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अक्षय नवमी यानी आंवला नवमी के शुभ अवसर पर मथुरा-वृन्दावन की परिक्रमा का खास महत्व माना जाता है। इस दिन श्रद्धालु अक्षय पुण्य अर्जित करने के लिए मथुरा-वृन्दावन की परिक्रमा करते हैं। धार्मिक मान्यताओं अनुसार आंवला नवमी की पूजा संपन्न करने पर भक्तों को अक्षय फल की प्राप्ति होती है। कहते हैं इस दिन किए गये शुभ कार्यों का पुण्य कई जन्मों तक प्राप्त होता है। इस दिन आंवले के पेड़ के नीचे भोजन पकाने और खाने का विशेष महत्व माना जाता है।
आंवला नवमी तिथि व मुहूर्त
अक्षय नवमी – 31 अक्टूबर 2025, शुक्रवार
अक्षय नवमी पूर्वाह्न समय – 06:36 AM से 10:03 AM
नवमी तिथि प्रारम्भ – 30 अक्टूबर 2025 को 10:06 AM बजे
नवमी तिथि समाप्त – 31 अक्टूबर 2025 को 10:03 AM बजे
आंवला नवमी का महत्व
आंवला नवमी की पूजा विशेष रूप से उत्तर भारत में की जाती है। इस दिन आंवले के पेड़ के नीचे भोजन पकाया भी जाता है और खाया भी जाता है। महिलाएं इस पूजा को अपने बच्चों के खुशहाल जीवन के लिए करती हैं।
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आंवला नवमी व्रत कथा
आंवला नवमी की पौराणिक कथा अनुसार एक बार देवी लक्ष्मी पृथ्वी का भ्रमण करने आईं। रास्ते में उन्होंने अपने मन में भगवान विष्णु और शिव की एक साथ पूजा करने की कामना की। लक्ष्मी मां ने विचार किया कि विष्णु और शिव को एक साथ किस तरह से पूजा जा सकता है। तब उन्हें महसूस किया कि तुलसी और बेल की गुणवत्ता एक साथ आंवले के पेड़ में ही पाई जाती है। जहां तुलसी भगवान विष्णु की प्रिय है तो वहीं बेल पत्र भगवान शिव को प्रिय हैं। माता लक्ष्मी ने आंवले के पेड़ को भगवान विष्णु और शिव जी का प्रतीक मानकर उसकी विधि विधान पूजा की। पूजा से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु और शिव दोनों प्रकट हुए। लक्ष्मी माता ने आंवले के पेड़ के नीचे भोजन तैयार किया और भगवान विष्णु और भगवान शिव को परोसा। इसके बाद उन्होने उसी भोजन को प्रसाद रूप मे ग्रहण किया। कहते हैं जिस दिन यह घटना हुई थी उस दिन कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि थी। कहते हैं तब से ही परंपरा चली आ रही है।
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आंवला नवमी पर दुर्लभ संयोग
कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि पर वृद्धि और रवि योग समेत कई मंगलकारी संयोग बन रहे हैं। वृद्धि योग का संयोग सुबह 06 बजकर 17 मिनट लगभग से पूर्ण रात्रि तक है। साथ ही रवि योग दिन भर है। अक्षय नवमी पर शिववास योग का भी निर्माण हो रहा है। बता दें कि आंवला नवमी को अक्षय नवमी भी कहा जाता है।
