सतयुग, त्रेता और द्वापर युग से जुड़ी है छठ पूजा की कहानी, द्रौपदी, माता सीता समेत रामजी ने भी रखा था छठ का व्रत

  • सूर्यदेव की उपासना और लोकआस्था का महापर्व
  • महाभारत और रामायण काल से मानी जाती है छठ पर्व की शुरुआत

उमेश चन्द्र त्रिपाठी

महराजगंज। हिंदू धर्म में कई तीज-त्योहार मनाए जाते हैं। इसमें महापर्व छठ का विशेष महत्व होता है। यह हिंदुओं का प्रमुख त्योहार होता है, जिसे देश ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी मनाया जाता है। छठ में हिन्दुओं के अन्य पर्व की तरह मूर्ति पूजा का महत्व नहीं है। यह सूर्य देव की उपासना और प्रकृति से जुडा पर्व है। यह पर्व सूर्य, उषा, प्रकृति, वायु, जल और देवी षष्ठी (सूर्यदेव की बहन) को समर्पित होता है। प्रत्येक साल कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी को यह पर्व मनाया जाता है। इस साल छठ पर्व की शुरुआत 19 नवंबर से शुरू होकर 20 नवंबर को समाप्त होगी।

बता दें कि हिंदू धर्म से जुड़े प्रत्येक त्योहार की विशेषता यह होती है कि इनसे कुछ पौराणिक कथाएं जरूर जुड़ी होती हैं, जो इसके महत्व को और बढ़ा देती है। यदि बात करें छठ पूजा के शुरुआत की तो, छठ पूजा से संबंधित कई पौराणिक कथाएं मिलती हैं। दिल्ली के आचार्य गुरमीत सिंह जी बताते हैं कि छठ पर्व की शुरुआत महाभारत और रामायण काल से मानी जाती है। इसे लेकर कई कथाएं भी प्रचलित हैं, जो इस प्रकार हैं।

रामायण काल से संबंधित छठ पर्व की कथा

रामायण ग्रंथ के एक भाग में छठ पूजा के महत्व के बारे में बताया गया है। इसके अनुसार 14 वर्ष वनवास के बाद जब भगवान राम और माता सीता अयोध्या लौटे तो उन्होंने रावण वध के पाप से मुक्त होने के लिए ऋषि-मुनियों के आदेश पर राजसूय यज्ञ कराया। इसके लिए मुद्गल ऋषि ने भगवान राम और सीता को अपने आश्रम में बुलाया। मुद्गल ऋषि ने मां सीता को कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी तिथि को सूर्य देव की उपासना का आदेश दिया। तब माता सीता और भगवान राम ने मुद्गल ऋषि के आश्रम में ही रहकर छह दिनों तक उपवास किए और सूर्य देव की उपासना की। महाभारत काल से संबंधित छठ पर्व की कथा सनातन धर्म का सबसे लोकप्रिय ग्रंथ महाभारत में भी छठ पूजा के महत्व को दर्शाया गया है, जिसके अनुसार शूरवीर कर्ण भगवान सूर्य के भक्त थे। उन्होंने ने ही सूर्य देव की उपासना की शुरुआत की थी। कथाओं के अनुसार, कर्ण प्रात:काल घंटों कमर तक पानी में रहकर भगवान सूर्य को अर्घ्य देते थे। सूर्यदेव के आशीर्वाद और कृपा से ही वे महान योद्धा बने।

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एक अन्य कथा के अनुसार द्रौपदी ने भी छठ व्रत को किया था। पांडव जब अपना सारा राजपाट जुए में हार गए थे। तब द्रौपदी ने पांडवों को राजपाट वापस दिलाने की मनोकामना के साथ छठ व्रत किया, जिसके प्रभाव से पांडवों को पुन: राजपाट वापस मिल गया।

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