे कुचलो की जिन्दगी क्या है? कैसे वे जीते जी लाश बन चुके हैं। छोटे बच्चों में समझ कितनी है। इन सब बातों को कहानी और उपन्यास के माध्यम से प्रेमचन्द ने उभारा। लोगों को जागरुक करनेवाला आजादी की लड़ाई में लेखक कुछ भूमिका क्या हो? अंग्रेजों के खिलाफ बगावत के सुर इनके साहित्य मैं दिखे तो नौकरी से हाथ धोना पड़ा। शासन सत्ता के खिलाफ लिखने की बहादुरी मुंशी प्रेमचंद में थी। काश अन्याय और अत्याचार के खिलाफ आज भी साहित्यकार मुख्य होते? यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी। आपने ईदगाह,कफ़न,आदि सैकड़ो कहानियां और गोदान,गबन आदि दर्जनों उपन्यास लिखे।
मुंशी प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 को वाराणसी (बनारस) के पास स्थित लमही में हुआ था और उनका नाम धनपत राय रखा गया था। उनके पूर्वज एक बड़े कायस्थ परिवार से आते थे, जिसके पास आठ से नौ बीघा जमीन थी। उनके दादा, गुरु सहाय राय एक पटवारी (Village land record-keeper) थे, और उनके पिता अजायब राय एक पोस्ट ऑफिस क्लर्क थे। इन्हें शिक्षा विभाग में सरकारी नौकरी मिली थी। जहां छद्म नाम प्रेमचंद नाम से लिखते थे। बाद में अंग्रेज अधिकारी ने इन्हें तलब किया। इन्होंने नौकरी छोड़ दी। 8अक्टूबर 1936को इनका निधन होगया।