बलराम कुमार मणि त्रिपाठी
गर्भस्थ शिशु को जन्म देने के बाद..संतान होने पर नारी माता की संज्ञा पाती है। जब महादेवी ने स्कंद को जन्म दिया तो वे देवी मां कहलाईं। नवरात्र की पंचमी में देवी को स्कंद माता कह कर पूजित किया गया। यह नारी का पांचवां स्वरूप है।
शरीर से शरीर का जन्म देना एक जटिल कार्य रहा,इहीलिए स्त्रियो को कठोर व्रत करा कर हर परिस्थिति का सामना करने के लिए सुयोग्य बनाया गया। उसमे पीड़ा सहने का असीम शक्ति है। धैर्य है,सहन शीलता है। बिना खाये पिये रह पाना,इतनी पीड़ा सह पाना पुरुष वर्ग के लिए संभव नहीं। वह जन्मदात्री मां है। इसीलिए ऋषियो ने नारी को हर रूप मे सम्मान देने का आग्रह किया-
यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता:।
यत्र एता न पूज्यंते सर्वा तत्राफला: क्रिया:।।