प्रेम एवं परवाह

कर्नल आदि शंकर मिश्र
कर्नल आदि शंकर मिश्र

प्रेम और परवाह इस जीवन
के अनुपम उपहार होते हैं,
सारे मानव, सारे जीव, सारे
वनस्पति इनके हक़दार होते हैं।

सबको प्रेम व परवाह मिले,
सारे जग की यही रीति हो,
पर सबको सबसे प्रेम, परवाह
मिले, इसकी न कोई उम्मीद हो।

नज़दीकी बढ़ने से मिल जाती
हैं यूँ ही कुछ चीज़ें जीवन में,
जैसे तपिस आग से, बर्फ़ से
ठंडक, ख़ुशबू फूलों के वन में।

ईश्वर के प्रेम और भक्ति से,
उसकी कृपा मिले हर पल में,
प्रभु का प्रेम, प्रभू की भक्ति,
करती परवाह हर सुख दुःख में।

प्रेम प्यार के रिश्तों में गलतियाँ
व ग़लत फ़हमियाँ होती रहतीं,
साहस से स्वीकार करें तो बढ़ी
दूरियाँ भी मिटती ही रहतीं ।

कविता: कविता प्रतिक्रिया पर प्रतिक्रिया

बस ! पहला कदम बढ़ा कर
देखो, मत उसका इंतज़ार करो,
गलती करने वाले की गलती
को आगे बढ़कर माफ़ करो ।

प्राकृतिक सौंदर्य का आकर
प्रथम रवि किरण आकर खोले,
हर दयावान प्रकृति जैसा ही हर
सुबह शाम दूसरों का भला करें ।

धन्यवाद देना भी उन ख़ास
लोगों को भी भूल जाते हैं,
जीवन में अक्सर ख़ुशियों
की जो वजह बन जाते हैं।

 

यह बताना भी भूल जाते हैं कि
हम उन्हें कितना पसंद करते हैं !
ऐसे सभी मित्रों को बहुत बहुत
आभार व धन्यवाद करते हैं ।

ऐसे ही अवसर का इंतज़ार
हो संसार के सारे जीवों को,
धन्यवाद करना ना भूलें,
आभार जतायें हम उनको ।

लोग हमारे पीठ पीछे हमारी
निंदा में बहुत कुछ कहते हैं,
शायद यह प्रवृत्ति हम आज के
लोग अपने ज़ेहन में रखते हैं।

कविता : वक्त का बदलता मिज़ाज है

इसकी तीन वजह होती हैं;
जब उनका हर स्तर कम हो,
तुलनात्मक रूप से नैतिक
और मानसिक बल कम हो।

उनके पास वह सब न हो जो,
कुछ आपके पास हो और जब,
वे आपकी नक़ल तो करना चाहें,
परंतु चाह कर भी नहीं कर पायें।

प्रभू का अस्तित्व वायु जैसा
होता है, देख नहीं सकते हैं,
पर हम जिसके बिना जीवन
कुछ असम्भव जैसा पाते हैं।

प्रेम भी उसी ईश्वर की दया है,
जिसने हमें देंह व प्राण दिये हैं,
आदित्य प्रेम, परवाह हम सबकी
और हम सभी की सबके लिए हैं।

 

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