सेना डाक सेवा के पूर्व सैनिकों को OROP न देकर उनके साथ भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय का सौतेला व्यवहार

कर्नल आदि शंकर मिश्र
कर्नल आदि शंकर मिश्र

लखनऊ। हम सेना डाक सेवा के पूर्व सैनिक जिन्हें ECHS का लाभ मिलना है वे परिवार सहित मात्र 300 के आसपास हैं, हज़ारों में भी नहीं हैं, जिन्हें यह सुविधा 15 नवम्बर 2022 को बंद करने के बाद अब फिर बहाल करने के आदेश 06 अप्रैल 2023 को दिये गये हैं। किंतु जो सैनिक 17 दिसंबर 2016 के बाद सेवानिवृत हुए हैं, उन्हें यह सुविधा तो अभी भी नहीं दी जा रही है। ऊपर से यह भी कह कर हमें निरुत्साहित किया जाता है कि हम वेटेरंस के लगातार अपने दुख दर्द व आर्तनाद के आवेदनों से रक्षा मंत्रालय और आर्मी हेडक्वार्टर के शीर्ष अधिकारी हमसे नाराज़ हो गये हैं इसलिये हमारी विनती पर ध्यान नहीं दे रहे थे, यह कितना तकलीफ़देह है? पुरानी कहावत है कि..

जाके पैर न फटे बिवाईं।

सो का जानै पीर पराई॥

हाँ, यह अन्याय है और इसीलिए लड़ाई अभी भी बाक़ी है, आशा है निष्पक्ष व जुझारू पत्रकार अपनी पत्रकारिता के बल पर हम सेना डाक सेवा के पूर्व सैनिकों को वन रैंक वन पेंशन (OROP) दिलवाकर हम पूर्व सैनिकों के साथ उनकी उम्र की आख़िरी अवस्था में न्याय दिलायेंगे। आपको बताना चाहूँगा कि मेरे जैसे पूर्व सैनिक अधिकारियों की सेना की सेवा क्वालिफ़ाइंग सर्विस यानी 33 वर्ष से कहीं ज़्यादा है । 35 से 40 साल तक। मेरी ख़ुद की सर्विस 36 साल, सात महीने और 16 दिन है परंतु हम सेना डाक सेवा के पूर्व सैनिक अधिकारियों को OROP का लाभ नहीं दिया जा रहा है और वजह बस वही कि हमें पेंशन डिफ़ेंस एस्टिमेट से नहीं मिलती बल्कि केंद्र सरकार के सिविल एस्टिमेट से मिलती है । इतना बड़ा अन्याय वो भी मात्र गिने चुने वरिष्ठ पूर्व सैनिकों के साथ जो गिनती में मुश्किल से 150-175 से ज़्यादा नहीं हैं । यदि सैनिक न्यायाधिकरण से हमें न्याय मिलता है तो हमारे देश का रक्षा मंत्रालय, उच्चतम न्यायालय में जाकर अपील कर देता है और वहाँ से केस ख़ारिज करवा देता है क्योंकि उच्चतम न्यायालय में केस लड़ पाना सब के बस की बात नहीं है। हम गिने चुने वृद्ध सैनिक देश के कोने कोने से सुप्रीम कोर्ट कहाँ पहुँच सकते हैं। आख़िर यह अन्याय हमारे साथ क्यों?

यहाँ यह भी बताना समीचीन है कि हमें पेंशन तो हमारे रैंक के अनुसार मिलती है, ग्रेड पे, मिलिट्री सर्विस पे भी मिलती है और उस सबको जोड़कर पेंशन निर्धारित की जाती है, लेकिन OROP हमें नहीं दी जाती है । आश्चर्य तो यह है कि हम में से जिसे भी अपंगता पेंशन (disability pension) मिलती है उसे उस पेंशन के लिये OROP का अंश दिया जाता है । लेकिन दुर्भाग्य से जो सेना डाक सेवा में 35-40 साल सेवा करके सही सलामत सेवा निवृत हुआ उसे OROP से वंचित कर दिया गया। यह भी तथ्यपरक है कि असम राइफ़लस जैसी सेना के अन्य अंग व CAPF भी OROP की माँग बहुत समय से कर रहे हैं, जिनकी पेंशन भी डिफ़ेंस एस्टिमेट्स से नहीं बल्कि गृह मंत्रालय के सिविल बजट से मिलती है और देर सबेर उन्हें भी यह लाभ मिल ही जाएगा क्यों कि सेना का बज़ट केंद्र सरकार के सेंट्रल बज़ट से ही तो आता है। अभी तक सरकार OROP के मद में लगभग 50 हज़ार करोड़ से ज़्यादा धनराशि दे चुकी होगी लेकिन उनमें से एक डेढ़ करोड़ की धनराशि हम सेना डाक सेवा के गिने चुने पूर्व सैनिकों को दे देगी तो शायद देश की ग़रीबी ज़्यादा बढ़ जाएगी?

यह भी कहा जाता रहा है कि सेना डाक सेवा के लोग कार्यालय में बैठ कर काम करते हैं, लड़ाई तो लड़ते नहीं। यह नितांत असत्य व भ्रामक कथन है । दो-ढाई साल में स्थानांतरण फील्ड/पीस की ड्यूटी, सारी लड़ाइयों व युद्धाभ्यास में हम भी शामिल रहते हैं, यहाँ तक कि सभी UN पीस कीपिंग फ़ोर्स, लंका, कांगो, भूटान इत्यादि अनेकों मिशन में APS के अधिकारी, जेसीओज व जवान भेजे जाते हैं, हमारे परिवार व बच्चे ज़्यादातर घर के मुखिया के बिना ही रहते हैं व बड़े होते हैं उनके बिना ही बच्चों की पढ़ाई लिखाई होती है। सेना के रेगुलर कोर की भाँति सदैव हर ड्यूटी हर ऑपरेशन में भाग लेते हैं, फिर भी कदम कदम पर हमें मिलने वाली सुविधाओं से वंचित कर सौतेला व्यवहार किया जाता है। क्या हम पूर्व सैनिकों को हमारे जीवन के अंतिम पड़ाव में सार्थक जीवन जीने का और समाज के लोगों के समतुल्य रहन-सहन का भी अधिकार नहीं है जब कि हम अनुशासित पूर्व सैनिक अपना मुँह नहीं खोल सकते तो क्या हमारी अपनी ही सरकार हमारे साथ ऐसा ही भेद भाव करके हमें हमारी पूरी पेंशन न देकर न्याय कर रही है? अब मीडिया का ही सहारा बचता है जिसकी शरण में जाना नितांत आवश्यक कर दिया गया है। आशा है आप इस मामले को तर्क संगत तरीक़े से उठाकर हमारे साथ न्याय की गुहार हमारे लिए लगायेंगे।

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