वर्ष मे एक बार आज रात खुले श्रीनागचंद्रेश्वर के पट,

सर्वप्रथम महंत श्री विनितगिरी महाराज ने विधि विधान से किया भगवान नागचंद्रेश्वर का पूजन

नया लुक ब्यूरो

उज्जैन। साल में एक बार नाग पंचमी के अवसर पर खुलने वाले भगवान श्रीनागचंद्रेश्वर के पट बीती रात्रि 12 बजे शुभ मुहूर्त में खोले गए । मंदिर के पट खुलने के बाद सर्वप्रथम पंचायती महानिर्वाणी अखाड़े के महंत  विनीतगिरी महाराज ने विधि-विधान से श्रीनागचंद्रेश्वर भगवान का पूजन अर्चन किया । इस अवसर पर मंदिर प्रबन्ध समिति के अध्यक्ष एवं कलेक्टर  कुमार पुरुषोत्तम नगर निगम आयुक्त  रोशन कुमार सिंह , प्रशासक  संदीप कुमार सोनी , समिति सदस्य  राजेन्द्र शर्मा ‘गुरु ‘और अन्य वरिष्ठ प्रशासनिक और पुलिस अधिकारी मौजूद थे ।

उज्जैन का नागचंद्रेश्वर मंदिर

जो साल में केवल एक दिन नागपंचमी को ही खुलता है, आइये जाने क्यों ? हिंदू धर्म में सदियों से नागों की पूजा करने की परंपरा रही है। हिंदू परम्परा में नागों को भगवान का आभूषण भी माना गया है। भारत में नागों के अनेक मंदिर हैं, इन्हीं में से एक मंदिर है उज्जैन स्थित नागचंद्रेश्वर जी का,जो की उज्जैन के प्रसिद्ध महाकाल मंदिर की तीसरी मंजिल पर स्थित है। इसकी खास बात यह है कि यह मंदिर साल में सिर्फ एक दिन नागपंचमी (श्रावण शुक्ल पंचमी) पर ही दर्शनों के लिए खोला जाता है। ऐसी मान्यता है कि नागराज तक्षक स्वयं मंदिर में रहते हैं।

नागचंद्रेश्वर मंदिर में 11वीं शताब्दी की एक अद्भुत प्रतिमा है, इसमें फन फैलाए नाग के आसन पर शिव-पार्वती बैठे हैं। कहते हैं यह प्रतिमा नेपाल से यहां लाई गई थी। उज्जैन के अलावा दुनिया में कहीं भी ऐसी प्रतिमा नहीं है। पूरी दुनिया में यह एकमात्र ऐसा मंदिर है, जिसमें विष्णु भगवान की जगह भगवान भोलेनाथ सर्प शय्या पर विराजमान हैं। मंदिर में स्थापित प्राचीन मूर्ति में शिवजी, गणेशजी और मां पार्वती के साथ दशमुखी सर्प शय्या पर विराजित हैं। शिवशंभु के गले और भुजाओं में भुजंग लिपटे हुए हैं।

क्या है पौराणिक मान्यता ?

सर्पराज तक्षक ने शिवशंकर को मनाने के लिए घोर तपस्या की थी। तपस्या से भोलेनाथ प्रसन्न हुए और उन्होंने सर्पों के राजा तक्षक नाग को अमरत्व का वरदान दिया। मान्यता है कि उसके बाद से तक्षक राजा ने प्रभु के सा‍‍‍न्निध्य में ही वास करना शुरू कर दिया। लेकिन महाकाल वन में वास करने से पूर्व उनकी यही मंशा थी कि उनके एकांत में विघ्न ना हो अत: वर्षों से यही प्रथा है कि मात्र नागपंचमी के दिन ही वे दर्शन को उपलब्ध होते हैं। शेष समय उनके सम्मान में परंपरा के अनुसार मंदिर बंद रहता है। इस मंदिर में दर्शन करने के बाद व्यक्ति किसी भी तरह के सर्पदोष से मुक्त हो जाता है, इसलिए नागपंचमी के दिन खुलने वाले इस मंदिर के बाहर भक्तों की लंबी कतार लगी रहती है।

काफी प्राचीन है यह मंदिर: माना जाता है कि परमार राजा भोज ने 1050 ईस्वी के लगभग इस मंदिर का निर्माण करवाया था। इसके बाद सिं‍धिया घराने के महाराज राणोजी सिंधिया ने 1732 में महाकाल मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था। उस समय इस मंदिर का भी जीर्णोद्धार हुआ था। सभी की यही मनोकामना रहती है कि नागराज पर विराजे शिवशंभु की उन्हें एक झलक मिल जाए। लगभग दो लाख से ज्यादा भक्त एक ही दिन में नागदेव के दर्शन करते हैं। नागपंचमी पर वर्ष में एक बार होने वाले भगवान नागचंद्रेश्वर के दर्शन के लिए इस बार आज रात को मंदिर के पट खुलेंगे। नागपंचमी के बाद मंदिर के पट पुनः बंद कर दिए जाएंगे। नागचंद्रेश्वर मंदिर की पूजा और व्यवस्था महानिर्वाणी अखाड़े के संन्यासियों द्वारा की जाती है।

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