दिन भर होता रहा कन्यापूजन ,हवन
व्रतियों ने देवी उपासना से जाग्रत की आत्मशक्ति
असत्य -असंयम पर संकल्प की दृढ़ता का रहा असर
26 सितंबर से शुरु हुए नवरात्र के नौदिन चले व्रत एवं देवी उपासना का हवन के साथ 4 अक्टूबर को समापन हुआ। लोगों ने मंगलवार को प्रात: से २ बजे तक हवन और कन्या पूजन किया फिर आरती कर व्रत पूर्ण किया। बहुत से लोग नौदिन तक व्रत और दुर्गासप्तशती का पाठ तो अधिकांश लोगो ने पहले दिन और अष्टमी को व्रत कर नवमी मे हवन किया। इस तरह नवरात्र व्रत श्रद्धा भक्ति पूर्वक संपन्न हुआ। बहुत सारी जगहों पर देवी जागरण किया गया। इस अवसर पर देवी मंदिरों पर दर्शनार्थियों का मेला लगा रहा और जगह जगह मूर्तियां स्थापित की गईं।
बताते है कि पूर्व काल में असुरों के बढ़ते प्रभाव को देख सभी देवताओं ने पृथ्वी सहित श्रीहरि के पास जाकर दैत्यदलन की प्रार्थना की। उस समय महिषासुर बारंबार आक्रमण कर नाना रूप धारण कर देवताओं को परेशान कर रहा था। तब ब्रह्मा,विष्णु महेश,इंद्र,वरुणादिक सभी देवताओं ने अपनी शक्ति को जाग्रत किया, सभी का तेज पुंजीभूत हो शक्ति पुंज के रूप मे एकत्र हुई ,जो देखते ही देखते परम तेजस्विनी नारी रूप मे प्रकट हुई, जिनका नाम दुर्गा हुआ। फिर सभी ने अपने अपने अस्त्र शस्त्र दिए,देवी पार्वती ने अपना वाहन सिंह दिया। अष्ट भुजाओं मे विविध अस्त्र लिए देवी का प्रकाश देख सबकी आखें चुंधिया गई।
तब देवी की स्तुति कर सभी ने महिषासुर के मर्दन करने की प्रार्थना की । देवी हुंकार पूर्वक उठी और उन्होंने महिषा सुर का मर्दन किया। इसी प्रकार देवी ने विविध स्वरूपों में क्रमश: चंड -मुंड,शुंभ- निशुभ और मधु कैटभ का संहार कर धरती को असुरों से मुक्त किया। देवी के नौ दिन के नौ स्वरूप वंदनीय हुए जिनके नाम शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंद माता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री थे। देवी के नौ बीजाक्षर ‘ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे’ नवार्ण मंत्र कहलाए।
देवी की उपासना के नौदिन अपने विकारों को शांत करने और दैवी गुणों के विकास के लिए उपयुक्त साधन सिद्ध हुए। इसीलिए सदियों से श्रद्धालु उपासक आश्विन शुक्ल पक्ष के देव पक्ष मे यह अनुष्ठान करते आए हैं। शारदीय नवरात्र की इन तिथियों मे निशा साधना करके तांत्रिक क्रियाये भी संपन्न की जाती है। मंत्र,यंत्र और तंत्र साधकों के लिए यह उपयुक्त अवसर माना जाता है, जिसमे सद्य: सिद्धियां अर्जित होती हैं। नौ दिन के व्रती हवन कन्या पूजन के बाद उपयुक्त समय मे पारण करेंगे।