जब बैलों के खुर खेतों में पड़ेंगे तब मानी जाएगी बुआई

हेमंत कश्यप

जगदलपुर। भले ही आज बस्तर के गांव-गांव में ट्रैक्टर पहुंच गया है और बस्तरिया भी आधुनिक खेती करने लगा है। इन सबके बावजूद जब तक यहां का किसान हल में बैल जोत कर नांगर नहीं चला लेता, तब तक धान बुआई अधूरी ही मानी जाती है। पशुधन को सम्मान की यह सार्थक पारंपरिक आज भी बस्तर में निभाई जा रही है। दुनिया के लोगों का पेट भरने वाला अन्नदाता अर्थात किसान आज भी लोगों की फिक्र करता है। ज्ञात हो कि पूरे छत्तीसगढ़ में धान की सबसे पहले धान की बोनी बस्तर संभाग के कटे कल्याण क्षेत्र के किसान करते हैं।

धनहा बीज की पूजा प्रथम

बस्तर के किसान धान बोनी से पहले माटी तिहार या बीज पंडुम मनाते हैं। आमतौर पर यह त्यौहार वैशाख माह के उजले पक्ष मतलब पंडरी बुधवार के दिन मनाया जाता है तथा लक्खिमवार (गुरुवार) को अन्नकुंवारी (बिजहा धान) की पूजा होती है। पूजा पश्चात किसान इस बीज को घर ले जाते हैं और अक्ती के दिन धनहा बीज में मिला कर खेतों में बोनी करते हैं।

आम लगाओ अमर हो जाओ

अक्ती तिहार के दिन वनांचल के लोग मुख्य रूप से दो रस्म पूरी करते हैं। पहला- सैंकड़ों वर्षों से आम रोपते आए अपने पूर्वजों के नाम पर पांच से ग्यारह दोने में आम की फांकियां, गुड़ पानी और चावल रख बहते हुए जल में विसर्जित करते हैं। जिस व्यक्ति को अपने जितने पूर्वजों का नाम मालूम होता है। वह उतने ही दोने रख तर्पण करने की परंपरा है। ऐसे लोगों को पांच दोनिया, सात दोनिया, ग्यारह दोनिया कहा जाता है। यह रस्म मुख्य पूर्वजों का श्राद्ध तथा आम लगाकर अमर हो जाने वाले अपने पूर्वजों कोई याद करने का पर्व है। इसलिए इसे आमा तिहार भी कहते हैं।

मोर चलव रे बईला नांगर के माटी तिहार या बीज पंडुम के दिन किसान दोनी में जो धान बीज देवगुडी से घर लाता है। उसे ही अक्ती के दिन घर पर रखे धनहा बीज में मिलकर परंपरानुसार बोता पद्धति से बोनी शुरू करता है। किसान कितना भी साधन संपन्न क्यों न हो। अक्ती के दिन हल के साथ बैलों को खेतों में उतारना अनिवार्य मानता है। जब तक खेतों में बोनी किए धान पर बैलों के खुर नहीं पड़ते, तब तक लक्ष्मी का पदार्पण नहीं माना जाता।

भू देवी का गर्भ धारण

बस्तर में अक्ती के दिन धान बोनी को धरती माता या भू देवी का गर्भधारण काल माना जाता है इसलिए निर्धारित स्थल पर गांव भर के लोग एकत्र होते हैं। जमीन में कीचड़ कर तथा उसमे धान डाल पैरों से रौंदते हैं। इस रस्म को धरती माता के गर्भधारण का उत्तम समय माना जाता है, इसलिए भगवान भरोसे किसानी करने वाले बस्तर के लाखों किसान अक्ती तिहार को बेहद खास मानते हैं।

सामूहिक भोज के बाद शपथ

अक्ती तिहार के दिन ही विभिन्न गांवों में आमा तिहार मनाया जाता है। आम की फांकियां और दोना पत्तल बनाने का काम महिलाएं करतीं हैं। परंपरानुसार पूजा तर्पण के बाद सामूहिक भोज आयोजित किया जाता है। इसी दिन समाज प्रमुखों की उपस्थिति में आम के नए पौधे रोपने की शपथ भी ग्रामीण लेते हैं।

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