- आखिर जीवन में क्यों जरूरत पड़ी शक्ति के साधना की, ब्रह्म, विष्णु, शिव को छोड़ शक्ति क्यों?
बलराम कुमार मणि त्रिपाठी
नवरात्र के नौदिनों मे न केवल हम ब्रह्माण्ड की वरन् अपने भीतर की सुषुप्त शक्तियों को जगाते हैं। क्योंकि यथा पिण्डे तथा ब्रह्माण्डे उपासना हमारे बाहर और भीतर की सभी सोई शक्तियों को जगाती हैं। भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी कौ करवट बदलने के साथ श्रीहरि के योगनिद्रा त्यागने की प्रक्रिया शुरु होजाती है। इस तरह सात्विक भाव के स्पंदन के साथ धरती से ऊपर के लोको मे रहने वाले दिव्यात्माओंं मे भी स्फुरणा शुरु होजाती है।पितृपक्ष मे पितृगणों की उपासना,फिर देव पक्ष मे स्वर्ग के देवता और उनकी शक्तियो का जागरण का उत्सव और उनके स्तवन के साथ हम नौदुर्गा का स्वागत करते है।
- शक्ति उपासना क्यों?
- अखिल ब्रह्माण्ड में शक्ति का है स्पंदन
- नवरात्र श्रीहरि के सात्विक भाव का उदय
- कण कण में छिपी हैं अलौकिक शक्तियां
- मानव के शरीर सा है ब्रह्माण्ड
- चौदह लोक समाया है हमारे भीतर
- ब्रह्मा, शिव व श्रीहरि की भूमिका
- शिव शक्तिमयं जगत
फिर कुबेर,धन्वंतरि,हनुमान और महालक्ष्मी को कार्तिक कृष्ण पक्ष मे और अन्नकूट, यम – यमुना के मिलन का उत्सव और सूर्य लेव की उपासना का छठ पर्व शुरु होता है। तत्पश्चात देवोत्थान एकादशी मे श्रीहरि का जागरण होता है। व्रत दान पुण्य के अवसर उपस्थित होते हैं। इस तरह भूलोक से, महलोक,जन लोक,तप लोक और सत्यलोक तक सभी प्रकाश मान लोक चैतन्य होजाते हैं। श्रीहरि ब्रह्माण्ड के परिपालन की पूर्ण जिम्मेदारी उठा लेते है। शिव-ब्रह्मादि सभी की सक्रियता से त्रिभुवन मे परमानंद की लहरे उठने लगती है। पौष मास के बाद माघ मे मकरगत रवि से उत्तरायण देवताओ का छ: माह का दिन शुरु होजाता है। इस प्रकार सभी शुभ कार्य शुरु होजाते हैं।
मानव शरीर मे भी हैं चौदह लोक
साधक के मूलाधार से सहस्रार तक सभी सात चक्र भू’,भुव:स्व:,मह,जन,तप और सत्य लोककी तरह है। जिनके जाग्रत होने पर श्रीहरि के मिलन का आनंद मिलने लग जाता है। जघन प्रदेश से नीचे षद तल तक सात लोक अंधलोक माने जाते है,जिन्हे क्रमश: अतल, वितल, सुतल,तलातल,रसातल,यहातल और पाताल लोक कहते हैं। ये प्रकाश मय लोको को जीवित जाग्रत और स्पंदित कर समस्त कार्यो को संपादित करने ये मददगार होते है।
