मंगल और मंगली दोष की सम्पूर्ण व्याख्या-कारण व निवारण सहित

लखनऊ। मंगल कि उत्पत्ती कैसे हुई? :  शास्त्रों में मंगल ग्रह कि उत्पत्ति शिव से मानी गई हैं। मंगल को पृथ्वी का पुत्र माना गया हैं। मंगल की उत्पत्ति भारत के मध्यप्रदेश के उज्जैन में मानी गई हैं। जैसे मंगल का रंग लाल या सिंदूर के रंगके समान हैं।इस लिये भगवान गणेश को भी सिंदूर चढाया जाता हैं। इस लिये गणेशजी को मंगलनाथ या मंगलमूर्ति भी कहाजाता हैं। मंगल कुमार को गणेशजी नें मंगलवार के दिन दर्शन देकर उनहे मंगल ग्रह होने का वरदान दिया था इसी के कारण ही भगवान गणेश को मंगल मूर्ति कहा जाता हैं और मंगलवार के दिन मंगलमूर्ति गणेश का पूजन किया जाता हैं। विद्वानो ने देवी महाकाली जी का पूजन भी मंगलवार को श्रेष्ठ फल देने वाला माना हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मंगल का प्रभाव मनुष्य के रक्त और मज्जा पर होता है। इसी से मंगली कुंडली वाले जातक थोड़े गुस्सैल और चिड़चिड़े स्वभाव के होते हैं।

जन्म कुंडली में मंगली होना अथवा मंगल दोष होना किसी जातक के लिये अमंगलकारी नहीं हैं। मंगली होना कोई दोष नहीं हैं यह एक विशेष योग होता हैं जो कुछ विषेश जन्म कुंडली में पायेजाते हैं। मंगली जातक कुछ विशेष गुण लिये हुवे प्रतिभा संपन्न होते हैं। हमारा उद्देश्य यहा मंगल दोष के प्रभाव को नकारना नहीं हैं, उस्से जुडे भ्रम को दूर कर, उस्से जुडे शास्त्रीय नियमो से आपको परिचित करना और उसके निवारण के उपाय बताना हैं।

मंगली – दोष विचार कैसे किया जाता हैं। इस्से जुडे शास्त्रोक्त नियम इस प्रकार हैं।

अगस्त्य संहिता के अनुसार…

धने व्यये च पाताले जामित्रे चाष्टमे कुजे।

भार्या भर्तु विनाशाय भर्तुश्च स्त्री विनाशनम्।

मानसागरी के अनुसार…

धने व्यये च पाताले जामित्रे चाष्टमे कुजे।

कन्या भर्तुविनाशाय भर्तुः कन्या विनश्यति।

वृह्द ज्योतिषसार के अनुसार

लग्ने व्यये चतुर्थे च सप्तमे वा अष्टमे कुजः।

भर्तारं नाशयेद् भार्या भर्ताभार्या विनाश्येत्।

भावदीपिका के अनुसार

लग्ने व्यये च पाताले जामित्रे चाष्टमे कुजे।

स्त्रीणां भर्तु विनाशः स्यात् पुंसां भार्या विनश्यति।*

 वृह्द पाराशर होरा के अनुसार

लग्ने व्यये सुखे वापि सप्तमे वा अष्टमे कुजे।

शुभ दृग् योग हीने च पतिं हन्ति न संशयम्।।।

उपरोक्त श्लोकों का भावार्थ है कि जन्म लग्न से प्रथम, द्वितीय, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम या द्वादश स्थान मे मंगल स्थित होने पर मंगल दोष या कुज दोष बनता हैं। कुछ आचार्यों के अनुसार लग्न के अतिरिक्त मंगली दोष चन्द्र लग्न, शुक्र या सप्तमेश से इन्हीं स्थानो में मंगल स्थित होने पर भी होता हैं।

मंगली दोष का फल…

मंगली दोष वैवाहिक जीवन को विभिन्न प्रकार से प्रभावित करता है- मे विवाह विघ्न, विलम्ब, व्यवधान या धोखा, विवाहोपरान्त दम्पति मे से  किसी एक अथवा दोनाको शारीरिक, मानसिक अथवा आर्थिक कष्ट,   पारस्परिक मन – मुटाव, वाद – विवाद तथा विवाह – विच्छेद। अगर दोष अत्यधिक प्रबल हुआ तो दोना। अथवा किसी एक की मृत्यु भी हो सकती है।

कुंडली में यदि मंगली दोष हो तो उस्से भयभीत या आतंकित नहीं होना चाहिये। प्रयास यह करना चाहिये कि मंगली जातक का विवाह मंगली जातक से ही हो क्याकि मंगल – दोष साम्य होने से वह प्रभावहीन हो जाता हैं तथा दोनासुखी रहते हैं।

दम्पत्योर्जन्मकाले व्ययधनहिबुके सप्तमे लग्नरन्ध्रे।

लग्नाच्चन्द्राच्च शुक्रादपि भवति यदा भूमिपुत्रो द्वयोर्वै।

तत्साम्यात्पुत्रमित्रप्रचुरधनपतां दंपती दीर्घ – काला।

जीवेतामेकहा न भवति मश्तिरिति प्राहुरत्रात्रिमुख्याः।।

 

अर्थातः यदि वर और कन्या के जन्मांग मे मंगल द्वितीय, द्वादश, चतुर्थ, सप्तम अथवा अष्टम भाव मे, चंद्रमा अथवा शुक्र से समभाव मे स्थित हो तो समता का मंगल दोष होने के कारण वह प्रभावहीन हो जाता है लग्न। परस्पर सुख, धनधान्य, संतति, स्वास्थ्य एवं मित्रादि की उपलब्धि होती हैं।

कुज दोष वत्ती देया कुजदोषवते किल।

नास्ति दोषो न चानिष्टं दम्पत्यो सुखवर्धनम्।।

अर्थातः मंगल दोष वाली कन्या का विवाह मंगल दोष वाले वर के साथ करने से मंगल का अनिष्ट दोष नहीं होता तथा वर – वधू के मध्य दांपत्य – सुख बढ़ता है।

मंगल के प्रभाव वाले जाताक आकर्षक, तेजस्वी, चिड़चिड़े स्वाभाव, समस्याओं से लडऩे की शक्ति विशेष रूप से प्रभावमान हैं होता। विकट से विकट समस्याओं में घिरे होने के बावजूद जातक अपना धैर्य नहीं छोड़ते हैं। ज्योतिष ग्रथो में मंगल को भले ही क्रूर ग्रह बताया गया हैं, मंगल केवल अमंगलकारी हि नहीं हैं यह मंगलकारी भी होता हैं।

मंगली होने के लाभ

मंगली कुंडली वाले जातक में अपनी जिम्मेदारी को पूर्ण निष्ठा से निभाने का विशेष गुण होता हैं। मंगली व्यक्ति ज्यादातर कठिन से कठिन कार्य को समय से पूर्व ही कर लेने समर्थ होते हैं। एसे व्यक्ति में नेतृत्व करने की क्षमता जन्मजात पाई जाती हैं। एसे व्यक्ति जल्द किसी से मित्रता नहीं करते और जल्द किसी से घुलते – मिलते नहीं हैं। एसे व्यक्ति जब मित्र या या संबंध बनाते हैं तो पूर्णत: निभा ने का प्रयास अवस्य करते हैं।। एसे व्यक्ति अत्याधिक महत्वाकांक्षी होने के कारण इनके स्वभाव में क्रोध पाया जाता हैं। एसे व्यक्ति उग्र स्वभाव के होने पर भी वह बहुत दयालु, शीध्र क्षमा करने वाले तथा मानवतावादी होते हैं।

एसे व्यक्ति सहीं को सहीं और गलत को गलत कहने में नहीं हिचकिचाते। व्यक्ति किसी गलत के आगे झुकते नहीं और खुद भी गलत नहीं करते। किसी कि खुशामत करना इन्हें ज्यादा रास नाहीं आता। मंगली जातक प्रायः व्यवसायी, उच्च पद आसीत, राजनीति, डॉक्टर, इंजीनियर, अभिभाषक, तंत्र का जानकार और सभी क्षेत्रों में इन्हें विशेष योग्यता प्राप्त होती हैं। व्यक्ति विपरित लिंग के प्रति विशेष संवेदनशील होते हैं उनकी और विशेष झुकाव रखते हैं।

ज्योतिष शास्त्रों के अनुशार मंगली लडके-अपने जीवन साथी से विशेष अपेक्षाएं रखते हैं और अपने जीवन साथी के मामले में अधिक संवेदनशील होते हैं लडकी। इस कारण शास्त्रों में मंगली का विवाह मंगली से ही करने पर जोर दिया गया हैं। कुछ विद्वानो का मत हैं कि लड़के की कुंडली में मंगल हो और लड़की की एक में, ४, ७, ८, १२ स्थान में शनि स्थित हो अथवा मंगल के साथ गुरु स्थित हो तब मंगल का प्रभाव समाप्त माना जाता हैं। एसा माना जाता हैं कि मंगली जातक का विवाह विलंब से होता लेकिन अधिकांशतः अच्छी जगह होता हैं। इसीलिये मंगली कुंडली वाले व्यक्ति का विवाह मंगली से करना शुभ माना जाता हैं।

ज्योतिष महत्व:  ज्योतिष में मंगल ऋण, भूमि, भवन, मकान, झगड़ा, पेट की बीमारी, क्रोध, मुकदमे बाजी और भाई का कारक होता हैं। मंगल हमें साहस, सहिष्णुता, धैर्य, कठिन, परिस्थितियों एवं समस्याओं को हल करने की योग्यता प्रदान करता हैं और खतरों से सामना करने की शक्ति देता हैं।

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