- केशव मौर्य का पीडीए फैक्टर रहा फायदेमंद और स्वतंत्रदेव सिंह भी बने ‘कर्णधार’
- परिवहन मंत्री दयाशंकर का दम भी दिखा चुनावी नतीजों में
अवनीश तिवारी
कहते हैं कि चुनाव कोई भी हो बगैर यूपी नैया पार लगना मुश्किल है..इस बार बिहार में भी कुछ ऐसा ही हुआ। यूपी भाजपा के दिग्गज बिहार पहुंचे और पूरा दम लगा दिया..नतीजा सबके सामने है। मुख्यमंत्री से लेकर उपमुख्यमंत्री तक चुनाव भर बिहार में डेरा डाले रहे केशव प्रसाद मौर्या ने भी महागठबंधन के पीडीए फैक्टर को ‘लगड़ा’ कर दिया। यूपी में बीजेपी के ये खेवनहार बिहार में भी पार्टी की नाव को न सिर्फ भंवर से निकाल लाए बल्कि उसे बेहद मुफीद ‘लंगर’ पर खड़ा कर दिया…।
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बिहार विधानसभा चुनाव पूरे यूपी से भी पार्टी के तमाम दिग्गज बिहार पहुंचे थे। ये सिर्फ पहुंचे नहीं थे, बल्कि कुछ कर गुजरने गए थे और तब तक वहां डटे रहे जब तक बीजेपी की जीत को अंजाम तक नहीं पहुंचा सके। बात की शुरुआत करते हैं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से… उन्होंने इस चुनाव में उसी तरह दम लगाया जैसा वह यूपी में लगाते हैं.. लखनऊ से पटना और वहां से न जाने किन-किन जगहों पर पहुंच गए और जनता को विकास का यूपी फैक्टर समझा दिया। इतना ही नहीं बिहार चुनाव के सह प्रभारी और यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने भी महागठबंधन की पीडीए काट को कुंद कर दिया और BJP के जीत के खेवनहार बनकर उभरे हैं। साथ ही उनके दो साथी स्वतंत्र देव सिंह और दयाशंकर सिंह की उपस्थिति भी भाजपा के जीत की मजबूत इबारत लिखे हैं।

बिहार विधानसभा के मौजूदा चुनाव के दौरान भाजपा आलाकमान ने पड़ोसी राज्य यूपी से अपने दिग्गज महारथियों को बाराती बनाकर यहां अलग-अलग क्षेत्रों में पहुंचा दिया था। ताकि वो बिहार के साथी भाजपाइयों की हौसला-आफजाई कर सकें और 16वें महाभारत के भीष्म पितामह की तरह महागठबंधन के जीत का हरण कर सकें। गौरतलब हैं कि अपने छोटे भाई विचित्रवीर्य के वास्ते भीष्म ने अंबा, अंबे और अंबालिका को उठा लिया था अपने बाहुबल की बदौलत। चूँकि इस मुल्क में जम्हूरियत है, इसलिए विभिन्न प्रकार की जुगत भिड़ाने के लिए भाजपा ने यूपी से सियासी फौज उतारने की चाल चली थी। इसी के तहत यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य को चुनाव सह प्रभारी का दायित्व सौंपा गया था। मौर्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के कोइरी बिरादरी से ताल्लुक रखते हैं।
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केशव मौर्य को ये पद यूं ही नहीं मिला। साल 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने अपने दम पर 282 सीटें जीती थी, तो केशव मौर्य को यूपी भाजपा के अध्यक्ष की कुर्सी पर आसीन किया गया था। इसके पीछे का तर्क यह था कि यादव छोड़कर अन्य ओबीसी को साल 2017 के यूपी असेम्बली इलेक्शन में साथ लाया जाए। केशव मौर्य ने बखूबी इस जिम्मेदारी को निभाया था और बीजेपी सत्ता के रथ पर सवार हो गई थी, योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में।

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इसे बिहार के संदर्भ में समझा जाए तो यहां भी केशव प्रसाद मौर्य जो कि बेहतरीन संगठनकर्ता हैं, वे यादवों को छोड़कर एक संग ओबीसी एवं ईवीसी को साथ कर सकते हैं। यहां 36% अति पिछड़े हैं। ये अति पिछड़े नीतीश और एनडीए के वोटर माने जाते हैं। यहां कुर्मी तकरीबन तीन प्रतिशत हैं। बिहार के कुर्मी केशव मौर्य को भी कुर्मी ही मानते हैं। नीतीश खुद भी कुर्मी हैं। यानी डबल कुर्मी के मिलने से कुर्मी वोट छिटकेगा नहीं।

उधर यूपी के जलशक्ति मंत्री स्वतंत्रदेव सिंह को लोकसभा चुनाव के समय बिहार की कमान सौंपी गई थी। स्वतंत्रदेव भी यूपी भाजपा के अध्यक्ष रहे हैं। उन्हें भी संगठन का जबरदस्त तजुर्बा है। जानकार कहते हैं कि स्वतंत्रदेव की वजह से ही यूपी में दोबारा भाजपा को सत्ता की कुर्सी नसीब हुई थी। उनकी उपस्थिति ने भी बिहार विधान सभा की कई सीटों पर कमाल किया और बीजेपी बड़ा दल बनकर सामने आई।

दयाशंकर पर वोटरों ने जमकर बरसाई दया
बिहार के बक्सर जिला स्थित राजपुर गांव निवासी और बलिया से विधायक यूपी के परिवहन मंत्री ने बिहार विधानसभा में अपने समाज में जमकर बैटिंग की। उनकी बल्लेबाजी इतनी शानदार रही कि वे जहां-जहां गए, वहां-वहां राजपूतों को भाजपा के साथ कदमताल कराया। साथ ही उन्होंने अन्य जाति के वोटरों को भी यह भरोसा दिया कि बीजेपी के आने के बाद आपको कई बड़ी योजनाओं का लाभ मिल सकता है। उनकी उपस्थिति और उनके भरोसे पर वोटरों ने उन पर खूब दया लुटाई और बीजेपी की जीत में ये भी हीरो की तरह सामने आए। बताते चलें कि दयाशंकर सिंह देश के उन नेताओं में शामिल हैं, जिनका भारतीय जनता पार्टी के आलाकमान से सम्बन्ध बहुत अच्छे हैं। शायद यही कारण है कि आलाकमान उन्हें हर चुनाव में अहम किरदार सौंप देता है। गौरतलब है कि साल 2017 के यूपी चुनाव के पहले दयाशंकर सिंह के बयान के बाद सूबे की राजनीतिक में जबरदस्त उबाल आया था। वहीं से यूपी में भाजपा की राह आसान हुई थी।

बड़ा दिलचस्प है बिहार के आंकड़ें…
साल 2025 का बिहार विधानसभा चुनाव इस बार खासा दिलचस्प रहा। वर्ष 1951 के बाद बिहार में इस बार सबसे ज़्यादा वोट पड़े। इस बार बिहार में 67.13% मतदान हुआ जो कि पिछले विधानसभा चुनाव से 9.6% ज़्यादा है। इस बार के मतदान में पुरुषों की हिस्सेदारी 62.98% रही और महिलाओं की 71.78 प्रतिशत देखने को मिली। गौरतलब है कि बिहार में 3.51 करोड़ महिला वोटर हैं और 3.93 करोड़ पुरुष वोटर और कुल मतदाताओं की तादाद 7.45 करोड़ है। वहीं इस बार पुरुषों की तुलना में महिलाओं का मतदान 8.15 प्रतिशत ज़्यादा रहा है।

