भारत में रस है, इंडिया तो ठूंठ है! कांग्रेसी कब बनेंगे देशभक्त!!

के. विक्रम राव

इतनी घिन, वितृष्णा, हिकारत मात्र एक शब्द “भारत” से? तुलना में गलीज अल्फाज “इंडिया” से प्यार! वाह! तो ऐसी सोच है सोनिया गांधी-नीत 56 फुटकर दलों के गठबंधन की। राष्ट्र का इतिहास जानता है कि “भारत बनाम इंडिया” एक टकराव है दो भाव, भावनाओं, जीवन-पद्धतियों और सोच में। स्वदेशी संघर्ष का मूल है यह। बापू के सत्याग्रह के फलस्वरुप। स्वदेशी का बीजमंत्र था। आज कौन झंडाबादार है इंडिया का? यही आग्रह है तमिलनाडु के द्रमुक नेता का जिनका “उद्गार है कि सनातन डेंगू की तरह एक रोग है जिसका उन्मूलन हो।” तनिक देखिए चेन्नई के मरीना सागरतट पर। अभी भी आजादी के अमृतकाल में रॉबर्ट क्लाइव आदि ब्रिटिश अत्याचारियों की विशाल मूर्तियां लगी हैं। क्योंकि द्रविड़ कजगम की तो मान्यता रही कि ब्रिटिश शासन तब तक रहे जब तक इंडिया में जातीय समानता नहीं आ जाती। डॉ. भीमराव अंबेडकर ने तो कई बार कहा कि अंग्रेज शासन करते रहे जब तक दलित भी सवर्णों के समान नहीं आ जाते। डॉ. अंबेडकर तो ब्रिटिश वायसराय की काबीना में (1942 में) मंत्री बने रहे।

तो ऐसे लोग यदि “इंडिया” ही कहना चाहते हैं, बजाय भारत के, तो उनका अभिप्राय हर राष्ट्रभक्त भारतीय की समझ में स्पष्टतया आ जाना चाहिए। भारत के संविधान में प्रथम पृष्ट पर पहली लाइन (प्रस्तावना- 1) में लिखा है: “हम भारत के लोग, (26 नवंबर 1949)। गोवा प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष रहे, सांसद स्व. शांताराम लक्ष्मण नायक ने राज्यसभा में 2012 में सरदार मनमोहन सिंह के राज में एक प्रस्ताव पेश किया था कि इंडिया शब्द हटाकर भारत कर दिया जाए। योगी आदित्यनाथ  ने भाजपा सांसद के नाते लोकसभा में 2014 में एक निजी विधेयक द्वारा इंडिया का नाम हिंदुस्तान करने का सुझाया था। यह नीति-संगत और तर्क-सम्मत भी था क्योंकि दारुल इस्लाम के रूप में पाकिस्तान बनने के बाद यह मांग उचित थी।

भारत नाम का महत्व पुरातन है, ऐतिहासिक भी। शुरुआत करें ईसा से नौ सदियों पूर्व, अर्थात आज से करीब तीन हजार वर्ष पूर्व विष्णुपुराण से। पराशर ऋषि द्वारा प्रणीत इस पुराण के प्रतिपाद्य भगवान विष्णु हैं, जो सृष्टि के आदिकारण, नित्य, अक्षय, अव्यय तथा एकरस हैं। अष्टादश महापुराणों में श्रीविष्णु पुराण का स्थान बहुत ऊँचा है। इसमें भूगोल, ज्योतिष, कर्मकाण्ड, राजवंश और श्रीकृष्ण-चरित्र आदि कई प्रंसगों का उल्लेख बड़ा ही अनूठा और विशद है। भारत एशिया महाद्वीप का दक्षिणी भाग में एक त्रिभुजाकार प्रायद्वीप है। अंग्रेजी में इस देश का नाम “इंडिया” अर्थात सिंधु के फारसी रूपांतरण के आधार पर यूनानियों द्वारा प्रचलित “इंडस” नाम से पड़ा। मूल रूप से इस देश का नाम प्रागैतिहासिक काल के राजा भरत के आधार पर भारतवर्ष है।

जवाहरलाल नेहरू ने जनवरी 1927 में भारत की मूलभूत एकता का उल्लेख करते हुये लिखा था कि “हिंदुओं की पवित्र भूमि है भारत”। (नेहरू ग्रंथावलि भाग 2)। इसी बीच ममता बनर्जी ने सवाल उठाया कि नाम बदला ही क्यों जाए? अब इस बंगभाषिणी महिला से पूछा जाए कि उनके राज्य के नाम में पश्चिम क्यों लगा? सीधे बांग्लाभूमि होता। बांग्लादेश तो अलग हो ही गया था। शरद पवार बोले: “देश का नाम बदलने का अधिकार किसी को भी नहीं है।” तो बंबई का नाम मुंबई क्यों? महाराष्ट्र नाम क्यों? बिहार के लालूपुत्र तेजस्वी यादव ने भी भारत के नामकरण का विरोध किया। तो उन्हें स्मरण करा दिया जाए कि उनके संबंधी मुलायम सिंह यादव ने इंडिया के मुकाबले भारत के हिमायती थे। मुख्यमंत्री रहते हुए वे संविधान संशोधन के लिए प्रस्ताव भी लाए थे जिसे विधानसभा में 2004 में सर्वसम्मति से पास कर केंद्र को भेजा गया था। तीन अगस्त 2004 को विधानसभा में नेता भाजपा प्रतिपक्ष लालजी टंडन ने संस्कृत शिक्षकों का मुद्दा उठाते हुए कहा था कि इन शिक्षकों को उनका जायज हक मिलना चाहिए। “जिस दिन दुनिया से संस्कृत खत्म हो जाएगी, उस दिन संस्कृति भी खत्म हो जाएगी।

इस पर तत्कालीन समाजवादी मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने कहा था कि वर्तमान सरकार में किसी भी हालत में संस्कृत की उपेक्षा नहीं होगी। उन्होंने पूर्ववर्ती भाजपा सरकार पर अंग्रेजी का अधिक प्रयोग किए जाने का आरोप लगाया था। मुलायम सिंह ने हिंदी के प्रयोग पर बल देते हुए कहा कि संसदीय कार्यमंत्री सदन में प्रस्ताव लाएं और उसे पारित करके केंद्र सरकार को भेज दिया जाए कि जहां संविधान में “इंडिया इस भारत” लिखा है वहां “भारत इस इंडिया” लिख दिया जाए। वर्तमान में यूं कई देश और प्रदेश भी नए नाम से जाने जाते हैं। यूनाइटेड प्राविंसेज था, आज उत्तर प्रदेश हो गया। गुलामी का नाम मिटा कर। इसी भांति 2011 में उरीसा का नाम ओडीसा, पहाड़ का नाम उत्तराखंड, माइसूर का कर्नाटक पड़ा। राज्य भाषा के आधार पर मद्रास तमिलनाडु बना। पंडित कमलापति त्रिपाठी, इंदिरा कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष थे, ने तो 1947 में संविधान सभा में कहा था कि भारत शब्द से राष्ट्रीयता का बोध होता है।

अंग्रेजी सत्ता से मुक्त होते ही आयरलैंड भी आयर गणराज्य बना। बर्मा कहलाया म्यांमार और सिलोन कहलाया श्रीलंका। सर्वश्रेष्ठ तर्क दिया था संविधान सभा में कुमाऊं कांग्रेसी नेता और यूपी विधानसभा के उपाध्यक्ष रहे पं. हरगोविंद पंत ने जो पत्रकार भी थे। संविधान सभा में वे बोले कि हिंदू लोग अपनी पूजा में संकल्प लेते हैं: जंबू द्वीपे, भारतवर्षे, भरतखंडे, आर्यावर्ते इत्यादि।” अतः भारतवर्ष नाम हो।” उन्होंने सदन को याद दिलाया कि कवि कालिदास ने अभिज्ञान शाकुंतला नाटक में उनके पुत्र भरत के नाम पर भारत रखा था। अंत में अपनी प्रौढ़ता, वयस्कता, बुद्धिमत्ता का परिचय देते राहुल गांधी ने कह ही दिया: “भारत, हिंदुस्तान, इंडिया सभी के मायने मोहब्बत से है। अतः उल्फत के इस अधेड़ दीवाने कुंवारे सोनियापुत्र की बात मानकर सब भारत ही नाम रख लें।

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