क्या हिंदू और हिंदुत्व खतरे में है?

डॉ. ओपी मिश्र

पिछले दिनों मैंने ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ और ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में एक समाचार पढ़ा जो विश्व हिंदू परिषद की एक वरिष्ठ पदाधिकारी के माध्यम से लिखा गया था। समाचार का आशय यह था कि विश्व हिंदू परिषद सितंबर माह के अंतिम सप्ताह से दिसंबर के अंतिम सप्ताह तक हिंदुओं को जागरूक करने के लिए सनातन विरोधियों को जवाब देने के लिए और उन्हें खारिज करने के लिए ‘हिंदू शौर्य’ यात्रा का आयोजन करने जा रही है। यह शौर्य यात्रा देश के पांच लाख गांवो में गुजरेगी और न केवल हिंदुओं के बीच जन जागरण करेगी बल्कि छोटे-छोटे सम्मेलन और विचार गोष्ठियां आयोजित कर अयोध्या के राम जन्मभूमि की पूरी गाथा को भी बताएगी। यात्रा के दौरान लोगों को बताया जाएगा कि भाजपा सत्ता में ना होती तथा संघ और विश्व हिंदू परिषद सक्रीय ना होता तो अयोध्या में विशाल राम मंदिर का निर्माण ना हो पाता।

विश्व हिंदू परिषद ने शुरू में यह भी दावा किया था कि वह ‘धर्म योद्धाओं’ की भी एक फौज तैयार करेगी जो सनातन धर्म की रक्षा तथा हिंदुओं को सुरक्षा देने का काम भी करेंगे। वैसे बाद में विश्व हिंदू परिषद के एक प्रवक्ता ने इस बात को खारिज किया कि वह धर्म योद्धाओं की नियुक्ति कर रही है। प्रवक्ता का कहना था कि हम लोगों को धर्म के प्रति आस्थावान बनाने के लिए उन्हें जागरूक करेंगे राम मंदिर के निर्माण का इतिहास बताएंगे तथा सनातन धर्म पर हो रहे चौतरफा हमलो को लेकर लोगों को सचेत करेंगे। मतलब साफ है कि अयोध्या में जब जनवरी माह के तीसरे सप्ताह में प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम संपन्न हो रहा होगा तो विश्व हिंदू परिषद पूरे हिंदुओं को जागरुक कर चुका होगा। पाठक भली भांति  जानते हैं कि जनवरी 2024 से पहले चार राज्यों में विधानसभा चुनाव है, उसके बाद अप्रैल मई में लोकसभा चुनाव है। यह चुनाव भाजपा के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है और उसे यह भी लग रहा है कि यदि वोटो का ध्रुवीकरण ना हुआ तो उसकी सीटों का काम होना निश्चित है। इसी कमी को दूर करने तथा केंद्र में नरेंद्र मोदी की पुनः सरकार बनाने के लिए विश्व हिंदू परिषद ने यह धार्मिक नाटक शुरू करने की योजना बनाई है।

भाजपा तथा संघ परिवार दोनों यह मानकर चल रहे हैं कि यदि चुनाव मेरिट के आधार पर यानी परफॉर्मेंस और उपलब्धियों के आधार पर लड़े गए तो भाजपा का नुकसान होना तय है। इसी नुकसान की भरपाई को पूरा करने के लिए तथा वोटो के ध्रुवीकरण के लिए संघ परिवार विहिप के माध्यम से हिंदू समाज के बीच इस बात को पहुंचाना चाहता है कि यदि भाजपा सत्ता में ना आयी तो हिंदू और हिंदुत्व दोनों पर खतरे के बादल मंडराने लगेंगे। मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि जिस देश में हिंदू बहुसंख्यक है केंद्र में हिंदुओं के कथित रक्षकों की सरकार है तथा लगभग एक दर्जन राज्यों में हिंदू हित रक्षकों की सरकार है यानि भाजपा की सरकार है तो फिर बहुसंख्यक हिंदू, हिंदुत्व तथा सनातन धर्म खतरे में कैसे हैं? दरअसल इस लोकतांत्रिक देश भारत या इंडिया में ना हिंदू खतरे में, न इस्लाम खतरे में है बल्कि वे सरकारे खतरे में है जहां 2024 मे चुनाव होने वाले हैं। क्योंकि चुनाव पूर्व सर्वेक्षण यही कह रहे हैं कि 2024 भी खतरे में है।

इसी खतरे को भांपकर संघ और विश्व हिंदू परिषद ने आम मतदाता को भरमाने के लिए यह योजना बनाई है ताकि आम आदमी महंगाई, बेरोजगारी, सरकारी नौकरी, नौकरी में छटाई  तथा सरकारों में व्याप्त भ्रष्टाचार पर सवाल ना उठा सके। G-20 के सफल आयोजन के बाद भाजपा को यह विश्वास हो चला है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वैश्विक छवि तथा ‘मोदी है तो मुमकिन है’ का स्लोगन 2024 में पुनः 300 सिटे प्रदान कर देगा। लेकिन वास्तविकता के धरातल पर ऐसा संभव प्रतीत नहीं हो रहा है। क्योंकि महंगाई, भ्रष्टाचार तथा नौकरी का अभाव तो हर कोई झेल रहा है। वैसे  भाजपा की गणित बिल्कुल साफ थी, उसे उम्मीद थी कि  G-20 के भव्य आयोजन  का असर गांव तक जाएगा और हर कोई मोदी मोदी पुकारेगा लेकिन हुआ यह है कि उच्च वर्ग तथा अपर मिडिल क्लास तो G-20 से प्रभावित हुआ है लेकिन आम आदमी को लग रहा है (इसमें वे लोग भी शामिल हैं जिन्हें खाद्यान्न मिल रहा है।) कि इससे उनकी दशा और दिशा पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। भाजपा और संघ परिवार के लिए यह चिंता का विषय है। भाजपा यह मानकर चल रही थी कि लाभार्थी वर्ग तो उसके साथ है ही और मिडिल वर्ग को धर्म की चासनी चटा दी जाएगी तथा उच्च वर्ग और अपर मिडिल क्लास G-20 की भावनाओं से ओत-प्रोत हो जाएगा।

लेकिन आज की तारीख में अब इस बात की बिल्कुल गारंटी नहीं की लाभार्थी वर्ग भाजपा को ही वोट करेगा। क्योंकि अब वह भी समझने लगा है , वह भी बोलने लगा है और वह भी निर्णय लेने की स्थिति में आने लगा है। विश्व हिंदू परिषद में जो हिंदू शौर्य यात्रा का ताना-बाना बुना है वह इसलिए बुन गया है कि हिंदू एक मुस्त भाजपा के पक्ष में खड़ा हो जाए तथा जाति, वर्ग और उच नीच की दीवार ढह जाए तभी तो शौर्य यात्रा के दौरान विहिप और संघ के कार्यकर्ता प्रत्येक हिंदू घर से पांच दीपक एकत्र करेंगे और बताएंगे कि इन्हें अयोध्या में प्राण प्रतिष्ठा वाले दिन जलाया जाएगा। यह बिल्कुल उसी तरह है जैसे राम जन्मभूमि आंदोलन के दौरान गांव-गांव शिला पूजन का कार्यक्रम चला था। उस समय लोगों को बताया गया था कि ये पूजित शिलाये राम मंदिर के निर्माण में इस्तेमाल की जाएगी। उसी तर्ज पर अभी मेरी माटी मेरा देश भी चल रहा है। भारत और इंडिया भी चल रहा है और अब सनातन धर्म खतरे में है हिंदुत्व खतरे में है का शिगूफा छोड़ा गया है।

मेरा स्पष्ट मत है कि सनातन धर्म के समर्थक को और विरोधी दोनों आम आदमी को बेवकूफ बनाकर अपनी राजनीतिक रोटी सेंक रहे हैं । मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के बेटे ने चेन्नई में प्रोग्रेसिव रायटर्स एशोसियेशन के सम्मेलन में सनातन धर्म को डेंगू मच्छर, मलेरिया , कोरोना आदि जो कुछ भी कहा वह मौजूद श्रोताओं तथा द्रविड़ राजनीति के अनुकूल थी इसलिए उन्होंने कहा। जबकि उत्तर भारत में सनातन के मुद्दे ने एक अलग ही आकार और अर्थ ग्रहण कर लिया है जो भाजपा के अनुकूल है। भाजपा जहां इस मुद्दे के जरिए हिंदुत्व वोटो का ध्रुवीकरण कर रही है वहीं द्रमुक का लक्ष्य पिछड़े वर्ग को एकजुट करना है। तभी तो मैं कहता हूं कि ना सनातन धर्म खतरे में है और ना ही हिंदू अथवा हिंदुत्व।

 

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