संतान सप्तमी: व्रत के प्रभाव से संतान के दुख और परेशानियों का होता है निवारण,

नया लुक ब्यूरो

यह व्रत संतान प्राप्ति एवम उनकी रक्षा के उद्देश्य से किया जाता हैं। संतान सप्तमी के व्रत के प्रभाव से संतान के समस्त दुःख, परेशानीयों का निवारण होता है।

संतान सप्तमी व्रत

संतान सप्तमी का व्रत माताएं अपनी संतानों की लंबी आयु के लिए रखती है। इस वर्ष संतान सप्तमी का त्यौहार 22 सितंबर को मनाया जाएगा।

संतान सप्तमी 2023 शुभ मुहूर्त, एवं तिथि…

सप्तमी तिथि 21 सितंबर 2023 को दोपहर 02 बजकर 14 मिनट पर शुरू होगी और अगले दिन 22 सितंबर 2023 को दोपहर 01 बजकर 35 मिनट पर समाप्त होगी। पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 07 बजकर 35 मिनट से सुबह 09 बजकर 10 मिनट के बीच। इसके अलावा दोपहर में 01 बजकर 55 मिनट से शाम 05 बजकर 05 मिनट तक भी संतान सप्तमी की पूजा की जा सकती है।
संतान सप्तमी का व्रत क्यों किया जाता हैं। यह व्रत स्त्रियाँ पुत्र प्राप्ति की इच्छा के लिए करती हैं। यह व्रत संतान के समस्त दुःख, परेशानी के निवारण के उद्देश्य से किया जाता हैं। संतान की सुरक्षा का भाव लिये स्त्रियाँ इस व्रत को पुरे विधि विधान के साथ करती हैं।यह व्रत पुरुष अर्थात माता पिता दोनों मिलकर संतान के सुख के लिए रखते हैं।

संतान सप्तमी व्रत विधि

भाद्रपद शुक्ल पक्ष की सप्तमी के दिन प्रातः जल्दी उठकर स्नान कर माता-पिता संतान प्राप्ति के लिए अथवा उनके उज्जवल भविष्य के लिए इस व्रत का प्रारंभ करते हैं। यह व्रत की पूजा दोपहर तक पूरी कर ली जाये, तो अच्छा माना जाता हैं।
प्रातः स्नान कर, स्वच्छ कपड़े पहनकर विष्णु, शिव पार्वती की पूजा की जाती हैं। दोपहर के वक्त चौक बनाकर उस पर भगवान शिव पार्वती की प्रतिमा रखी जाती हैं। इनकी पूजा कर उन्हें चढ़ाया गया प्रसाद ही ग्रहण किया जाता है, और पूरे दिन व्रत रखा जाता है.

संतान सप्तमी पूजा विधि

शिव पार्वती की प्रतिमा का स्नान कराकर चन्दन का लेप लगाया जाता हैं। अक्षत,  फल (नारियल), सुपारी अर्पण की जाती हैं।दीप प्रज्वलित कर भोग लगाया जाता हैं। संतान की रक्षा का संकल्प लेकर भगवान शिव को डोरा बांधा जाता हैं। बाद में इस डोरे को अपनी संतान की कलाई में बाँध दिया जाता हैं। इस दिन भोग में खीर, पूरी का प्रसाद चढ़ाया जाता हैं। भोग में तुलसी का पत्ता रख उसे जल से तीन बार घुमाकर भगवान के सामने रखा जाता हैं। परिवार जनों के साथ मिलकर आरती की जाती हैं। भगवान के सामने मस्तक रख उनसे अपने मन की मुराद कही जाती हैं। बाद में उस भोग को प्रसाद स्वरूप सभी परिवार जनों एवं आस पड़ोस में वितरित किया जाता हैं।

संतान सप्तमी व्रत कथा

संतान सप्तमी व्रत की कथा पति पत्नी साथ मिलकर सुने तो अधिक प्रभावशाली होती है। इस व्रत का उल्लेख श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर के सामने किया था। व्रत करने का महत्व लोमेश ऋषि ने उनके माता पिता (देवकी वसुदेव) को बताया था। माता देवकी के पुत्रो को कंस ने मार दिया था, जिस कारण माता पिता के जीवन पर संतान शोक का भार था, जिससे उभरने के लिए उन्हें संतान सप्तमी व्रत करने को कहा गया।

लोमेश ऋषि द्वारा संतान सप्तमी की व्रत कथा

अयोध्या का राजा था नहुष। उनकी पत्नी का नाम चन्द्र मुखी था। चन्द्र मुखी की एक सहेली थी, जिसका नाम रूपमती था। वो नगर के ब्राह्मण की पत्नी थी। दोनों ही सखियों में बहुत प्रेम था। एक बार वे दोनों सरयू नदी के तट पर स्नान करने गयी। वहाँ बहुत सी स्त्रियाँ संतान सप्तमी का व्रत कर रही थी। उनकी कथा सुनकर दोनों सखियों ने भी पुत्र प्रप्ति के लिए इस व्रत को करने का निश्चय किया, लेकिन घर आकर वे दोनों भूल गई। कुछ समय बाद दोनों की मृत्यु हो गई और दोनों ने पशु योनी में जन्म लिया।
कई जन्मो के बाद दोनों ने मनुष्य योनी में जन्म लिया। इस जन्म में चन्द्रवती का नाम ईश्वरी एवम रूपमती का नाम भूषणा था। इश्वरी राजा की पत्नी एवं भुषणा ब्राह्मण की पत्नी थी।

इस जन्म में भी दोनों में बहुत प्रेम था। इस जन्म में भूषणा को पूर्व जन्म की कथा याद थी, इसलिए उसने संतान सप्तमी का व्रत किया, जिसके प्रताप से उसे आठ पुत्र प्राप्त हुए। लेकिन ईश्वरी ने इस व्रत का पालन नहीं किया, इसलिए उनकी कोई संतान नहीं थी। इस कारण उसे भूषणा से ईर्ष्या होने लगी थी। उसने कई प्रकार से भूषणा के पुत्रों को मारने की कोशिश की, लेकिन भुषणा के व्रत के प्रभाव से उसके पुत्रो को कोई क्षति ना पहुँची। थक हार कर ईश्वरी ने अपनी ईर्ष्या एवं अपने कृत्य के बारे में भुषणा से कहा और क्षमा भी माँगी तब भुषणा ने उसे पूर्वजन्म की बात याद दिलाई और संतान सप्तमी के व्रत को करने की सलाह दी। ईश्वरी ने पुरे विधि विधान के साथ व्रत किया और उसे एक सुंदर पुत्र की प्राप्ति हुई। इस प्रकार संतान सप्तमी के व्रत का महत्व जानकर सभी मनुष्य पुत्र प्राप्ति एवं उनकी सुरक्षा के उद्देश्य से इस व्रत का पालन करते हैं।

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