नशे की शिकार बनती युवा आबादी को योग से जोड़ना ज़रूरी है,

डॉ. कन्हैया त्रिपाठी

    डॉ. कन्हैया त्रिपाठी

 ( लेखक भारत गणराज्य के महामहिम राष्ट्रपति जी के विशेष कार्य अधिकारी-ओएसडी रह चुके हैं। आप अहिंसा आयोग और अहिंसक सभ्यता के पैरोकार हैं। )


पीएम मोदी की अमेरिका यात्रापर पूरी दुनिया की नज़र है। उनकी यात्राका एक पड़ाव न्यूयॉर्कके संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में सुनिश्चित हुआ है, जहां वह 21 जून को संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में अंतरराष्ट्रीय योग दिवस समारोह का नेतृत्व करेंगे। योग को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति दिलाने का श्रेय प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को मिला है क्योंकि जब वह 2014 में सत्ता में आए तो संयुक्त राष्ट्र में योग दिवस को आधिकारिक रूप से मान्यता मिली और 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस उद्घोषित किया गया। 27 सितम्बर, 2014 को संयुक्त राष्ट्र महासभा में, भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस का प्रस्ताव रखा था। इसके मात्र 75 दिनों बाद, 11 दिसम्बर 2014 को, संयुक्त राष्ट्र ने प्रस्ताव 69/131 के जरिये, 21 जून को अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मानने की घोषणा की। महत्त्वपूर्ण बात यह थी कि 193 सदस्य देशों में से, 177 देशों ने न केवल इस प्रस्ताव का समर्थन किया, बल्कि इसे सह-प्रायोजित भी किया। अब सबसे सुंदर बात यह है की विश्व में योग के अब अनेकों ऐसे नवाचार हो रहे हैं जिससे वैश्विक स्तर पर आर्थिक फायदे आने वाले समय में होने वाले हैं। कॉर्पोरेट ने भी अब योग को अपने बिजिनेस डील में शामिल कर लिया है जिससे बड़े पैमाने पर आर्थिक हित दुनिया के सधने वाले हैं।

दूसरी बात,जब कोविड जैसी बीमारी विश्व में कोहराम मचा रही थी तो दुनिया में बड़े पैमाने पर स्वास्थ्य की समस्याएँ चरमरा गईं। उस दौर में योग करने वालों के बारे में अतरराष्ट्रीय स्तर पर एक धारणा उभरकर सामने आई कि योग करने वाले लोगों को बड़े पैमाने पर राहत मिल रही है। उनकी इम्यून सिस्टम इतनी मजबूत है कि वे जल्दी रिकवर कर रहे हैं और ठीक हो रहे हैं। दुनिया को योग के बारे में तब अधिक समझ आया जब कोविड पॉज़िटिव लोगों के सामने मौत मात खाकर वापस हो रही थी। उस दौरान योग नियमित करने वाले लोग या तो कोविड पॉज़िटिव नहीं हो रहे थे या यदि हुए भी तो जल्दी ठीक हो रहे थे। दुनिया के और देशों का तो पता नहीं है लेकिन भारत में कोरोना योद्धाओं ने योग को अपनी ढाल बनाया, इसमें कोई दो मत नहीं है। अब प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने विभिन्न योग आसनों को दर्शाने वाले वीडियो का एक सेट हाल ही में साझा किया और आह्वान किया कि योग को आइए ताकत, सहनशीलता और शांति को बढ़ावा देने के साथ शरीर और मन, दोनों के लिए बहुत लाभदायक है, तो इसे जीवन का हिस्सा बनाएँ। आइए, हम आरोग्यता के साथ-साथ शांति की भावना को आगे बढ़ाएं।प्रधान मंत्री ने यह भी कहा कि योग विश्व को अच्छे स्वास्थ्य और कल्याण की दिशा में एकजुट करता है। यह विश्व स्तर पर और लोकप्रिय होता जा रहा है।यूएनएचक्यू में अंतरराष्ट्रीय योग दिवस समारोह में आपसे मिलने के लिए उत्सुक हूं। आपकी सहभागिता कार्यक्रम को और भी विशिष्ट बनाती है। दरअसल, इस माध्यम से प्रधान मंत्री दुनिया में अपनी और भारत की एक नई छवि बनाने के लिए तत्पर हैं ताकि दुनिया भारत की इस प्राच्य विद्या योग से लाभान्वित हो और वह भारत की ओर आकर्षित भी हो।

यह सच है कि योग हमें जीवन में प्रसन्नता देता है। योग से नकारात्मकता समाप्त होती है। योग से हमारे भीतर के विकार जाते हैं, ऐसा तो होता ही है लेकिन सबसे अहम बात यह है कि इससे हमारी आध्यात्मिक आत्मशक्ति बढ़ती है। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने इसीलिए आह्वान किया कि योग दिवस के सौ दिनों के उत्सव के साथ, आप सभी से इसे उत्साह के साथ मनाने का आग्रह करता हूँ। यदि आपने अभी तक योग को अपने जीवन का हिस्सा नहीं बनाया है तो जल्द से जल्द ऐसा कर लें। इसके पीछे यही धारणा है प्रधान मंत्री की कि भारत के लोग प्रसन्न हों, स्वस्थ हों, समृद्धि प्राप्त करें। दरअसल, भारत को अपनी विकास यात्रा में धार लानी है और कोई बीमार राष्ट्र कभी भी तरक्की की राह नहीं चल सकता। स्वस्थ लोगों का स्वस्थ राष्ट्र ही अपनी तरक्की राह ढूंढ सकता है और चल सकता है इसलिए निः सन्देह प्रधान मंत्री की अपील भारतीय जनमानस के हित में है।

लेकिन आज यह चिंताजनक है कि भारत में युवाओं की एक बड़ी खेप नशा की शिकार हो रही है। ऐसे युवा जिनके फेफड़े खराब हो रहे हैं सिगरेट और दूसरे धूम्रपान से, वे हमारे देश को आगे ले जाने में कितनी मदद कर सकते हैं, यह आप सोच सकते हैं। बड़े शहरों में, मल्टीप्लैक्स में, कॉलेज में और यूनीवर्सिटी में युवाओं में नशे की बढ़ती लत एक बीमार भारत की नई तस्वीर है। सुट्टाबार, हुक्काबार,सुट्टा-कॉफी-कैफे, चाइनीज आइटम्सऔर फास्टफूड से रोज गुजरने वाली युवाओं की ज़िंदगी भारत के युवाओं के शरीर का भूगोल और व्यवहार को बादल रहे हैं। अपराध की ओर युवा प्रवृत्त हो रहा है। ऐसे में, योग तो उन्हें उन अंधेरे से निकाल सकता है जिनकी भनक उन्हें होते हुए भी वे उसी में समाये जा रहे हैं। भारत सरकार की एड्वाइजरी जिस प्रकार नशे वाले पाउच पर होती है, यदि उसी प्रकार सुट्टाबार, हुक्काबार और चाइनीज आइटम के बढ़ते मार्केट के लिए भी बनती तो शायद हमारे देश की शहरी युवा आबादी इस भयानक समस्या से बच सकती। लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है। आए दिन अनेकों शहरों में ऐसी दुकानों की भरमार हो रही है। कहते हैं, सुनते हैं कि हिंदुस्तान बदल रहा है, लेकिन यह बदलाव भारत के लिए भार बनने जा रहा है। इनकी जगह यदि योग-केंद्र बनते और तमाम बार के सामने शानदार और महंगी बाइकों से इकट्ठा होने वाले युवा योग केंद्र में एकत्रित होने लगते तो भारत की ताकत निश्चित ही बढ़ जाती।

इसलिए योग और नशे में से किसे चुनने से ज्यादा भारत आगे बढ़ेगा, यह आज सोचने की आवश्यकता है। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी का इसलिए यह आह्वान कि लोग योग से जुड़ें, बहुत ही मायने रखता है। लेकिन आह्वान, अपील और संदेश तब तक कारगर होने वाले नहीं हैं, जब तक कि सरकार कड़ाई से नहीं पेश आएगी और अपनी युवा आबादी को योग के लिए विवश नहीं करेगी। यदि लॉकडाउन जैसी इस देश में हर चीज के लिए कड़ाई की जाये तभी भारत के युवा सुनने वाले हैं, समस्या इस बात की है। सामान्य संदेश तो एक कान से सुनकर दूसरे कान से निकाल देने वाले युवाओं की संख्या बहुतायत में है। ऐसे में, सरकार की अपील तो जाया जाने वाली है। आवश्यकता इस बात की है की हमारे देश की सरकार सुंदर एजेंडे को निर्मित कर देश की युवा-संपदा को बचाने की प्रभावशाली कोशिश करे।

योग दिवस के अंतरराष्ट्रीय पर्व को पूरी दुनिया 21 जून को मनाएगी। आशंका आज भारत के लिए इस बात की भी है कि हम कहीं दुनिया के लिए योग को वरदान बना देंने में कामयाब हो जाएँ और भारत की ही युवा आबादी इसको अनसुना, अनदेखा और अस्वीकार करते हुए तमाम बीमारियों से ग्रस्त लोगों की सूची में अग्रिम पंक्ति में खड़ी न मिले। हम उस सूचकांक में शामिल होंने के लिए बेताब हैं, जहां से हमारा विकास शून्य ही होना है। यह भारत के लिए बहुत ही वास्तव में चिंता की बात है। इसलिए आज तो आवश्यकता इस बात की भी है कि भारत खुद इस अनचाही समस्या से निकलने के लिए पहल करे, संकल्प ले और उसे भारत के हर नागरिक में फैलाने के लिए जिस भी स्तर से प्रयास करना पड़े, उसे करे।  प्राचीन स्वास्थ्य पद्धति योग केवल उत्सव बनता जा रहा है। यह केवल उत्सव न बन जाए ध्यान इस पर देना है। हमारे मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने का विकल्प है योग। वह एक स्वस्थ और खुशहाल समाज का निर्माण कर सकता है इस पर ध्यान देने की कोशिश तेज करनी होगी। यह हमारे लिए सॉफ्ट शक्ति के लिए भी ज़रूरी है। वैसे तो योग कल्याण की सार्वभौमिक भाषा है और इससे अखिल विश्व में शांति और खुशहाली बढ़ेगी लेकिन दीपक तले अंधेरा कहीं रह न जाए इसके लिए भारत सरकार, राज्य सरकारों और बौद्धिक वर्ग की स्वतः की जिम्मेदारियाँ क्या बन सकती हैं, इसे सोचने की आवश्यकता है। दुनिया में सभी के सुख और मंगल की कामना भारत की कल्याण की सार्वभौमिक सोच से जन्म लिया था और योग शरीर क्रिया विज्ञान से शारीरिक कल्याण की सार्वभौमिक भाषा बनकर हमारे जीवन का हिस्सा बना था। आज उसी भारत में इसको लेकर मुहिम चलाने की जरूरत महसूस की जा रही है,यह कष्ट की बात है। इसे ठीक करना होगा नहीं तो हमारे सारे मंगल की कामनाओं के बीच भारत फंसा हुआ नज़र आयेगा।


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