कविता : योगी होजा

डॉ ऋषि कुमार/मणि त्रिपाठी
डॉ ऋषि कुमार/मणि त्रिपाठी

कहा श्रीकृष्ण ने अर्जुन से,
योगी होजा।
चौंक पड़े वार्ष्णेय,योगी और मैं?
अपने ही बहनोई को बना रहे योगी??
हां अर्जुन!

होगी दुख से निवृत्ति।
नहीं पडेगा दुख सुख का असर।
नहीं बंधेगा कर्म बंधन में।
मिलेगा सत्य,चेतन और आनंद।
जानेगा दुनियां का सच ।

न होगा तनाव और न होगी कर्मफलासक्ति।।
करेगा कर्म ,फिर भी न होगा अहंकार।
दूर होंगे सब विकार।।
बोला अर्जुन- पहनना होगा भगवा?
मुंड़ाना योगा सिर??
रहना होगा जंगल में?
फाड़ने होंगे कान,पहनना होगा कुंडल??
नहीं रे!

ऐसा कुछ नहीं।
सभी के लिए है जरुरी।
आसन से बनेगा स्वस्थ,
यम -नियम से दूर होगी वासना।
प्राणायाम से जीतेगा मन।
होगी आंतरिक उपासना।।
भटकते मन को करेगा वश में।
मन को बुद्धि में,
बुद्धि को आत्मा में।

आत्मा से परमात्मा में
होगा प्रवेश।
बनेगी सम्यक अवधारणा।
मन का होगा निरसन।
मिलेंगे सच्चिदानंद घन।।
रहेगा सदा तेरा,
आनंद मय जीवन।।
यही है सहज साधना,
मानव जीवन का लक्ष्य,
सहज योगी होजाना।

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