ब्रह्म योग में है काल भैरव जयंती, पूजा का मुहूर्त और महत्व

लखनऊ। काल भैरव की पूजा करने से सभी प्रकार की नकारात्मकता और बुरी शक्तियां दूर होती हैं। काल भैरव की जयंती हर साल मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है। भगवान शिव को अपना सबसे उग्र स्वरूप महाकाल के रूप में क्यों धारण करना पड़ा। काल भैरव जयंती मार्गशीर्ष कृष्ण अष्टमी तिथि को मनाई जाती है। इस तिथि पर भगवान शिव के काल भैरव स्वरूप की उत्पत्ति हुई थी। काल भैरव तंत्र-मंत्र के देवता हैं, इसलिए निशिता मुहूर्त में उनकी पूजा की जाती है।

भगवान शिव के अत्यंत उग्र स्वरूप काल भैरव की जयंती हर साल मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है। इस बार महाकाल की जयंती आज 16 नवंबर दिन बुधवार को है। काल भैरव जयंती के दिन ब्रह्म योग बन रहा है। भगवान शिव को अपना सबसे उग्र स्वरूप महाकाल के रूप में क्यों धारण करना पड़ा? अब जानते है, काल भैरव जयंती की तिथि, पूजा मुहूर्त और महत्व के बारे में।

काल भैरव जयंती 2022 तिथि,

पंचांग के अनुसार, मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि का प्रारंभ आ़ज 16 नवंबर दिन बुधवार को सुबह 04 बजकर 35 मिनट से  है। यह तिथि अगले दिन 17 नवंबर गुरुवार को सुबह 06 बजकर 04 मिनट तक है। ऐसे में उदयातिथि के आधार पर काल भैरव जयंती आ़ज 16 नवंबर को मनाई जाएगी। इस दिन सूर्योदय सुबह 06 बजकर 36 मिनट पर ।

 काल भैरव जयंती 2022 पूजा मुहूर्त,

काल भैरव तंत्र मंत्र के देवता हैं, इसलिए मंत्रों की सिद्धि के लिए निशिता मुहूर्त में उनकी पूजा अर्चना की जाती है। काल भैरव जयंती पर निशिता मुहूर्त रात 11 बजकर 40 मिनट से देर रात 12 बजकर 33 मिनट तक है।

जो लोग सुबह में काल भैरव की पूजा करना चाहते हैं,

वे सुबह 06 बजकर 44 मिनट से सुबह 09 बजकर 25 मिनट के मध्य तक कर सकते हैं। इसके अलावा शाम को 04 बजकर 07 मिनट से शाम 05 बजकर 27 मिनट, शाम 07 बजकर 07 मिनट से रात 10 बजकर 26 मिनट तक पूजा का शुभ मुहूर्त है।

ब्रह्म योग में काल भैरव जयंती,

ब्रह्म योग 16 नवंबर को सुबह से लेकर देर रात 12 बजकर 0 मिनट तक है। उसके बाद इंद्र योग शुरू हो जाएगा। ब्रह्म योग को मांगलिक कार्यों के लिए शुभ माना जाता है।

काल भैरव जयंती का महत्व,

इस तिथि पर भगवान शिव के काल भैरव स्वरूप की उत्पत्ति हुई थी। जब माता सती ने अपने पिता राजा दक्ष के यज्ञ के हवन कुंड में आत्मदाह कर लिया, तब भगवान शिव अत्यंत क्रोधित हो उठे और दक्ष को दंड देने के लिए अपने अंशावतार काल भैरव को प्रकट किया। काल भैरव ने राजा दक्ष को शिव के अपमान और सती के आत्मदाह के लिए दंडित किया। काल भैरव की पूजा करने से सभी प्रकार की नकारात्मकता और बुरी शक्तियां दूर होती हैं। ग्रह दोष, रोग, मृत्यु भय आदि भी खत्म हो जाता है।

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