राम वर्ष-भारत हर्ष तक की यात्रा

डॉ. कन्हैया त्रिपाठी
प्रो. कन्हैया त्रिपाठी

 भगवान राम की पावन धरती अयोध्या में प्रभु श्रीराम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा का जैसे-जैसे समय निकट आ रहा है भारत में चहुओर राम पर लोग गीत गा रहे हैं। गीत की नई धुन बन रही हैं और बेटियां भी इस राम मंदिर में प्रभु श्रीराम की प्राण प्रतिष्ठा में अपनी गीतों, सांस्कृतिक कौशल से अपनी उपस्थिति अंकित करा रही हैं। यह सब हो रहा है 2024 यानी राम वर्ष में। लेकिन इस महा-अनुष्ठान के पीछे की बहुत लंबी कहानी है जिसे यदि स्मरण करते हैं तो मन विचलित हो जाता है, रूह काँप जाती है किन्तु भारत के हिन्दू-हृदय लोगों पर गर्व की अनुभूति भी होती है। वे पुराने दिन हमारे लिए पीड़ा के विषय बन जाते हैं। अयोध्या में 6 दिसंबर 1992 को जो कुछ हुआ वह सामान्य रूप से हो जाता तो रामभक्त कारसेवकों को बलिदान न होना पड़ता।

उन दिनों आयु बहुत कम थी हमारी, पर जो धुंधली-धुंधली सी स्मृतियाँ हैं, वे हमें सोचने के लिए बाध्य करती हैं। उन दिनों हमें इतनी समझ ज़रूर थी कि भारत के हिन्दू संस्कृति को भारतीय भूमि पर पुनर्स्थापना के लिए लालकृष्ण आडवाणी राम रथयात्रा लेकर निकले हैं। देश की अयोध्या नगरी जहाँ बाबरी मस्जिद विवाद का कारण बनी, वहां भव्य राममंदिर बनाने की यह संकल्प यात्रा थी। देश के कश्मीर से कन्याकुमारी तक सभी रामभक्त एक ही स्वर में जय श्रीराम के नारे के साथ अपने-अपने स्थान से रथयात्रा के हिस्सा बनेंगे और अयोध्या की ओर कूच कर अपने प्राचीन वैभव को स्थापित करेंगे, यह भारत के असंख्य लोगों के मन में था जो भगवन श्रीराम में श्रद्धा रखते हैं। ये वे लोग थे जो प्रतिबद्ध थे अपनी संस्कृति के लिए, अपनी प्राच्य परंपरा के लिए और सनातन धर्म की रक्षा के लिए। श्रीराम के लिए इतनी बड़ी संख्या में कार्यकर्त्ता अयोध्या आएंगे, यह तो किसी को ठीक-ठीक पता भी नहीं था। लेकिन बाबरी मस्जिद को लेकर हिन्दू युवाओं में आक्रोश था और राम मंदिर प्रतिष्ठा का एक सजग स्वप्न भी, उसका ही परिणाम है कि हमारे देश में श्रीराम मंदिर का निर्माण, आज उसकी स्थापना और प्राण प्रतिष्ठा हो रही है।

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जैसा कि मैं पहले ही स्पष्ट किया कि हम उस समय बच्चे थे। मन बहुत ही कच्चा था। अयोध्या में बाबरी मस्जिद जब गिराई गयी और उसके बदले जो हमारे देश के कारसेवक कोठारी बंधुओं ने अपनी जान जोखिम में डालकर झंडा फहराया, आज उन्हें हर भारतीय को बहुत ही सच्चे मन से स्मरण करना चाहिए। उनके बलिदान को हमने जब महसूस किया तो यही लगा कि वे कारसेवक भारत की अस्मिता की लड़ाई लड़ने वाले थे। भारत के स्वत्व के लिए अपने आप को न्यौछावर कर देश की सांस्कृतिक अस्मिता के लिए स्वयं को समाप्त करने वाले लोग थे। उन्होंने भारत माँ का ऋण कैसे चुकाया जा सकता है, उसका सही रूप उन दिनों प्रकट किया था। वैसे तो देश में जितने कारसेवक अयोध्या जा रहे थे वे जगह-जगह कर्फ़्यू लगाकर रोक दिए जा रहे थे। उन्हें जेल में भर दिया जा रहा था। उस कच्चे मन और बच्चे के मन मस्तिष्क पर जो क्रूर आक्रामक रवैया का असर पड़ा, वह हमें तत्काल पता नहीं चला लेकिन उसके बाद जब अस्थि-कलश रथ निकले तो यह पता चला कि तत्कालीन सरकार बहुत ही घृणित कार्यवाई कर रही थी, जो भारतीय परिप्रेक्ष्य में निंदनीय ही कहा जा सकता है। उसका प्रभाव आज भी मन से गया नहीं। हमने जो गावों में अस्थि-कलश रथ आया, उसको देखा। वहां के लोमहर्षक तस्वीरें देखी, वे हमें अंदर तक हिला दी थीं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, हिन्दू युवा वाहिनी, विश्व हिन्दू परिषद्, शिवसेना दूसरे सम-विचारधारा के लोग और हिन्दू के लिए अपना शरीर, मन, धन एवं समर्पण करने वाले लोगों की गाँव-गाँव यह यात्रा थी जो यह बताने के लिए निकली थी कि भारत के हिन्दू मन जागृत हों, देश के लिए, अपनी अस्मिता के लिए, अपने हक़ के लिए, अपनी सभ्यता के लिए आगे आकर भारत के प्राचीन वैभव की प्राप्ति में सहयोग करो। वह भी हमें ‘राम हेतु वर्ष’ नज़र आता है। आज जब 2024 में श्रीराम मंदिर में भगवान् को साक्षात् स्थापित किया जा रहा है और प्राण प्रतिष्ठा की जा रही है तो भी हमें राम-वर्ष इस वर्ष को कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं लगता।

एक चौपाई श्रीरामचरितमानस में आती है ‘जब होई धरम की हानी, बाढ़हि असुर अधम अभिमानी, तब-तब धरि प्रभु विविध शरीरा, हरहि दयानिधि सज्जन पीरा’ अर्थात जब-जब पृथ्वी पर धर्म की हानि होती है, दुष्टों का प्रभाव बढ़ने लगता है, तब सज्जनों की पीड़ा हरने के लिए प्रभु का अवतार होता है।।।।यह जब महत्मा तुलसीदास लिख रहे होंगे तो उनके मन में साक्षात् ईश्वर के बोल गूँज रहे थे। उनकी असीम कृपा व सामीप्य तुलसीदास को जिस प्रकार प्राप्त हुई, आज वह भारत के करोड़ों भारतीयों को सही लगने लगी है। आज जब देश में प्रभु श्रीराम की प्राण प्रतिष्ठा हो रही है तो उन्हें यह लग रहा है कि ईश्वर ने अपने लिए जिन्हें माध्यम बनाया है, वे ईश्वर के ही दूत हैं। उनके ही आत्मीय-जन हैं। वे श्रीराम के लिए लड़े, और अब वे ही श्रीराम मंदिर निर्माण व उसकी स्थापना में जुटे हैं। वे ही प्राण-प्रतिष्ठा के लिए आगे आकर भारत की हिन्दू-प्रतिष्ठा को प्राणांत तक सुरक्षा व विस्तारित करने के लिए प्रतिबद्धता दिखा रहे हैं। आज चाहे कितनी भी आलोचना कोई करे लेकिन उनके कर्म अब श्रीराम के लिए बन गए हैं तो भला वे कैसे पीछे मुड़कर देख सकते हैं? बचपन की बातें जो ओझल होकर आज के वर्तमान को देख रही हैं तो निश्चय ही उनके त्याग की कीमत हमें समझ आ रही है जिन्होंने उन दिनों रथ-यात्रा की। जिन्होंने श्रीराम मंदिर के लिए चंदा एकत्रित किया। जिन्होंने श्रीराम के लिए जिया। यदि वे लोग त्याग नहीं करते तो आज यह दिव्य अवसर नहीं आता।

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जनश्रुति है, सच भी है कि भगवान् श्रीराम भारत के घट-घट में व्याप्त हैं। वे हमारी संस्कृति और सभ्यता में मर्यादापुरुषोत्तम के रूप में स्थापित हैं। आज जो पूरे विश्व में उनकी असीम कृपा से हमारे भारतीय गौरव की सनातन-संस्कृति पुष्पित-पल्लवित हो रही है, वह हमारी गरिमा है। वह हमारे देश की यश-गाथा है। उस श्रीराम की इस पुनीत धारा में आज जो हवा बह रही है, यह हर भारतीय के लिए गौरव की बात है कि वह इस अवसर का साक्षी बन रहा है। भगवान के दिव्या मंदिर और श्रीराम को महसूस कर रहा है। हमारे लिए अयोध्या प्रतीकों में थी, विवादों में थी, अब जीवंत अयोध्या के हम साक्षी बनने जा रहे हैं। अतीत के जो भी कटु अनुभव थे हमारे, वे मिटने जा रहे हैं। वे कटु अनुभव सदैव हम स्मरण रखेंगे, लेकिन मंदिर स्थापना के साथ लोगों को जो आत्मसम्मान मिलेगा, उससे निःसंदेह हम आत्मबोध से भर जाएंगे।

इस आत्मबोध का ही अर्थ है राम। आज सभ्यताओं का विश्व के विभिन्न भागों में संघर्ष चल रहा है, ऐसे समय में भारत आत्मबोध की ओर बढ़ रहा है। विश्व में अपनी अलग पहचान के साथ अभिजीत बनने जा रहा है। विश्व के लिए मार्गदर्शक बनने जा रहा है। कदाचित हम भारतीय ऐसा बहुत पहले से प्रतिष्ठित होने का प्रयास किए होते तो देश अब तक बहुत अधिक समृद्धि के साथ प्रतिष्ठित होता लेकिन वर्तमान नेतृत्व ने जिस प्रकार अपने देश के श्रीराम में विश्वास करने वालों के आत्मसंघर्ष को ध्यान में रखकर नवलय स्थापित किया है वह आने वाले समय में और भी भारत को गरिमा प्रदान करेगा। हमारे देश के हर नागरिक को यह चाहिए और समय की मांग भी है कि इस सामूहिक श्रीराम प्रकाशपुंज से उर्जस्वित होकर सनातन संस्कृति के ध्वज को गगनचुंबी बनाएं जिससे हमारा देश भारत सकारात्मक ऊर्जा के साथ आगे बढ़ सके, यही हर भारतीय का कर्त्तव्य भी है। निःसंदेह अतीत के त्याग से भारत हर्ष तक की यात्रा है, जिसे हर भारतीय को करना ही चाहिए।

लेखक : भारत गणराज्य के महामहिम राष्ट्रपति जी के विशेष कार्य अधिकारी रह चुके हैं। आप केंद्रीय विश्वविद्यालय पंजाब में चेयर प्रोफेसर, अहिंसा आयोग व अहिंसक सभ्यता के पैरोकार हैं।

 

 

 

 

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