दिवाली पर होती है कुत्तों की खास पूजा

राजेश जायसवाल

भैरहवां। सभी देशों की अपने तीज त्यौहार और परंपराएं होती है। नेपाल एक ऐसा राष्ट्र है जहां के अधिकांश तीज त्यौहार और परंपराएं भारत से मेल खाती हैं। फिर कुछ ऐसे पर्व व परंपराएं हैं जो शायद केवल नेपाल में ही मनाए जाते हों। इसी में एक परंपरा है कुकुर पूजा। दिवाली के एक दिन पहले और दिवाली के एक दिन बाद तक नेपाल के प्रायः सभी हिस्सों में कुत्तों की पूजा पूरे विधि विधान के साथ होती है। बिल्कुल अनोखे ढंग से मनाए जा रहे इस परंपरा में केवल पालतू कुत्तों की ही पूजा नहीं होती, सड़कों पर घूमने वाले आवारा कुत्तों की भी पूजा होती है। मान्यता है कि पालतू कुत्तों की अपेक्षा आवारा कुत्तों की पूजा अधिक फलदाई होता है। कुत्तों को ज्यादातर शहरी इलाकों में पाला जाता है। इसमें भी ज्यादा तर लोग अपने शौक के लिए कुत्ते पालते हैं। हालांकि इस तरह से रखे जाने वाले कुत्तों की अपेक्षा ग्रामीण इलाकों में जो कुत्ते पाले जाते हैं वे ज्यादा क्रिया शील वह सचेत होते हैं।

इस तरह के कुत्ते स्वामी भक्त ज्यादा होते हैं। नेपाल में पहाड़ी लोगों की दिनचर्या ज्यादा तर पहाड़ और जंगलों में बीती है। उनके साथ एक कुत्ता जरूर होता है जो कदम कदम पर उनकी रक्षा को तत्पर रहता है। ये कुत्ते उनके पशुओं की भी रक्षा करते हैं। अन्नपूर्णा ग्रामीण नगर पालिका-5 के भेड़ प्रजनक युवा प्रकाश पुन ने बताया कि जानवरों की सुरक्षा के लिए कुत्तों को रखा जाता है। कुत्ते जंगली जानवरों के हमलों का विरोध करने और पशुओं की रक्षा करने में बहुत मदद करते हैं। पशुपालकों को चूंकि अधिकांश समय जंगल में बिताना पड़ता है इसलिए कुत्ते को साथ में रखा जाता है। कुत्ते में सुनने और सूंघने की शक्ति अधिक होती है, इसलिए कुत्ते को चरवाहों और भेड़ बकरियों की सुरक्षा के लिए द्वारपाल के रूप में माना जाता है। धौलागिरी ग्रामीण नगर पालिका-5 मल्कबांग के भेड़ पालक हिम बहादुर चांट्याल ने कहा कि चूंकि चरागाहों के बीच की दूरी चराई क्षेत्र के लिए दूर रखी गई है, इसलिए पशु शेड की सुरक्षा कुत्ते पर निर्भर करती है।

उन्होंने कहा कि बाघ, तेंदुआ और भालू जैसे हिंसक जानवरों के हमलों से भेड़ और बकरियों को होने वाले नुकसान को कम करने में कुत्ते महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। कुत्ते जंगली जानवरों की आवाज़ और संकेतों को जल्दी से समझ जाते हैं, वे जोर से भौंकते हुए जंगल के हिंसक जानवरों को दूर भगाने की कोशिश करते हैं और तब तक भौंकते हैं जब तक पशुपालक मौके पर आ न जाय। पिछले 60 वर्षों से भेड़ पालन में सक्रिय 78 वर्षीय लालवीर तिलिजा ने कहा कि चरागाह क्षेत्र में भी कुत्ते भेड़-बकरियों को खतरनाक जगहों पर जाने से रोकते हैं और भेड़-बकरियों को लाने में मदद करते हैं। कुत्तों की स्वामी भक्ति से अभिभूत नेपाल के पशुपालकों का कहना है कि दिवाली पर्व के अवसर पर कुत्ते की पूजा करने से उनकी विश्वसनीयता और बढ़ जाता है। यमपंचक या दिवाली के त्योहार कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी के दिन, कुत्तों को खाने के लिए मिठाई दी जाती है और उनकी विधिवत पूजा की जाती है।

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