अक्षय तृतीया पौराणिक महात्म्य एवं शीघ्र विवाह और धन प्राप्ति के लिए शुभ उपाय…

डॉ उमाशंकर मिश्रा


हिन्दुओ के प्रमुख त्योहार में से एक अक्षय तृतीया आज-22 अप्रैल शनिवार के दिन मनाई जाएगी। जानिए इस दिन विशेष कुछ महत्वपुर्ण जानकारी। वैशाख शुक्ल तृतीया को अक्षयतृतीया कहते हैं,  यह सनातन धर्मियों का प्रधान त्यौहार है, इस दिन दिये हुए दान और किये हुए स्त्रान, होम, जप आदि सभी कर्मोंका फल अनन्त होता है-सभी अक्षय (जिसका क्षय या नाश ना हो) हो जाते हैं, इसी से इसका नाम अक्षय हुआ है।

अक्षय तृतीया अभिजीत मुहुर्त

स्वयंसिद्ध साढेतीन मुहूर्त के रुप में अक्षय तृतीया का बहुत अधिक महत्व है। धर्म शास्त्रों में इस पुण्य शुभ पर्व की कथाओं के बारे में बहुत कुछ विस्तार पूर्वक कहा गया है. इनके अनुसार यह दिन सौभाग्य और संपन्नता का सूचक होता है. दशहरा, धनतेरस, देवउठान एकादशी की तरह अक्षय तृतीया को अभिजीत, अबूझ मुहुर्त या सर्वसिद्धि मुहूर्त भी कहा जाता है। क्योंकि इस दिन किसी भी शुभ कार्य करने हेतु पंचांग देखने की आवश्यकता नहीं पड़ती। अर्थात इस दिन किसी भी शुभ काम को करने के लिए आपको मुहूर्त निकलवाने की आवश्यकता  नहीं होती। अक्षय अर्थात कभी कम ना होना वाला इसलिए मान्यता अनुसार इस दिन किए गए कार्यों में शुभता प्राप्त होती है। भविष्य में उसके शुभ परिणाम प्राप्त होते हैं।

इस दिन बिना पंचांग या शुभ मुहूर्त देखे आप हर प्रकार के मांगलिक कार्य जैसे विवाह, सगाई, गृह प्रवेश, वस्त्र आभूषण आदि की खरीदारी, जमीन या वाहन खरीदना आदि को कर सकते है। पुराणों में इस दिन पितरों का तर्पण, पिंडदान या अन्य किसी भी तरह का दान अक्षय फल प्रदान करता है। इस दिन गंगा में स्नान करने से सभी पाप नष्ट हो जाते है। इतना ही नहीं इस दिन किये जाने वाला जप, तप, हवन, दान और पुण्य कार्य भी अक्षय हो जाते है। आज के दिन सूर्य और चंद्रमा दोनों उच्च राशि मे होते है।अतः मन और आत्मा दोनों से बलवान रहते है,तो आज आप जो भी कार्य करते है वो मन और आत्मा से जुड़ा रहता है ऐसे में आज का किया पूजा पाठ और दान पुण्य बहुत महत्वपूर्ण और प्रभावी होते है।

अक्षय तृतीया पर बन रहे हैं सात अद्भुत योग

इसी तिथि को नर- नारायण, परशुराम और हयग्रीव-अवतार हुए थे, इसलिये इस दिन इनका जन्मोत्सव भी मनाया जाता है तथा इसी दिन त्रेतायुग भी आरम्भ हुआ था, अतएव इसे मध्याह्न व्यापिनी ग्रहण करना चाहिये, परंतु परशुरामजी प्रदोष काल में प्रकट हुए थे; इसलिये यदि द्वितीया को मध्याह्न से पहले तृतीया आ जाये तो उस दिन अक्षयतृत्तीया, नर-नारायण जन्मोत्सव, परशुराम जन्मोत्सव और हयग्रीव जन्मोत्सव सब सम्पन्न की जा सकती हैं और यदि द्वितीया अधिक हो तो परशुराम-जन्मोत्सव दूसरे दिन होता है। यदि इस दिन गौरीव्रत भी हो तो ‘ गौरी विनायकोपेता ‘ के अनुसार गौरीपुत्र गणेश की तिथि चतुर्थी का सहयोग अधिक शुभ होता है। अक्षयतृत्तीया बड़ी पवित्र और महान् फल देने वाली तिथि है,  इसलिये इस दिन सफलता की आशा से व्रतोत्सवादि के अतिरिक्त वस्त्र, शस्त्र और आभूषणादि बनवाये अथवा धारण किये जाते है तथा नवीन स्थान, संस्था एवं समाज वर्ष की तेजी-मंदी जानने के लिये इस दिन सब प्रकार के अन्न, वस्त्र आदि व्यावहारिक वस्तुओं और व्यक्तिविशेषों के नामों को तौलकर एक सुपूजित स्थान में रखते हैं और दूसरे दिन फिर तौलवर उनकी न्यूनाधिकता से भविष्य का शुभाशुभ मालूम करते हैं, अक्षयतृत्तीया में तृत्तीया तिथि, सोमवार और रोहिणी नक्षत्र ये तीनों हों तो बहुत श्रेष्ठ माना जाता है, किसान लोग उस दिन चन्द्रमाके अस्त होते समय रोहिणी का आगे जाना अच्छा और पीछे रहे जाना बुरा मानते हैं!

स्त्रात्वा हुत्वा च दत्त्वा च जप्त्वानन्तफलं लभेत् !!

यत्किञ्चिद् दीयते दानं स्वल्पं वा यदि वा बहु !

तत् सर्वमक्षयं यस्मात् तेनेयमक्षया स्मृता !

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