पितृ पक्ष में इन पांच जीवों को जरुर कराएं भोजन

इससे पितरों को मिलती है तृप्ति


जयपुर से राजेंद्र गुप्ता


हिंदू धर्म में पितृ पक्ष का बहुत महत्व है। इसमें पूरी श्रद्धा के साथ पितरों को याद किया जाता है और उनके प्रति आभार व्यक्त किया जाता है। विधि पूर्वक पितरों का श्राद्ध करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है और सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देकर जाते हैं। माना जाता है कि हमारे पितृ कुछ जीवों के माध्यम से धरती पर हमारे निकट आते हैं। इनके माध्यम से ही वो आहार ग्रहण करते हैं। इसलिए पितृपक्ष के दौरान इन जीवों को भोजन जरूर कराना चाहिए।

पितृ पक्ष हर साल भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से शुरू होता है जो 15 दिनों तक चलता है। पितृ पक्ष में पिंडदान का खास महत्व होता है।

पिंडदान में दान-दक्षिणा किया जाता है जिससे पूर्वजों की आत्मा को शांति और मुक्ति मिल सके। श्राद्धपक्ष में इस दान का काफी महत्व है। माना जाता है कि पितृपक्ष में हमारे पितर धरती पर आकर हमें आशीर्वाद देते हैं।

पितृ पक्ष में पितरों को तृप्ति तभी मिलती जब उन्हें अर्पित किए जाने वाले भोजन के पांच अंश निकाले जाते हैं। ये पांच अंश गाय, कुत्ता, चींटी, कौवा और देवताओं के नाम पर निकाले जाते हैं।

श्राद्ध कर्म में भोजन से पहले पांच जगहों पर अलग-अलग भोजन का अंश निकाला जाता है। भोजन का ये अंश पत्ते पर गाय, कुत्ता, चींटी और देवताओं के लिए निकाला जाता है जबकि कौवे के लिए इसे भूमि पर रखा जाता है। फिर पितरों से प्रार्थना की जाती है कि वो इनके माध्यन से भोजन ग्रहण करें।

इन पांच अंशों के अर्पण को पञ्च बलि कहा जाता है। पञ्च बलि के साथ ही श्राद्ध कर्म पूर्ण माना जाता है। श्राद्ध में भोजन का अंश ग्रहण करने वाले इन पांचों जीवों का विशेष महत्व होता है। इसमें कुत्ता जल तत्त्व, चींटी अग्नि, कौवा वायु का, गाय पृथ्वी तत्व का और देवता आकाश तत्व का प्रतीक माने गए हैं।

इन पांचों को आहार देकर पंच तत्वों के प्रति आभार भी व्यक्त किया जाता है। मान्यता है कि पितृ पक्ष में इन जीवों को भोजन कराने से पितृ दोष से भी मुक्ति मिल सकती है।

 

पितृ पक्ष में नहीं किए जाते हैं ये पांच काम

पितृ पक्ष की पूरी अवधि को खास माना गया है। इस दौरान 15 दिनों तक घर में सात्विक माहौल बनाकर रखना अच्छ होता है।  पितृ पक्ष की अवधि में घर में मांसाहारी भोजन न तो पकाना चाहिए और ना ही उसका सेवन करना चाहिए। वैसे लोगों को इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए जो कि पितृ पक्ष के दौरान पिंडदान, तर्पण या श्राद्ध कर्म करते हैं। इसके अलावा अगर संभव हो सके तो इस दौरान लहसुन और प्याज का सेवन भी नहीं करना चाहिए।

पितृपक्ष के दौरान श्राद्धकर्म करने वाले व्यक्ति को पूरे 15 दिनों तक बाल और नाखून कटवाने से परहेज करना चाहिए। हालांकि इस दौरान अगर पूर्वजों की श्राद्ध की तिथि पड़ती है तो पिंडदान करने वाला बाल और नाखून कटवा सकता है।

पौराणिक मन्यता है कि पितृ पक्ष के दौरान पूर्वज पक्षी के रूप में धरती पर पधारते हैं। ऐसे में उन्हें किसी भी प्रकार से सताना नहीं चाहिए, क्योंकि मान्यता है कि ऐसा करने से पूर्वज नाराज हो जाते हैं। ऐसे में पितृ पक्ष के दौरान  पशु-पक्षियों की सेवा करनी चाहिए।

पितृपक्ष के दौरान सिर्फ मांसाहारी ही नहीं, बल्कि कुछ शाकाहारी चीजों का सेवन करना भी निषेध माना गया है। ऐसे में पितृ पक्ष के दौरान लौकी, खीरा, चना, जीरा और सरसों का साग खाने से परहेज करना चाहिए।

धार्मिक मान्यता के अनुसार, पितृपक्ष में किसी भी तरह का मांगलिक कार्य नहीं करनी चाहिए। शादी, मुंडन, सगाई और गृह प्रवेश जैसे मांगलिक कार्य पितृ पक्ष में निषेध माने गए हैं। दरअसल पितृपक्ष के दौरान शोकाकुल का माहौल होता है, इसलिए इन दिनों कोई भी शुभ कार्य करना अशुभ माना जाता है।


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