- नौ को BSP की रैली और आठ को मिले सपा सुप्रीमो
- BSP में जाएंगे या फिर…कई अटकलों पर लगा पूर्ण विराम
- भीम आर्मी और AIMIM के लोगों को आजम में दिख रहा बारूद
- हाथी की सवारी या साइकिल से चलेंगे आजम… सियासी चर्चा का बना विषय
सैय्यद शादाब अहमद
लखनऊ। सियासत में अपने नफे-नुकसान की चिंता न करने वाले आजम खां, जिस दिन से जेल से छूटे हैं, उसी दिन से सूबे की राजनीति गरमाई हुई है। चाहे वो धारा-144 लगाने की बात रही हो या फिर एक साथ 000 गाड़ियों के चालान का मसला। ‘चर्चा, पर्चा और खर्चा’ से अपनी राजनीति चमकाने वाली समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश का आठ अक्टूबर को आजम खां से मिलना अहम सवाल बना हुआ है। चर्चा है कि अखिलेश 16 दिन बाद केवल डर के नाते ‘चच्चा’ से मिलने रामपुर गए। उन्हें शक-सुबहा है कहीं आजम खान साइकिल का हैंडल छोड़, बहुजन समाज पार्टी (BSP) की हाथी की सवारी न कर लें। अगले दिन नौ अक्टूबर को कांशीराम जयंती के दिन मायावती यूपी में अपनी खोई जमीन को वापस तलाशने के लिए बड़ी रैली कर रही हैं। ये वही कांशीराम हैं, जिन्होंने यूपी में ‘तिलक, तराजू और तलवार, इनको मारो जूते चार’ जैसे भड़काऊ नारों का इस्तेमाल करते थे।
राजनीति में दिलचस्पी रखने वालों के लिए चच्चा के प्रति अखिलेश की बेरुखी कोई नई बात नहीं है। आजम खां कई बार चुटीले लहजे में इसका इशारा भी कर चुके हैं। जब उनसे BSP के बारे में सवाल किया गया तो उन्होंने दो टूक लहजे में नकार दिया। उन्होंने कहा कि ‘मैं बेवकूफ हो सकता हूं, लेकिन इतना बड़ा भी नहीं।’ गौरतलब है कि आजम खान सपा के हाशिये पर खड़े हैं, और यूपी की राजनीति में BSP का हाल भी आजम जैसा ही है। लेकिन, मुल्क के सबसे बड़े सूबे में अपनी राजनीतिक जमीन तलाश रही भीम आर्मी और AIMIM को आजम खान में अभी भी बारूद नजर आ रहा है।
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बताते चलें कि साल 2012 में बनी सपा सरकार में उनके रसूख को अखिलेश यादव (तब के सीएम) से बड़ा माना जाता था। लेकिन, अब संपत्ति हथियाने, फ्रॉड और भ्रष्टाचार के आरोपों में बुरी तरह फंसे आजम खान की राजनीति भी रसातल की ओर है। करीब दो साल बाद उन्हें जमानत तो मिल गई है, लेकिन क्या उनकी सियासत को भी सांस मिलेगी, इस पर सवालिया निशान बना हुआ है।
अभी भी अकलियत सियासत के ‘आजम’ हैं खान
कभी समाजवादी पार्टी के ‘मुख्तार-ए-आजम’ मुलायम सिंह यादव के खास-सिपहसालार रहे आजम खां कुछ दिनों पहले सीतापुर जेल से छूटे हैं। अपने नेता की बाहर अगुआनी करने वालों की इतनी बड़ी संख्या जुटी कि पुलिस को बीएनएस की धारा-144 लगानी पड़ी। लेकिन उस पर भी लोगों को जब रोका नहीं जा सका तो सैकड़ों गाड़ियों का चालान भी सीतापुर पुलिस ने किया। हालांकि आजम बाहर निकले और अपने गढ़ यानी रामपुर जा पहुंचे। वहां से अभी तक बाहर नहीं निकले हैं, न राजधानी दिल्ली की ओर कूच किया और न सूबे की कैपिटल लखनऊ की ओर चले। वो अपने किले में आराम फरमा रहे हैं, यहीं सूबे की राजनीतिक सरगर्मी बढ़ाने के लिए काफी है। सपा के मुखिया और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव अपने चच्चा (आजम खान) से मिलने की तारीख आठ अक्टूबर तय की तभी से इसके मायने निकाले जा रहे हैं। कानाफूसी शुरू हुई, कुछ लोगों ने अपनी बतकही में इसे रुठने-मनाने का दौर भी ठहराया जा रहा है। चर्चा ये है कि ‘बेगम-ए-आजम’ ने पिछले दिनों बसपा सुप्रीमो मायावती से मुलाकात की थी।
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कई अटकलों पर लगा विराम
आजम खां के बाहर आते ही राजनीति के जानकार इसे अपने-अपने चश्मे से देखना शुरू कर दिए। कभी उनका तार बसपा के साथ जोड़ा जाने लगा तो कभी कहा जाने लगा कि वे ताउम्र साइकिल से नहीं उतरेंगे। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी पार्टी में उनकी अहमियत को सार्वजनिक रूप से स्वीकार करते रहते हैं। उनके जेल से बाहर आने पर पूर्व मुख्यमंत्री ने उनकी शान में कसीदे भी गढ़ चुके हैं। पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि आजम खान समाजवादी पार्टी के संस्थापक हैं। नेताजी के प्रमुख सखा रहे, वो हम लोगों के ही साथ है। बीजेपी का मुकाबला करने के लिए आज से नहीं, न जाने कब से सबसे बड़ी भूमिका उनकी और समाजवादियों की रही है।
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इतना ही नहीं पार्टी के कद्दावर नेता और पूर्व कैबिनेट मंत्री शिवपाल यादव भी आजम की खुले मन से तारीफ कर चुके हैं उन्होंने उनके राजनीतिक अस्तित्व को भी स्वीकारा है । ये कोई छिपी बात नहीं है कि आजम के मन में इस बात को का दर्द है कि जेल में रहने के दौरान अखिलेश यादव एक बार भी उनसे मिलने नहीं गए। जेल से बाहर आने के बाद अखिलेश से बात होने के सवाल पर आजम ने कहा था कि ‘ जेल में रहकर मैं बीवी तक का नंबर भूल गया’ …। आजम ने इतना जरूर कहा था कि ‘अखिलेश मेरे उतने ही करीब हैं, जितने नेताजी (मुलायम सिंह यादव) थे।’
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क्या सपा के ‘अच्छे दिन’ आ रहे हैं…?
ऐसा लग रहा है कि यूपी की सियासी फिजा बदल रही है? सवाल इसीलिए उठ रहा है क्योंकि आजम खान के जेल से बाहर आते ही सपा नेताओं की रिहाई की झड़ी लग गई है। पिछले एक हफ्ते में SP के आधा दर्जन नेता जेल से रिहा हुए हैं। सबसे पहले दिग्गज मुस्लिम नेता आज़म खान 23 महीने के बाद रिहा हुए। उनके बाद जुगेंद्र सिंह यादव और रामेश्वर यादव भी रिहा हो गए। एक दिन पहले इरफ़ान सोलंकी 34 महीने के बाद जेल से बाहर निकले हैं। वहीं मऊ के माफिया डॉन मुख़्तार अंसारी का बेटा उमर अंसारी भी 39 दिन के बाद जेल से रिहा हो गया। बताते चलें कि उनके बड़े भाई अब्बास अंसारी पहले ही ज़मानत पर बाहर हैं। सवाल उठता है क्या इससे अखिलेश यादव को सियासी ताकत मिल पाएगी? या फिर सपा के अच्छे दिन शुरू हो रहे हैं। गौरतलब है कि साल 2027 में यूपी में विधान सभा चुनाव होने हैं और सत्तारूढ़ दल भारतीय जनता पार्टी (BJP) को सपा से ही सियासी टक्कर मिलेगी।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और दक्षिण भारत की सियासी जानकारी में अच्छी-खासी दखल रखते हैं। गोरखपुर के मूल निवासी, फिलवक्त सूबे की राजधानी लखनऊ में निवास)

