राष्ट्रीय पत्रकारिता दिवस पर विशेष : मीडिया के आदि गुरु थे देवर्षि नारद

बलराम कुमार मणि त्रिपाठी
बलराम कुमार मणि त्रिपाठी

लोकतंत्र का चौथा स्तंभ मीडिया है। वैदिक काल से चारो युगो में लोक की पीड़ा को त्रिभुवन पति तक पहुंचाने वाले और त्रिभुवन पति का संदेश लोक में पहु़चाने वाले पत्रकारों के आदि गुरु देवर्षि नारद थे। उन्होंने  ब्रह्मा से समस्त वेदों को सुना। जो कुछ तीनों देवताओं से सुना लोक को सुनाया। उन्होंने महर्षि वेदव्यास को सुनाया। जिसे उन्होंने पुस्तक का रूप दिया ।राज तंत्र हो या लोक तंत्र सामाजिक मर्यादाओं का पालन कर ही समाज आगे बढ़ सकता है‌। मीडिया का काम लोक के पक्ष को पीड़ितों की आवाज को शासन तक पहुंचाये और शासक से उसका निदान मांगे। नारद ने जो भी विकट समस्या  आई उसके लिए ब्रह्मा,विष्णु या महेश से गुहार लगाई।

देवर्षि  नारद ने प्रथम मीडिया पर्सन के रूप में लोक में जो भी पीड़ित और उपेक्षित हुआ उसे उत्तम रास्ता सुझा कर उसका कल्याण किया-

“नारद देखा विकल जयंता लागि दया कोमल चित संता। पठवा तुरत राम पहिं ताही।”- इंद्र के पुत्र जयंत ने सीता के चरणों में चोंच मार घायल कर दिया। राम ने बिना नोक के सींक का वाण मारा। वह भागता फिरा कोई मददगार नहीं हुआ। ब्रह्मा भी मुकर गए। पिता ने भी डर कर भगा दिया। तब नारद ने उसे बेस्ट सलूशन दिया और राम की शरण में जाने को कहा। जिससे उसकी जान बच गई। ध्रुव उपेक्षित हुआ। विमाता सुरुचि ने राजा के गोद में बैठने से मना कर दिया। बालक रोता हुआ अपनी मां के पास गया। मां भी रोने लगी। फिर उसने भगवान की शरण में जाने को कहा। इसके बाद क्या करना है? उसका रास्ता अज्ञात पथ पर जारहे छोटे से बालक को नारद जी ने रास्ता सुझाया। उसे लक्ष्य तक पहुंचाया।

शासन की घोषणायें समाज तक पहुंचाने की भी जिम्मेदारी मीडिया की है। जहां अनीति देखी नारद जी ने हाल ले लिया। सरस्वती,लक्ष्मी,पार्वती ने परीक्षा लेने अपने पतियों को सती अनुसुइया के पास भेजा। अजीबो गरीब परीक्षा थी। अनुसुईया ने तीनो को शिशु बना दिया। साल भर देवियां अपने पति का पता नहीं पासकी ।उन खोये पतियों का पता नारद जी ने बताया। लोकशन मिलने पर फिर तीनो देवियां  गईं। सती अनुसुइया से माफी मांगी और पति को वापस लाई।

‘एकदा नारदौ योगी परानुग्रह कांक्षिणौ भ्रामयन विविधान् लोकान् …..”कहते हुऐ हर‌ लोक में जाने और दूसरों का हित करने की चर्चा है। ये ब्रह्मा के मानस पुत्र माने जाते हैं। देवता दैत्य सभी इनका सम्मान करते थे। सतयुग में हिरण्य कशिपु और हिरण्याक्ष दो भाई थे जो तप करने गये थे। हिरण्य कशिपु की पत्नी कयाधू गर्भवती थी। नारद जी कयाधू के पास पहुंचे बताया तुम्हारा लड़का वैष्णव भक्त होगा। गर्भ मे रहते हुए ही उसे विष्णु की उपासना ,सिखा दी। जिससे हिरण्यकशिपु का कल्याण हुआ। नृसिंह के रुप में प्रभु का नया अवतार हुआ।

मीडिया पर्सन को निष्पक्ष होना चाहिए साथ किसी से कुछ मी डिमांड नहीं करना चाहिए। इस बात का सबक भी उनके चरित्र से मिलता है। एक बार उन्होंने अपनी शादी की इच्छा जताई और वर के लिए उपयुक्त सुंदरता श्रृंगार त्रिभुवन के स्वामी से मांग लिया। सुंदरता नहीं मिली उल्टे उन्हें  उपहास ही मिला। फिर उन्होंने दुबारा इच्छा ही नही़ जताई। त्रिभुवन पति के अच्छे कार्यों की सराहना की पर उनके गलत कार्य की निंदा से भी नहीं चूके,बल्कि कटु आलोचना की। “भले घरे तुम बायन दीन्हां। पावहुगे तुम आपन कीन्हां।” परम स्वतंत्र न सिर पर कोई। भावहि मनहिं करहु जोई सोई। विरोध के बावजूद सदा लोकहित करने वाले त्रिभुवन के स्वामी का नाम लेते रहे। उनकी निष्पक्ष आलोचना की। देवर्षि नारद धर्म और तत्कालीन संवैधानिक मर्यादाओं को सबको बताया और सब के हित की कामना की। इसीलिए देवता,राक्षस या मनुष्य कोई विरोध करने वाला न था,सभी कि सम्मान भाजन बने। हर जगह सुरक्षित रहे।

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