नई दिल्ली। कृषि एवं किसान कल्याण विभाग आज के युग में बसरा दिए प्राचीन अनाजों के पोषक गुणों के प्रति आकर्षित करने के लिए जागरूकता अभियान चालाएगी। अंतरराष्ट्रीय बाजरा वर्ष 2030 की तैयारियों क्रम में केंद्र सरकार के ऑन लाइन मंच माईगव पर इस सिलसिले में प्रतिस्पर्धाएं और अन्य पहल आयोजित की जा रही है। ऐसी कुछ और पहलों की तैयारी है। इस अभियान के तहत इसी माह पांच तरीख को ‘इंडियाज वेल्थ, मिलेट्स फॉर हेल्थ’ विषय के साथ बाजरा के पौष्टिक गुणों और उसके सेवन से स्वास्थ्य में लाभ को प्रदर्शित करने के उद्देश्य से एक हास्य कथा प्रतियोगिता शुरू की गई है। मंत्रालय का कहना है कि इसे उत्साहजनक प्रतिक्रिया मिली है।
इसी तरह युवाओं को ऐसे अनाजों की बाजार संभावनाओं के प्रति आकर्षित करने के लिए बाजरा और मोटे अनाजों पर एक स्टार्टअप इनोवेशन चैलेंज 10 सितंबर को शुरू किया गया है। यह प्रतिस्पर्धा 31 जनवरी 2023 तक खुली रहेगी। माईगव मंच पर हाल ही में एक पहेली प्रतियोगिता-द माइटी मिलेट्स क्विज भी शुरू की गयी थी। प्रतियोगिता 20 अक्टूबर को समाप्त होगी। इससे संबंधित पृष्ठ को अगस्त के अंत तक करीब 85 हाजार बार देखा गया था और 10,824 प्रविष्टियां प्राप्त हुई थीं। विभाग ने कहा कि बाजरा के महत्व पर एक ऑडियो गीत और वृत्त चित्र फिल्म के लिए एक प्रतियोगिता भी जल्द ही शुरू की जानी है।
बयान में कहा गया है कि अंतरराष्ट्रीय बाजरा वर्ष 2023 के लिए लोगो और नारे तैयार करने की प्रतियोगिता पहले ही आयोजित की जा चुकी है और विजेताओं की घोषणा शीघ्र ही की जाएगी। भारत सरकार (Indian government) जल्द ही अंतर्राष्ट्रीय बाजरा वर्ष 2023 के महत्वपूर्ण अवसर को चिह्नित करने के लिए लोगो और स्लोगन जारी करेगी। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 2023 को अंतरराष्ट्रीय बाजरा वर्ष के रूप में घोषित किया है। इसे संयुक्त राष्ट्र के एक प्रस्ताव द्वारा अपनाया गया था।
जिसके लिए भारत ने नेतृत्व किया और 70 से अधिक देशों ने इसका समर्थन किया। यह दुनिया भर में बाजरा के महत्व, टिकाऊ कृषि में इसकी भूमिका और एक स्मार्ट और सुपर फूड के रूप में इसके लाभों के बारे में जागरूकता पैदा करने में मदद करेगा। भारत 170 लाख टन से अधिक के उत्पादन के साथ बाजरा के लिए वैश्विक केंद्र बनने की ओर अग्रसर है और एशिया में बाजरा उत्पादन में 80 प्रतिशत से अधिक योगदान करता है। बाजार की खेती के प्रमाण सबसे पहले सबूत सिंधु सभ्यता में पाए गए हैं, यह लगभग 131 देशों में उगाया जाता है और एशिया और अफ्रीका में लगभग 60 करोड़ लोगों का पारंपरिक भोजन है। (वार्ता)