खेल में सियासत का घालमेल? मैदान को मस्जिद न बनायें !!

के. विक्रम राव
के. विक्रम राव

सज्जनों और सत्पुरुषों का खेल है क्रिकेट। लंबी परिपाटी रही ऐसी ही। मगर इस तेरहवें विश्व कप श्रृंखला के दौरान क्रिकेट में सांप्रदायिक राजनीति घुसा दी गई। पाकिस्तान ने की। असह्य थी। टाली जा सकती थी। ऐसा नग्न नृत्य भारत की खेल भूमि पर खुलेआम हुआ। इससे शत्रुता तीव्रतर हुई। वैमनस्य गहराया।
पाकिस्तान के विकेटकीपर-बल्लेबाज मोहम्मद रिजवान का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ। पाकिस्तान और नीदरलैंड्स के बीच हैदराबाद में हुए वर्ल्ड कप मैच में रिजवान मैदान पर नमाज अता करते दिखे।

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पाकिस्तान ने जीत के साथ वर्ल्ड कप 2023 की शुरुआत की है। ड्रिंक्स ब्रेक हुआ। पाकिस्तान टीम के अन्य खिलाड़ी एक तरफ सुस्ता रहे थे। वहीं रिजवान अपने पैड और जूते उतारकर नमाज अता करने लगे।
मगर किस्सा इतने पर ही समाप्त नहीं हुआ। आगे तक बढ़ा। अगले मैच में पाकिस्तान की विजय को रिजवान ने हमास आतंकियों के नाम समर्पित कर कर दिया। हमास आतंकियों ने इस्राइल की जनता पर पांच सौ राकेट दागे थे। सैकडों निर्दोष नागरिक काल कवलित हो गए थे। विश्व और मोदी सरकार ने हमास की निंदा की थी। आम दस्तूर यही था कि राजनीतिक विवादों से क्रिकेट हमेशा दूर रहे। मगर इस बार वातावरण में तनाव था। बदलाव भी। अब रिजवान ने शुरू किया तो उसकी प्रतिध्वनि जरूर सुनाई दी।

रिजवान के बाद अफगानिस्तान के सलामी बल्लेबाज मोहम्मद इब्राहिम जादरान ने भी वैसी ही दुहरा दी। तब उन्हें प्लेयर ऑफ द मैच से नवाजा गया था। यह अवॉर्ड जदरान ने उन अफगानी बागी शरणार्थियों को समर्पित किया, जिन्हें पाकिस्‍तान से निकाला जा रहा था। जदरान ने पाकिस्‍तान पर ऐतिहासिक जीत के बाद यह बयान दिया था, जो सोशल मीडिया पर तुरंत वायरल हो गया। अफगानिस्तान ने वर्ल्‍ड कप 2023 के 22वें मैच में पाकिस्‍तान को 6 गेंदें शेष रहते 8 विकेट से मात दी। चेन्नई के एमए चिदंबरम स्‍टेडियम पर खेले गए मुकाबले में पाकिस्तान ने पहले बल्‍लेबाजी करके 50 ओवर में सात विकेट खोकर 282 रन बनाए। जवाब में अफगानिस्तान ने 49 ओवर में दो विकेट खोकर लक्ष्य हासिल किया। अफगानिस्तान ने वनडे इतिहास में पहली बार पाकिस्तान को मात दी। इससे पहले दोनों टीमों के बीच कुल 7 वनडे खेले गए थे, जिसमें हर बार पाकिस्तान ने जीत दर्ज की थी। अफगानिस्तान ने बड़े मंच पर पाकिस्‍तान को धूल चटाई और क्रिकेट जगत को हैरान कर दिया।

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पाकिस्तान ने इन अफगन शरणार्थियों को (बुद्धवार, 1 नवंबर) तक देश छोड़ने का आदेश दिया है। खामा प्रेस के मुताबिक पाकिस्तान के राज्‍य से चलने वाले रेडियो में जानकारी दी गई कि 3,248 अफगानी रिफ्यूजी को 21 अक्टुबर को अफगानिस्तान भेजा गया। अन्य रिपोर्ट्स में कहा गया कि 51,000 से ज्यादा अफगानियों को पाकिस्तान से वापस भेजा गया क्योंकि उनके पास प्रवासी दस्तावेज नहीं थे। तालिबान की सत्ता कायम होने के बाद की बात है। अफगानिस्तान में तालिबान के राज के बाद वहां रह रहे कई लोगों ने अफगानिस्तान छोड़ पाकिस्तान के पश्चिमी हिस्से में शरण ली थी। कई लोग काफी पहले से वहां रह रहे थे। लेकिन तालिबानी सरकार से पाकिस्तान के रिश्ते खराब होने के बाद उन्होंने उन शरणार्थियों को वहां से निकाल दिया। अफगानिस्तान पिछले दो सालों से आतंक के साए में जी रहा है।

अब सिलसिला चला तो बात से बतंगड़ बना। अगर इस्लामी पाकिस्तान ने इस्लामी अफगानिस्तान से आए शरणार्थियों को वापस काबुल भेज दिया तो वे सब कट्टर तालिबानी द्वारा उत्पीड़ित किए जाएंगे।
यूं तो हर शांतिप्रिय भारतीयों को जादरान के विरोधाभासी कदम से हमदर्दी होगी। कारण है कि तालिबानी शासन के कट्टर आलोचक ही पाकिस्तान में शरण लेकर आए थे। उन्हें क्रूर, नृशंस, तालिबानी तानाशाहों के सिपुर्द करना मानवता के हर सिद्धांत की अवहेलना होगी। ऐसे अफगन शरणार्थियों को काबुल पहुंचते ही वहां के चौराहे पर गोलियों से भून दिया जाएगा। इन सब की मौत तय है। उनकी सुरक्षा केवल पाकिस्तान में ही संभव है। इसीलिए जादरान का कदम मानवीय है। लोकहितकारी है। तुलना में मैदान पर ही धार्मिक अनुष्ठान करना खेल की भावना को संकीर्ण बनाना होगा। रिजवान की बेजा हरकत को इसी आधार पर खारिज करना और उसकी भर्त्सना करना आवश्यक है।

रिजवान और जादरान की समानता नहीं की जा सकती। एक विरोधाभास यहां यही है कि पाकिस्तान एक इस्लामी राष्ट्र है। अतः उसकी दृष्टि में मजहब और सियासत में घालमेल क्षम्य है। अपराध नहीं। बस इसी सोच से रिजवान प्रभावित रहे। हालांकि अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट नियमों के अनुसार साधारण सी धार्मिक अभिव्यक्ति भी वर्जित है, जिससे किसी प्रकार का वैषम्य उभरता अथवा झलकता दिखता हो।

इन दोनों इस्लामी राष्ट्रों के विवादास्पद प्रकरणों में भारत की क्षति होना स्वाभाविक है। विश्व पटल पर भारत की छवि एक धर्मनिरपेक्ष, तटस्थ और मानवीय वाली है। हालांकि भारत तो पाकिस्तान के आतंकवादी विदेश नीति का शिकार रहा। क्रूर तालिबानियों का विरोध करना राष्ट्र की पारंपरिक नीति है। अतः शरणार्थियों के मसले पर भारत जादरान का पक्षधार ही रहेगा। इतना तो स्पष्ट है ही कि सेक्युलर भारत द्वारा रिजवान का हमास आतंकियों से हमदर्दी तथा मैदान पर नमाज आदि का प्रदर्शन कदापि सराहनीय या स्वीकार्य नहीं हो सकता है। भारत का लक्ष्य और ध्येय इस विवाद में साफ है, श्वेत भी। इसीलिए भारत का जनमत धर्म और खेल के बीच तार्किक दूरी बने रहने का पक्षधर है। मोहम्मद रिजवान को समझना होगा कि वह कराची अथवा लाहौर में नहीं, वरन गंगा जमुनी संस्कृति वाले हैदराबाद में हैं। भले ही यहां मुसलमान बहुसंख्यक हों पर उन्हें सेक्युलर नजरिया रखना और मानना पड़ेगा। अगर भारत में रहना है तो !

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