सरकार भ्रम न पैदा करे, वस्तुस्थिति जनता के सामने रखे : सरयू राय

  • तीन सारंडा वर्किंग प्लान्स बने हैं, उनका अध्ययन क्यों नहीं करती सरकार

जमशेदपुर। जमशेदपुर पश्चिमी के विधायक सरयू राय ने दो टूक कहा है कि सारंडा के संबंध में झारखंड सरकार को स्पष्ट प्रतिवेदन जनता के सामने रखना चाहिए। भ्रम की स्थिति पैदा नहीं होनी चाहिए। सारंडा सघन वन क्षेत्र में लौह अयस्क खनन के साथ ही पर्यावरण, प्राकृतिक संसाधनों, वन्य जीवों, जैव विविधताओं आदि का संरक्षण करने को प्राथमिकता देने की बात होनी चाहिए। उन्होंने आरोप लगाया कि राज्य सरकार इस बारे में भ्रम की स्थिति में है। राज्य सरकार को सरकार के भीतर वन, खान, उद्योग, वित्त विभागों के भीतर व्याप्त विरोधाभास को दूर करना चाहिए। यहां जारी एक बयान में सरयू राय ने कहा कि सारंडा में लौह अयस्क का खनन 1909 से हो रहा है। सारंडा के बारे में वन विभाग ने अबतक तीन महत्वपूर्ण वर्किंग प्लान तैयार किया  है। पहला वर्किंग प्लान 1936 से 1956 तक के लिए एसएफ मुनी का बनाया हुआ है। दूसरा वर्किंग प्लान 1956 से 1976 तक चला, जिसे जेएन सिन्हा ने बनाया था। तीसरा वर्किंग प्लान 1976 से लेकर 1996 तक चला, जिसे राजहंस ने बनाया था। सरकार को चाहिए कि तीनों वर्किंग प्लान का अध्ययन करे और यह भी बताए कि 1996 के बाद सारंडा के लिए कोई वर्किंग प्लान राज्य सरकार ने क्यों नहीं बनाया? इन तीनों वर्किंग प्लान में विस्तार से सारंडा में वन भूमि के संरक्षण और खनन गतिविधियों के बारे में विस्तृत ब्यौरा है।

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सारंडा के संदर्भ में निम्नांकित बिंदुओं पर मुख्य रूप से विचार किया जाना चाहिए,

पहला : सारंडा सघन वन क्षेत्र में मौजूद साल का पेड़ का महत्व स्टील से कम नहीं है। एक कहावत है साल के बारे में 100 साल खड़ा, 100 साल पड़ा, फिर भी जौ बराबर भी नहीं सड़ा।

दूसरा : 2003 में भारत सरकार के डीजी फॉरेस्ट ने सभी राज्यों को वनों के संरक्षण के बारे में पत्र लिखा। उसके आधार पर झारखंड सरकार के वन एवं पर्यावरण विभाग ने तीन-चार वर्षों तक अध्ययन किया। अध्ययन के बाद जब इस राज्य में झारखंड मुक्ति मोर्चा समर्थित मधु कोड़ा की सरकार थी, उस समय के वन मंत्री सुधीर महतो ने सरकार के सामने सारंडा में अभग्न क्षेत्रों को घोषित करने का प्रस्ताव भेजा। अभग्न क्षेत्र का अर्थ है कि इनमें कोई भी ऐसी गतिविधि नहीं होगी, जिससे वन को नुकसान हो। सारंडा का कुल क्षेत्रफल करीब-करीब 851 वर्ग किलोमीटर है। इसमें से सुधीर महतो के नेतृत्व में 630 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को अभग्न क्षेत्र घोषित करने का प्रस्ताव सरकार को 2009 में भेजा गया। सरकार ने आज तक उस प्रस्ताव को न तो नकारा और ना ही स्वीकार किया। इसके पीछे का क्या कारण है?

तीसरा : जब मधु कोड़ा मुख्यमंत्री थे तो उस समय इतने माइनिंग लीज के आवेदनों को राज्य सरकार ने स्वीकार किया कि सभी का क्षेत्रफल अगर जोड़ दें तो यह सारंडा के कुल क्षेत्रफल से अधिक हो जाता था। उन्होंने कहा कि मैंने तभी यह मामला उठाया था, जिसमें अवैध खनन भी था।

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चौथा : भारत सरकार ने 2010 में रिटायर्ड जस्टिस एम बी शाह के नेतृत्व में एक कमेटी बनाई। इस कमेटी ने अपने प्रतिवेदन में झारखंड में अवैध खनन के बारे में और वनों के संरक्षण के बारे में विस्तार से बताया।

पाँच : तदुपरांत 2011 में भारत सरकार के निर्देश पर झारखण्ड सरकार ने इंटीग्रेटेड वाइल्डलाइफ मैनेजमेंट प्लान बनाने के लिए एक समिति बनाई। उस समिति ने साल भर के बाद रिपोर्ट दी। इस समिति की रिपोर्ट पर भी कोई कार्रवाई नहीं हुई। इसमें लौह अयस्क खनन के संदर्भ में वन्यजीवों के संरक्षण और वनों के संरक्षण का विस्तृत उल्लेख है।

छठा : इसके बाद भारत सरकार ने 2014 में सारंडा का कैरिंग कैपेसिटी के बारे में अध्ययन के लिए एक बहुआयामी विशेषज्ञों का समूह बनाया। इस समूह ने सारंडा वन क्षेत्र में खनन एवं अन्य आर्थिक गतिविधियों का अध्ययन किया कि ऐसी कितनी आर्थिक गतिविधियों का बोझ सारंडा बर्दाश्त कर पाएगा। इस प्रतिवेदन पर भी सरकार चुप रही। कुछ नहीं किया।

सातवाँ: इसके बाद भारत सरकार ने एक और कमेटी माइनिंग प्लान फॉर सस्टेनेबुल माइनिंग के लिए बनाया।

इस समिति ने रिपोर्ट दिया कि सारंडा में इस तरह से माइनिंग हो कि वन एवं वन्य जीवों का संरक्षण भी हो। इसने सारंडा के नक़्शे पर माइनिंग ज़ोन एवं नो माइनिंग ज़ोन चिन्हित किया। इन सभी उच्च स्तरीय समितियों के प्रतिवेदनों का सरकार अध्ययन करे और तब निष्कर्ष पर पहुंचे। सरयू राय ने कहा कि अब तक सारंडा में जितने क्षेत्रों में लौह अयस्क खनन हुआ है, उन सभी को माइनिंग ज़ोन में रखा गया है। यहां माइनिंग पर कोई प्रतिबंध नहीं है। प्रतिवर्ष औसतन 25 मिलियन टन लौह अयस्क का खनन यहां होते रहा है। इस तरह अगले 50 वर्षों तक के लिए यहां पर्याप्त लौह अयस्क भंडार है। उल्लेखनीय है कि झारखंड सरकार के खान विभाग के पास लौह अयस्क खनन क्षेत्र का जी-2 आँकड़ा नहीं है। ऐसी स्थिति में निवेशक यहां खनन के लिए आने के पहले सौ बार सोचेंगे। लौह अयस्क खनन का सारंडा वन क्षेत्र पर क्या प्रभाव पड़ा है, खनन करनेवालों ने सरकार के नियमों का कितना पालन किया और कितना उल्लंघन किया, इसके बारे में सरकार को एक श्वेत पत्र जारी करना चाहिए।

सरयू राय ने आरोप लगाया कि सारंडा में सर्वाधिक लौह अयस्क का खनन लीज भारत सरकार की स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लमिटेड (सेल) के पास है। यह सारंडा में लौह अयस्क खनन करने वाली सबसे बड़ी माइनिंग कंपनी है। यह कंपनी भी सारंडा सैंक्चुअरी के विरोध में सुप्रीम कोर्ट गई है जिसपर सुनवाई चल रही है। जितना अत्याचार सेल ने  सारंडा पर माइनिंग के दौरान किया है वह माफी के लायक नहीं है। इसने लौह अयस्क का ट्रांसपोर्टेशन कन्वेयर बेल्ट के माध्यम से करने का वादा किया पर आज तक बेल्ट के माध्यम से एक फीट भी ट्रांसपोर्टेशन का काम नहीं किया गया। उल्टे चिंडिया से मनोहरपुर रेलवे स्टेशन तक का जो वन पथ है, उस बंद पथ को बिना पर्यावरण स्वीकृति लिए सेल ने चौड़ा कर दिया है और यातायात का मुख्य लिए कॉरिडोर दिया है। इसके कारण वनों को, वन्य जीवों को और वहां के लोगों को भारी नुकसान हुआ है। सरयू राय ने बताया कि झारखंड में दो बड़ी नदियां हैं। कारो और कोयना। दोनों ही नदियां लौह अयस्क खनन से बुरी तरह प्रदूषित हो चुकी हैं। नदियों का पानी बिल्कुल लाल हो गया, जब सारंडा में उग्रवादी गतिविधियां प्रबल थीं तो एक सवाल उठ रहा था कि लाल सलाम ज्यादा खतरनाक है या लाल पानी? सभी मानते थे कि लाल पानी ज्यादा खतरनाक है। लोग इसका इस्तेमाल करते थे, पशु-पक्षी इस्तेमाल करते थे। यह अब प्रदूषित हो गया है।

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सरयू राय ने कहाः अभी सवाल यह है कि पूरा सारंडा रिजर्व फॉरेस्ट है। रिजर्व फॉरेस्ट में सैंक्चुअरी नहीं घोषित होगी तो भी यहां जो माइनिंग होगी, उस पर भारत सरकार के सारे नियम कानून लागू होंगे। एनवायरमेंट क्लीयरेंस लेना होगा, फॉरेस्ट क्लीयरेंस लेना होगा, फॉरेस्ट एडवायजरी कमेटी की अनुशंसा लेनी होगी, पर्यावरण, वन मंत्रालय का आदेश लेना होगा। सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दाखिल सारंडा सैंक्चुअरी प्लान में स्पष्ट उल्लेख है कि स्थानीय निवासी के सभी वनाधिकार जस का तस रहेंगे। यहाँ वन्यजीव संरक्षण अधिनियम की कंडिका 26ए का उल्लेख प्रासंगिक होगा जिसमें कहा गया हैं कि आवश्यक होने पर नेशनल बोर्ड की अनुमति से सैंक्चुअरी के बाउंड्री में परिवर्तन किया जा सकता है। फिर सैंक्चुअरी बनने के प्रस्ताव पर सरकार द्वारा हाय तौबा मचाने का कारण क्या है? देश के 4-5 बड़े माइंस होल्डर हैं, जिनका सारंडा में लौह अयस्क खनन लीज लेने का आवेदन राज्य सरकार ने आज से 15 साल पहले भारत सरकार को भेजा है। उसमें जेएसडब्ल्यू है, जेएसपीएल है, मित्तल उद्योग है, टाटा स्टील है, इलेक्ट्रो स्टील है। सारे लोगों का जिस क्षेत्र में आवेदन है, उसके बारे में सरकार को स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए कि क्यों इन्हें एनजीटी से खनन स्वीकृति क्यों नहीं मिल पा रही है। सरयू राय ने यह भी कहा कि सेंक्चुअरी को विवाद में लाने के बदले में सरकार को अपने गिरेबान में झांकना चाहिए। वह और उनके जैसे तमाम लोग इस मत के हैं कि सस्टेनेबुल माइनिंग होनी चाहिए। सस्टेनेबुल माइनिंग डेवलपमेंट प्लान बन गया है। उसमें सविस्तार लिखा गया है कि कैसे सस्टेनेबुल माइनिंग होगी। इसके बारे में सरकार मौन क्यों है।

सरयू राय ने कहा है कि 2017 में भारत की सरकार ने माइंस एंड मिनरल्स डेवलपमेंट रेगुलेशन में संशोधन किया। उस संशोधन के आधार पर जो ऐसी खदानें थी, जिनका लीज था, क्योंकि वह व्यापार करते हैं।उनका खनन लीज मार्च 31 मार्च 2020 को समाप्त हो गया। जिनकी अपनी फैक्ट्री है, जैसे टाटा स्टील सेल आदि, इनका भी खनन लीज अब 31 मार्च 2030 को समाप्त हो जाएगा। इसके बाद सारी खदानों का लीज ऑक्शन के आधार पर होगा। अब जिनका लीज 31 मार्च 2020 को समाप्त हो गया, पड़ोस के उड़ीसा में 1 साल के भीतर सभी लीजों का  ऑक्शन के माध्यम से बंदोबस्त कर दिया गया। झारखंड सरकार ने आज तक बंदोबस्ती की दिशा में कदम भी नहीं उठाया। खदानों में खनन करके जो लौह अयस्क पड़ा हुआ है, उस लौह अयस्क को बेचने के बारे में भी कोई कदम नहीं उठाया है। अगर लौह-अयस्क को बेचा जाए तो करीब 300 करोड़ रुपए सरकार को मिलेंगे। उन्होंने विधानसभा में कई सवाल उठाए कि सरकार लौह-अयस्क को क्यों नहीं बेचती। इस पर सरकार गंभीर नहीं है। भविष्य में सुप्रीम कोर्ट के सेंक्चुरी घोषित करने पर सरकार पर क्या प्रभाव पड़ेगा इसके बारे में सरकार है हाय-तौबा मचा रही है। आज भी सरकार अगर चाहती है कि सारंडा में सस्टेनेबुल माइनिंग हो तो जो इसके बारे में माइनिंग प्लान बनानेवालों ने अनुशंसा की है, उस पर सरकार अध्ययन करे और स्पष्ट रुख अख्तियार करे।

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