ब्रिटेन: 45 दिन में ही प्रधानमंत्री लिज ट्रस ने इस्तीफा क्यों दिया?

रंजन कुमार सिंह

ब्रिटेन की तीसरी महिला प्रधानमंत्री लिज ट्रस का कार्यकाल छोटा लेकिन बड़ी मुसीबतों से भरा रहा। आर्थिक मुसीबतों के संघर्षपूर्ण दौर में उन्हें पैंतालीस दिन के भीतर कुर्सी छोड़नी पड़ी। ब्रिटेन की प्रधानमंत्री लिज ट्रस ने अपने वायदे और इरादे पूरे ना कर पाने का हवाला देते हुए इस्तीफा दे दिया है। इसी के साथ ब्रिटेन के लोकतांत्रिक इतिहास में सबसे कम दिनों की प्रधानमंत्री के तौर पर उनका उनका नाम दर्ज हो गया है। एक ऐसा रिकॉर्ड जिसे बनाने की इच्छा किसी नेता की नहीं होगी। अपने विदाई भाषण में ट्रस ने कहा कि उन्होने “भयंकर आर्थिक और अंतर्राष्ट्रीय अस्थिरता के वक्त कुर्सी संभाली” लेकिन वो अपने वादे पूरे नहीं कर पाईं जिनके दम पर वो सत्ता में आईं थीं। अब कंजरवेटिव पार्टी के सामने एक बार फिर अपने नये नेता का चुनाव करने की चुनौती है तो देश के सामने पल-पल बदलते हालात को झेलने की। सांसदों द्वारा नेता चुनने की यह प्रक्रिया अट्ठाइस अक्तूबर तक पूरी होने की उम्मीद।

क्यों देना पड़ा इस्तीफा

ट्रस को इस्तीफे तक ले जाने वाले हालात ने बड़ी जल्दी करवट ली। चांसलर क्वासी क्वारटेंग का मिनी बजट और उससे उपजी आर्थिक चिंताए इस दिशा में पहला झटका साबित हुईं। क्वारटेंग के बजट में 45 अरब पाउंड की टैक्स कटौती की बात रखी गई जिसके लिए कर्ज लेकर पैसा जुटाने का सुझाव था। टैक्स कटौती के लिए इतने बड़े सरकारी कर्ज लिए जाने के प्रावधानों ने बाजार में हलचल ला दी और हालात बेकाबू हो जाने का डर पसरने लगा। जिन वादों के साथ ट्रस ने कुर्सी संभाली थी वो उन्होंने उसमें नाकाम रहने की बात कही है। ट्रस को अपने दोस्त क्वारटेंग को पद से हटाना पड़ा और टैक्स कटौती के तमाम प्रावधानों को वापिस लेने का ऐलान हुआ लेकिन बात हाथ से निकल चुकी थी। लिज ट्रस बेहद नाजुक आर्थिक हालात में पद पर आईं। मंहगाई का संकट और आम-जीवन पर पड़ रहे उसके नकारात्मक असर को रोकने के लिए देश की नजरें उन पर टिकी थीं और मिनी-बजट उनकी कमजोर रणनीति की एक झलक दे गया। संकट और गहराया जब ट्रस की अपनी ही पार्टी के सदस्य उनके खिलाफ बोलते नजर आए और इस कड़ी में आखिरी कील साबित हुआ गृहमंत्री सुएला ब्रेवरमैन का इस्तीफा।

ब्रेवरमैन ने अपने निजी ईमेल से एक बेहद संवेदनशील मसले पर एक साथी सांसद को ईमेल भेजा था जिसके बाद उनसे इस्तीफा ले लिया गया। यह सारा घटनाक्रम लिज ट्रस की राजनैतिक स्थिति को दिन-पर-दिन कमजोर करता गया और अंत में उन्हें मानना पड़ा कि वो जिस वायदे के साथ आईं थी उसे पूरा करने की स्थिति में नहीं रह गई हैं। अब कंजरवेटिव पार्टी के भीतर फिर से नेता का चुनाव होगा। अगर पार्टी सांसद किसी एक नाम पर राजी हो जाते हैं तो चुनाव की प्रक्रिया छोटी होगी और सदस्यों के मतदान की जरूरत नहीं पड़ेगी। 2016 में जब टेरीजा मे ने सत्ता संभाली थी तब उनकी प्रतिद्वंद्वी आंद्रेया लीडसम ने अपना नाम वापिस ले लिया था। इसकी वजह से टेरीजा मे बिना पार्टी सदस्यों के वोट लिए पार्टी की नेता चुन ली गई थीं। यानी गेंद फिलहाल सांसदों के पाले में है और चुनावी प्रक्रिया कितनी छोटी या बड़ी होगी यह इस बात पर निर्भर करता है कि क्या अंतिम तौर पर दो नेताओं का नाम सामने आएगा या सांसद एक ही नेता के नाम पर सहमत हो जाएंगे। कुल मिलाकर स्थिति अस्पष्ट है और अंदाजा लगाना मुश्किल। इससे पहले गृह मंत्री सुएला ब्रेवरमैन को भी इस्तीफा देना पड़ा था।

कौन होगा अगला नेता

राजनीतिक गलियारों और मीडिया में फिलहाल इसी की चर्चा है। क्वासी क्वारटेग के जाने के बाद चांसलर का पद संभालने वाले जेरेमी हंट ने अपनी उम्मीदवारी खारिज कर दी है। इसके साथ ही ऋषि सुनक पर निगाहें एक बार फिर टिक गई हैं, हालांकि औपचारिक तौर पर अभी कोई बयान सामने नहीं आया है। हाल ही में हुए पार्टी चुनाव में लिज ट्रस के बाद वही सांसदों की पहली पसंद थे जबकि पार्टी सदस्यों ने उन्हें नकार दिया था। उनके करीबियों ने मीडिया से कहा है कि सुनक की दावेदारी से इंकार नहीं किया जा सकता। पूर्व प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन के नाम की चर्चा भी हो रही है। फिलहाल छुट्टियां मना रहे बोरिस जॉनसन के सत्ता गवाने के पीछे ऋषि सुनक समेत कई नेताओं का इस्तीफा था। कुछ अन्य नाम जो सामने आए हैं उनमें पूर्व गृह-मंत्री सुएला ब्रेवरमैन भी शामिल हैं जो पहले भी अपनी किस्मत आजमा चुकी हैं। रक्षा सचिव बेन वॉलेस के नाम की चर्चा भी जारी है। ब्रिटेन में राजनैतिक हालात एक बार फिर धुंधले शीशे जैसे हो गए हैं।

क्या अब देश में चुनाव होंगे

प्रधानमंत्री के इस्तीफे का मतलब यह नहीं है कि देश में स्वाभाविक तौर पर आम चुनाव कराए जाएंगे। ब्रिटेन में अगला आम चुनाव जनवरी 2025 में होना है। जल्द चुनाव कराए जाने का विकल्प है और ऐसा करने की प्रक्रिया प्रधानमंत्री के अधीन है। 2011 में एक कानून पारित किया गया जिसके साथ ही प्रधानमंत्री से ये अधिकार लेकर संसद के निचले सदन हाउस ऑफ कॉमंस को दे दिया गया। इसके मुताबिक पांच से पहले आम चुनाव कुछ खास परिस्थितियों में ही हो सकते हैं जैसे दो-तिहाई सांसद इसके हक में हों, हालांकि 2019 में सत्ता में आने के बाद कंजरवेटिव पार्टी ने इस कानून में संशोधन करके ये ताकत प्रधानमंत्री को वापिस दे दी। यदि प्रधानमंत्री जल्द चुनाव कराना चाहें तो उन्हें ब्रिटेन के राजा को गुजारिश करनी होगी कि वो संसद को भंग कर दें ताकि नये चुनाव कराए जा सकें। फिलहाल ऐसा कोई कदम नहीं उठाया गया है।

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