दो टूकः PM का 10 साल में एक भी काम नहीं जो वोट दिला सके, हैट्रिक पर किचकिच

  • क्या पीएम मोदी ने कोई काम नहीं किया जो हिंदू-मुस्लिम के नाम पर आज भी वोट मांग रहे

राजेश श्रीवास्तव

देश में जैसे-जैसे चुनाव आगे बढ़ रहा है, सियासी जंग में नए-नए मुद्दों की एंट्री हो रही है। तीसरे चरण का प्रचार आज थम जाएगा। ऐसे में हर पार्टी ने पूरा जोर लगा दिया है। वहीं तंज का खेल भी जारी है। चुनाव प्रचार अब वही पुराने ढर्रे पर चल पड़ा है। भारत में चुनाव हो और पाकिस्तान की इंट्री न हो, ऐसा तो संभव नहीं है। इस चुनाव में हिंदू-मुस्लिम करने की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रणनीति जो गुजरात के उनके सियासी जीवन के शुरुआत से चली तो अभी तक जारी है। गोधरा से शुरू पारी अब तक जारी है। वह राहुल को युवराज नहीं कहते बल्कि शहजादा कहते हैं, क्योंकि शहजादा शब्द मुगलों का है। उन्होंने शनिवार को तेजस्वी को भी शहजादा कह दिया। इस चुनाव में गोधरा भी आ गया।

दूसरे चरण के पार होते ही आखिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण में इतनी तल्खी क्यों आई, समझना पड़ेगा। कभी राहुल के रायबरेली में लड़ने पर वह कहते हैं कि डरो मत, भागो मत। अरे यह चुनाव है, लोकतंत्र है सभी को अपनी मनपसंद जगह से चुनाव लड़ने की आजादी है। खुद वह गुजरात छोड़कर वाराणसी आए हैं। सिर्फ वहीं क्यों अटल बिहारी वाजपेयी सरीखे तमाम नेताओं ने अपना संसदीय क्षेत्र बदला। आज बीजेपी के 80 में 70 उम्मीदवार बाहरी हैं। रक्षामंत्री राजनाथ सिंह खुद लखनऊ से लड़ रहे हैं, बाहरी हैं। गोरखपुर के रवि किशन शुक्ला, महराजगंज के पंकज चौधरी, डुमरियागंज के जगदम्बिका पाल, अमेठी की स्मृति ईरानी। कितने नाम गिनाएं… बड़ा कद हुआ तो दूसरी सीट पर कब्जा जमाना, नेताओं का जन्म सिद्ध अधिकार रहा है।

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सवाल यह कि PM Modi आखिर जनता के मुद्दों को क्यों नहीं उठा रहे हैं? क्या उन्हें गरीबी, युवाओं, महिलाओं और किसानों की समस्यायें नहीं दिख रहीं। क्या सब कुछ आल इज वेल है। शायद इसलिए पीएम मोदी साल 2014 और 2019 जैसा माहौल नहीं देख पा रहे हैं। यह प्रेजीडेंशियल चुनाव हो रहा है क्या पीएम मोदी चाहते हैं कि विपक्ष उन पर व्यक्तिगत हमले करे, क्यों कि हमेशा ऐसे में वह खुद को 20 साबित कर लेते हैं। लेकिन यह दो चुनाव में नहीं हुआ जो अब हो रहा है। पीएम मोदी इस बार कांग्रेस की पिच पर खेल रहे हैं। कांग्रेस के उठाये मुद्दे पर पीएम मोदी रिएक्ट कर रहे हैं। विरासत, जातिगत जनगणना, आरक्षण आदि मुद्दे का एजेंडा कांग्रेस ने ही सेट किया, पीएम मोदी इस पर बयान देकर फंस गये। हर बार मोदी गेम सेट करते थे, लेकिन इस बार दांव बिल्कुल उल्टा है। मोदी वहीं बोल रहे हैं, जो कांग्रेस बुलवाना चाह रही है। मोदी के चेहरे पर, उनकी जुबां पर वो तेज वो जोश नहीं दिख रहा है। उनके अलावा भी अन्य नेताओं की जुबां तेजी से फिसल रही है। अभी-अभी कैबिनेट मंत्री बने ओमप्रकाश राजभर भरी सभा में बीजेपी को बौना साबित करते हैं। कहते हैं- मैंने जो मांगा दिल्ली ने पूछ कर दिया। मैंने सीएम योगी का विभाग मांग लिया, मुझे मिल गया। यानी साफ है कि बीजेपी की हालत पतली है। अपने दम पर एक विधायक न जिता सकने वाले राजभर इस तरह की बयानबाजी कर सकें, ये दम कहां से आया।

दरअसल एक नामी-गिरामी एजेंसी का सर्वे आया, जिसमें कहा गया कि जनता इस बार राम मंदिर और हिंदुत्व के मुद्दे पर दो से पांच फीसद ही मूव हो रही है। और दो चरणों का मतदान प्रतिशत भी जमीन चाट गया तो भारतीय जनता पार्टी (BJP) को लगा कि ऐसा क्यों ? अगर हिंदुत्व नहीं आया तो चुनाव कैसे लड़ा जायेगा? बस शुरू हो गया हिंदुत्व, मुस्लिम, पाकिस्तान, गोधरा। कांग्रेस भी पीएम मोदी के ट्रैक में फंस गयी और शनिवार को प्रियंका गांधी ने पीएम मोदी को शहंशाह बता दिया। उन्होंने कहा कि मेरा भाई शहजादा नहीं है वह तो  4000 किमी पैदल चला लोगों की समस्याएं जानी, हाल पूछा। शहंशाह तो पीएम मोदी हैं जिनके कुर्ते पर कोई दाग नहीं है, बाल तक संवरे हैं, चेहरे पर चमक है, उन्हें आम जनता की कोई फिक्र नहीं।

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प्रियंका गांधी को यह मालूम होना चाहिए कि यही मोदी चाहते हैं कि हमला उन पर हो, उन पर जितना हमला होगा, वह उसे भुनाएंगे। पिछले दो चुनावों से यही हो रहा है। यह चुनाव समझ से परे हैं, पीएम खुद को गरीब बता रहे हैं और पाकिस्तान को चुनाव में घसीट रहे हैं। शायद उनको पता नहीं उनके पहले के दस साल प्रधानमंत्री रहे मनमोहन सिंह को तो परिवार ने भी नहीं पाला वह अनाथ की तरह पले-बढ़े लेकिन उन्होंने कभी अपनी गरीबी का जिक्र नहीं किया, अपने दस साल के बाद विदाई के समय सिर्फ इतना कहा, मैं तो अनाथ था इस इस देश ने इतना प्यार दिया कि मैं भुला नहीं सकता। उनका परिवार बंटवारे में पाकिस्तान चला गया वह यहीं रह गये। वह कभी पाकिस्तान नहीं गये। पीएम मोदी गरीब हैं या अमीर इससे आम जनमानस का क्या लेना-देना?

आम जनता के मुद्दे गायब हैं। 10 साल की पीएम की पारी खेलने के बाद बताने को मोदी के पास कुछ नहीं हैं। वह किसी भी चुनावी जनसभा में अपने काम को क्यों नहीं गिनाते। वह हर भाषण में झूठ का पुलिंदा नाटकीय शैली में पढ़ते हैं। कांग्रेस के मैनिफेस्टो में जो नहीं है वह भी बताते हैं। इस बार उनके भाषण में एक कुंठा दिख रही है वह हताश दिख रहे हैं। मंगलसूत्र पर आज तक किसी नेता ने नहीं बोला, वह उसको भी मुद्दा बना रहे हैं। महंगाई का मुद्दा क्यों गायब है ? बेरोजगारों की बात कब होगी ? महंगाई से आप दब चुके हो, हर तरफ महंगाई। नरेंद्र मोदी वही कांठ की हांडी बार-बार चढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं। वह हर चुनाव में हिंदु-मुस्लिम लाते हैं। क्या उन्हें लगता है कि जनता को धर्म के नाम पर लड़वा कर ही वोट हासिल किये जा सकते हैं। फिर वह विकसित भारत की बात क्यों करते हैं। क्यों नहीं वह अपने काम पर वोट मांग रहे हैं। अपने 10 साल के काम-काज गिनायें। कौन इस देश में पाकिस्तान की बात कर रहा है?

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बात निकली है तो दूर तलक जाएगी, वाले हालात हैं। इस बार 400 पार का नारा लगाने वाली भारतीय जनता पार्टी 300 पार कर जाए तो इससे बड़ी खुशखबरी उसके लिए कुछ नहीं हो सकती। क्योंकि राहुल गांधी दावे के साथ कह रहे हैं मजदूरी 400 रुपये, आशा-आंगनवाड़ी कार्यकत्री की तनख्वाह दोगुनी। किसानों का कर्जा माफ। ये वो देश है, जहां किसान कर्ज ही इसलिए लेता है कि कोई न कोई पार्टी माफ कर देगी और वो अगली KKC (किसान क्रेडिट कार्ड) बनवा लेगा। अब जब देश की अधिकांश जनता इससे लाभान्वित होती दिख रही है तो बीजेपी को कोई बड़ा दांव खेलना होगा। जमीन पर मोदी लहर और राम लहर दोनों गायब है। केवल चर्चा हो रही है कि 10 बरसों के विकास की बात न करके मोदी और योगी कांग्रेस पर ही गरज-बरस रहे हैं। तभी एक तपाक से कह उठता है- कुछ रही तब नूं….। अंदरखाने अपनो से जूझ रही बीजेपी के लिए साल 2024 का चुनाव बड़ी लड़ाई है।

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