चार साल पहले हत्या करने की बनी थी योजना
मुकदमे की कापी आने पर सच आया सामने
प्रयागराज में हुई घटना का मामला
ए अहमद सौदागर
लखनऊ। आम आदमी की बात ही क्या की जाए जबकि जनप्रतिनिधि भी सुरक्षित नहीं हैं। प्रयागराज जिले में अधिवक्ता व भाजपा नेता उमेश पाल की हत्या के बाद में अपराध की दुनिया में तरह – तरह के सवाल उछलने लगे हैं। कोई इसे सियासी बिसात पर शह व मात का खेल बता रहा है तो कोई इसे करोड़ों की जमीन की रार जोड़ कर देख रहा है।
पूर्वांचल में भाजपा विधायक कृष्णानंद राय की की हत्या हो या पूर्व आजमगढ़ जिले के पूर्व विधायक सीपू सिंह या फिर उमेश पाल हत्याकांड, कहीं न कहीं इसके पीछे वर्चस्व की लड़ाई रही। उमेश पाल की हत्या के जेल में बंद माफिया अतीक अहमद से जुड़े होने की बात सामने आते ही पुलिस महकमे के आलाधिकारियों के होश उड़ गए और आनन फानन में ताबड़तोड़ गिरफ्तारियां शुरू की।
जानकारों की मानें तो इसके लिए थोड़ा पीछे जाना होगा। कुछ साल पहले करोड़ों की जमीन पर दबंग माफियाओं की नज़र गड़ी और वहीं से दुश्मनी का सिलसिला जारी हो गया और करोड़ों की जमीन का विरोध करना भाजपा नेता उमेश पाल को भारी पड़ गया। जानकार सूत्रों की मानें तो उमेश पाल की शरीर पर गोलियों की बौछार करने की योजना साल 2019 से ही बनाई जा रही थी।
यह खुलासा तब हुआ जब धूमनगंज थाने में दर्ज हुए मुकदमे का राजफाश सामने आया। गौर करें तो जमीन और सियासत में खूनी खेल तो पता नहीं नहीं कब से चल रहा है, पर यूपी में इसकी आहट वर्ष 1978 में महसूस की गई।
तब विधानसभा के लिए आ रहे कौड़ी राम क्षेत्र के विधायक रवीन्द्र सिंह को गोरखपुर रेलवे स्टेशन पर बदमाशों ने गोलियों से भून दिया था। इस हत्या ने रंजिश का ऐसा बीज बोया कि पूर्वांचल में कई दबंग अपराधी, छात्र नेता और निर्दोष मारे गए। फिर 1988 में देवरिया में गौरी बाजार के विधायक रणजीत सिंह की हत्या हुई। यह तो बानगी भर है और भी कई लोगों की जानें जमीन के विवाद और वर्चस्व की में जानें जा चुकी हैं।