मातृभाषा से होगा भारतबोध

ऋचा सिंह
    ऋचा सिंह

लखनऊ। हमारी भाषा हमारे अपने व्यक्तित्व का प्रतिबिंब है। भाषा वैचारिक आदान-प्रदान का माध्यम है, भाषा अभिव्यक्ति का सर्वाधिक  विश्वसनीय माध्यम है। भाषा हमारे समाज के निर्माण, विकास, अस्मिता, सामाजिक व सांस्कृतिक पहचान की महत्वपूर्ण साधन है। हम कह सकते हैं कि बिना भाषा के मानव जीवन अपूर्ण है। भाषा का विस्तार एवं विकास मनुष्य का अपना ही विकास है। भाषा ही पारस्परिक ज्ञान ,संबंध, प्राचीन सभ्यता और आधुनिक प्रगति के बीच एक सेतु का कार्य करती है। इसके दोनो लिखित और मौखिक रूप के बिना मनुष्य जीवन की कल्पना ही नहीं की जा सकती है। स्वयं को व्यक्त करने की उत्कंठा ने ही मनुष्य को व्यक्ति की संज्ञा दे दी यही वो विशेषता है जिसने हमे सभी प्राणियों में  सर्वोच्च स्थान दिया है। भाषा शिक्षक  के रूप में एक शिक्षक अपने छात्रों के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण और विशेष होता है। अपनी प्रथमिक कक्षाओं में भाषा शिक्षक जिन्होंने हमें पहली बार पढ़ना लिखना सिखाया उन्हें हम कभी नहीं भूल पाते। यूं तो बच्चा अपने घर परिवार तथा आसपास बोली जाने वाली भाषा को सुनकर बोलकर स्वतः ही भाषा सीख लेता है किंतु शुद्ध लिखना और बोलना, भाषा शिक्षण से ही सीखा जा सकता है। जिसमें शिक्षक और विद्यालय की महत्वपूर्ण भूमिका है। विद्यालय में ही छात्रों में मौलिक वाक्य संरचना की योग्यता का विकास होता है, जो शुद्ध लिखने बोलने के कौशल से युक्त और संपन्न करता है।

इसलिए भाषा शिक्षण में विद्यालय और शिक्षक की भूमिका महत्वपूर्ण है। भाषा ही ज्ञान का आधार है। हर भाषा का अपना स्वभाव होता है, भाषा के इसी स्वभाव को ध्यान में रखकर उसके अपने-अपने आदर्श स्वरूप होते हैं। शिक्षक का कर्तव्य है की भाषा की भूमिका को समझें और बच्चों को भाषा की भूमिका को समझाएं। जब विद्यार्थी में भाषा के प्रति प्रेम बढ़ता हैं तब उसे पुष्पित पल्लवित होते देखकर शिक्षक गर्वित हुए बिना नहीं रह पाते। भाषा व्यक्तित्व निर्माण में बहुत सहायक है। पहले बच्चे पढ़ना सीखते हैं और फिर सीखने के लिए पढ़ते हैं। अन्य विषयों के ज्ञान को भाषा ही दिशा प्रदान करती है जिसके लिए प्रारम्भिक कक्षाओं से ही बच्चों को तैयार करने की आवश्यकता है, हिंदी पढ़ाते हुए बच्चों में मनुजता की दृष्टि विकसित करना मुख्य उदेश्य होना चाहिए। हिंदी पढाने का उद्देश्य ही जीवन को समझना है जो एक सभ्य समाज का निर्माण करता है। भाषा की उपयोगिता के अनेक आयाम है। जब बच्चों की अपने भाषा में रुचि बढ़ेगी तब अपनी भाषा के प्रति उन्हें गर्व होगा। यह भाव जब तक एक शिक्षक के रूप में हम बच्चों के अंदर नहीं उपजाएंगे  तब तक भाषा शिक्षक के रूप में सफल नहीं होंगे और न ही तबतक बच्चे अपने जीवन में भाषा की भूमिका को समझ पाएंगे।

वर्तमान समय में ज्ञान, विज्ञान समुद्र की गहराइयों से लेकर सौरमंडल  को अपनी परिधि में निरंतर बांधने  का प्रयास  कर रहा है। वहीं दूसरी ओर बच्चों में भाषा संरचना का स्वरूप  बिखरता हुआ प्रतीत रहा है। जिसमें कसाव लाने की नितांत आवश्यकता है। इसके पीछे बहुत से कारण है जिसमें एक कारण यह भी है कि हम भाषा को सिर्फ विषय के रूप में पढ़ा रहे हैं। जबकि बच्चों में समझ के साथ पढ़ने और अपनी भाषा को इस तरह से देखने की के हम भाषा के माध्यम से ही अपने समाज का निर्माण करते हैं, अपने समाज को खड़ा करते हैं, अपने चारों तरफ एक वातावरण निर्मित करते हैं। ऐसी समझ देने की नितांत आवश्यकता है। आज भाषा को विषय के रूप में पढ़ते हुए उसके वास्तविक स्वरूप को पहचाना कर उसे समझने का प्रयत्न छोड़ दिया गया है। जबकि भाषा ही व्यक्तित्व को सजाता, सवारता,आकर्षक और प्रभावशाली बनाता है। हम शिक्षकों की जिम्मेदारी है कि बच्चों को भावी जीवन के लिए एवं बाहरी दुनिया से संवाद स्थापित करने के लिए तैयार करें। भाषा की समृद्ध समझ के लिए तैयार करें। बच्चों की विचार शक्ति भाषा से ही समृद्ध होती है। शब्द भंडार समृद्धि करना, इसे रोचक बनाना ,बच्चों की भाषा की दक्षता को बढ़ाना है।  जिसमें मुख्य रूप से बच्चों के प्रारंभिक कक्षाओं के शिक्षकों की भूमिका महत्वपूर्ण है।

जब एक बच्चा अपनी प्रारंभिक कक्षाओं से ही  अपनी भाषा को अच्छे से समझता है तो भाषा में अनुशासन, कौशल विकास सरलता, सुगमता, स्पष्ट और शुद्धता के व्यावहारिक विश्लेषण के साथ ही अपनी भाषा को संगठित और शुद्ध रूप से बोलने और लिखने के लिए दक्षता हासिल कर लेता है। जो उसके बाहरी समाज से संवाद स्थापित करने में सहायक होता है। यह उसके व्यक्तित्व को निखारते हुए उसकी बाहरी दुनिया में और आगे की शिक्षा अर्जन करने के लिए  आत्मविश्वास देता है। व्यवहारिक तौर पर देखें तो जीवन में प्रयोग होने वाले कुछ अशुद्ध शब्द इस तरह से भाषा में समाहित हो गए हैं  जिन्हें मानक भाषा से अलग कर पाना कठिन प्रतीत होता हो रहा है। इसलिए शिक्षकों का दायित्व है कि बच्चों को भाषा के शुद्ध रूप का ज्ञान काराए।

इस कार्य में शिक्षकों की अहम भूमिका है। भाषा के माध्यम से ही व्यक्ति मानवीय संवेदनाओं से जुड़ता है। भाषा ही व्यक्ति को मनुजता में व्यक्त होने का कौशल प्रदान करती है। भाषा अभिव्यक्ति के माध्यम के साथ ही अनुभूति का भी माध्यम है। जो बोला जा रहा है और जो ग्रहण किया जा रहा है जो समझा जा रहा है क्या उसमें अंतर है यदि अंतर है तो इसका मतलब भाषा का ठीक प्रकार से प्रयोग नहीं किया गया है। जब भाषा की अभिव्यक्ति के साथ अनुभूति की जाती है और इसकी समझ होती है तब भाषा में रचनात्मक का विकास होगा तभी भाषा अपने आप को आदर्श रूप को व्यक्त करेगी। भाषा सिर्फ शब्दांकन नहीं है। यह हमारे परिवेश समाज का प्रतिबिंब है। जब हम अपनी बात को रखते हैं और  अपनी भाषा को व्यक्त करते हैं तब हम एक समाज का निर्माण करते हैं इसलिए भाषा की जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका है । एक शिक्षक के तौर पर कक्षाओं में पढ़ते और पढ़ाते वक्त हिंदी शिक्षक के तौर पर हम भाषा को सिर्फ विषय के रूप में ना देखें हम भाषा को एक जीवन की तैयारी के रूप में देखें क्योंकि कक्षाओं में जब बच्चे पढ़ते हैं तो अन्य विषयों को भी पढ़ने के लिए वह भाषा की ही तैयारी करते हैं।

वर्तमान में उत्तर प्रदेश, बेसिक शिक्षा विभाग में निपुण उत्तर प्रदेश बनाने के प्रयास चल रहे हैं जिसके अंतर्गत भाषा को समझ के साथ पढ़ने और इसके शिक्षण शास्त्र पर विशेष बल दिया जा रहा है यह एक सराहनीय कदम है। इस मिशन ने शिक्षको, अभिभावकों, बच्चों और शिक्षा से सरोकार रखने वाले हर अधिकारी और जन सामान्य का ध्यान भाषा की ओर आकृष्ट किया है कि बच्चे के सीखने की बुनियादी दक्षता में भाषा का क्या महत्व है। इस मिशन में हिंदी पर विशेष बल देते हुए बच्चों की बुनियादी शिक्षा को उनकी मातृभाषा में किए जाने पर भी बल दिया गया है जो स्वागत योग्य और सराहनीय है।

आज आवश्यकता है की हिंदी बस विषय के रूप मे ही नहीं भाषा के रूप मे पढ़ाया जाये। बच्चों को  हिंदी पढ़ाने के साथ एक स्पष्ट दृष्टि देने की आवश्यकता है। बच्चों को हिंदी पढ़ते हुए आदर्श हिंदी के स्वरूप को समझते हुए कविता,कहानी रचना भावाभिव्यक्ति एवं लिखित सामग्री को पढ़ कर भावो के समझ का गहरापन लाने के कौशल की दक्षता सिखानी होगी। देखा जाये तो हिंदी एक विषय से कहीं आगे है, हिंदी के साथ ही हम बच्चो को जीवन जीने की दृष्टि प्रदान करते हुए व्यवहारिक समझ विकसित करते हैं । इसलिए प्रश्न पूछने नम्बर पाने की होड़ से कहीं आगे है हिंदी। यह बस विषय के रूप मे बस्ते मे बंद नहीं होना चाहिए बल्कि कौशल के रूप मैं व्यवहार में परिलक्षित होना चाहिए। बच्चों में प्रकृति के सुकुमार कवि को पढ़ेंते हुए प्रकृति के प्रति प्रेम और कृतज्ञयता का भाव जागृत हो, देश प्रेम कि कविता पढ़ते हुए देशभक्ति के भाव के साथ सुयोग्य नागरिक बनने के संकल्प का भाव जगे , कहानी पढ़ते हुए ज्ञान का स्थिति के साथ कैसे प्रयोग करना है इसका कौशल विकसित हो।ऐसे भावी नागरिकों का निर्माण करने में  हिंदी भाषा अत्यंत सहायक है। हिंदी क्यों और कैसे पढाना, पढ़ना है इस पर चिंतन होना चाहिए।

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