दोहरे चरित्र और स्वार्थ पर हंसाता ’मॉडल विहार’

लखनऊ । लालच और भौतिक सुख पाने की लालसा की बदौलत झूठ, भ्रष्टाचार, अनैतिकता, ईर्ष्या, आडम्बर आदि बुराइयाँ शिक्षित समाज को पतन की ओर ले जा रही हैं। पढ़े लिखे लोग भी स्वार्थवश बहुत सहजता के साथ छल-कपट, प्रपंच को अपना लेते हैं। उर्मिल रंग उत्सव की अंतिम शाम हंसी-हंसी में ऐसा बहुत कुछ कह जाने वाले नाटक ’मॉडल विहार’ का मंचन संत गाडगेजी महाराज प्रेक्षागृह में ललित सिंह पोखरिया के लेखन निर्देशन में किया गया।

डॉ.उर्मिलकुमार थपलियाल फाउंडेशन की ओर से आयोजित इस पांच दिवसीय समारोह में निसर्ग संस्था के कलाकारों द्वारा मंचित नाटक की कहानी के अनुसार सेवानिवृत्त टीचर तुलसीराम सेवक अभी तक पत्नी कलावती के साथ एक पुराने मोहल्ले में सुख से रहते आए हैं। जहाँ के लोग बड़े मिलनसार और प्रेम भाव वाले हैं, पर वहाँ आये दिन पानी, बिजली या अन्य प्रकार की कोई न कोई समस्या हो जाती है। इस कारण उनके दोनों पुत्र बहुत चिन्तित रहते हैं। उनके दोनों पुत्र बड़े कर्तव्यनिष्ठ, ईमानदार IAS ऑफ़िसर हैं। सेवक जी के न चाहते हुए भी उनके दोनों पुत्र विकसित मॉडल विहार कॉलोनी में एक मकान खरीद लेते हैं। सेवक जी न चाहते हुए भी पुत्रों की ज़िद से मॉडल विहार में रहने आ जाते हैं।

मॉडल विहार के उस सेक्टर में उच्च शिक्षित प्राध्यापक, डॉक्टर, वकील, सरकारी उच्चाधिकारी तो हैं, लेकिन सभी तुच्छ मनोवृति के हैं। धन के लोभ में अनैतिक कार्य करने वाले वे सभी एक दूसरे के प्रति अपने मन में घोर ईर्ष्या रखते हैं, पर प्रत्यक्ष रूप से बड़े भले बने रहते है। ये लोग सेवक जी के रहने आने से बहुत पहले ही पता कर लेते हैं कि सेवक जी के दोनों पुत्र IAS ऑफिसर हैं। हर कोई यह प्रयास करता है कि सेवक के साथ उसकी बड़ी घनिष्ठता स्थापित हो जाय ताकि अपने अनैतिक कार्यों के कारण कभी कोई समस्या आ जाने पर सेवक जी के IAS पुत्रों की सहायता से समस्या का निवारण हो जाय।

उनके आ जाने के बाद लोग सेवक जी से मिलने आते हैं और उनका प्रिय बनने के प्रयास में कॉलोनी के दूसरे लोगों की बुराई करते रहते हैं। इन सभी लोगों की बातों से समाज में दोहरा चरित्र जी रहे उच्च शिक्षित लोगों की पोल खुलती रहती है। कुछ ही दिनों में सेवक जी के सम्मुख सब की वास्तविकता प्रकट हो जाती है। समाज के प्रबुद्ध वर्ग की विसंगतियों को उजागर करते हुए महत्वपूर्ण सन्देश देने वाले इस नाटक में तुलसीराम सेवक के चरित्र में शरदेन्दु सागर शर्मा के साथ कलावती- लकी लक्ष्मी कान्त, बालकराम- अनुराग शुक्ला, देवीना- नीशू सिंह और चिन्नी- अभिषेक सिंह बने थे। इनके साथ ही लेखक निर्देशक ललित डॉक्टर, प्रेमरंजन शास्त्री, वकील, सीडीए व टीटू की भूमिकाओं में लोगों को हंसाने उतरे। मंच परे दृश्यमंच व्यवस्था यजुवेन्द्र कमल व राजवीर गौड़ की, मंच सामग्री- विशाल सिंह व शहबाज़ खान की, वेशभूषा- नीशू सिंह व लकी लक्ष्मीकान्त की, प्रकाश संचालन- मनीष सैनी के साथ सहायक- अनुराग शुक्ला का, संगीत संचालन- राहुल शर्मा का, मुखसज्जा- शहीर अहमद की और मंच प्रबन्ध- जय तिवारी का रहा। अंत में संयोजक द्वय सत्येन्द्र-रितुन ने सभी का आभार व्यक्त किया।

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