संदेह ने घर उजाड़ा तो पश्चाताप और प्यार ने फिर मिलाया
लखनऊ । प्रचलित कहावतें हैं कि शक का कोई इलाज नहीं और अब पछताय होत क्या…। ऐसी ही कहावतों को विस्तार देते कथानक वाले नाटक ‘शक का देवता’ का मंचन वाल्मीकि रंगशाला, संगीत ,नाटक अकादमी गोमतीनगर में आज शाम प्रभावी ढंग से किया गया। साठ दिवसीय कार्यशाला के अंतर्गत तैयार और कैसर आब्दी के लिखे इस नाटक की सम्पूर्ण परिकल्पना एवं निर्देशन तनवीर हुसैन रिज़वी और नईम खान का था। नाटक की कहानी के अनुसार पत्नी रूही और चार साल की बेटी के साथ खुशी खुशी जीवन व्यतीत कर रहे नामी चिकित्सक डॉ.शकील अहमद ने बराबर घर आने-जाने वाले पत्नी के रिश्तेदार और पत्नी पर शक के नाते पत्नी को घर से निकाल दिया।
उनकी बीवी अपनी बेटी को लेकर घर से चली गई। जब ये बात उनके रिश्तेदार को मालूम हुई तो उसने शकील अहमद को कहा कि हमारा रिश्ता तो एक सगे भाई-बहन जैसा पाक रिश्ता था। अकेले रहते ने अपने भतीजे जावेद को अपने बेटे की तरह पालकर डाक्टर बना दिया। 16 साल गुजर गए। उधर डा.शकील की पत्नी रूही से छूट गयी बेटी तबस्सुम को एक चित्रकार कैलाशनाथ ने शालू नाक देकर बड़े नाजों से पाला। शालू भी कैलाश को अपना बाबा मान कर उस पर जान लुटाती थी। अब इधर कैलाशनाथ को शालू की शादी की चिन्ता थी और उधर डॉ.शकील भी भतीजे जावेद की शादी की फिक्र थी। एक दिन अचानक पेण्टिंग करते वक्त कैलाशनाथ की तबीयत बिगड़ी उसका करीबी दोस्त डॉ. शकील और डॉ. जावेद को अपने साथ लाता है।
कैलाशनाथ के इलाज करने डॉ. जावेद बराबर कैलाशनाथ के घर जाते हैं। डॉ. जावेद और शालू में मिलना जुलना हो जाता है। एक दिन डॉ. जावेद और शालू बातचीत के दौरान तभी एक औरत के रोने की सुनने पर डॉ. जावेद उसके बारे में पूछता है तो शालू बताती है ये औरत रोज यहां से गुजरती है, बाबा बताते हैं अपनी बच्ची खोने के गम में इसका ये हाल हो गया है। जावेद और शालू के बीच बढ़ती दोस्ती को सकारात्मक ढंग से देखते हुए पेण्टर कैलाशनाथ शकील अहमद से उनके रिश्ते की बात करता है। पर डॉ. शकील उसे बेइज्जत करके निकाल देता है। कुछ समय बाद नौकर बदलू के मार्फत डॉ. शकील को मालूम होता है कि कैलाश उसकी पत्नी और बेटी के बारे में जानता है। डॉ. शकील फौरन भागते हुए वहां जाता है और अपनी बेटी बारे में पूछता है। सुखांत नाटक में बहुत पूछने, मान-मनौव्वल करने और डॉ. जावेद और शालू की शादी तय करने के बाद डॉ. शकील को उनकी बेटी ही नहीं, पत्नी रूही भी मिल जाती है।
नाटक में डॉ. शकील अहमद की भूमिका में फरीद खान, रूही की भूमिका में तबस्सुम के साथ अल्तमश आजमी- कैलाश नाथ, शाहिस्ता बानो-शालू, जावेद खान- कै. रहमान, निजाम हुसैन-बदलू शाइस्ता बानो- नसीबन, शाहरुख- कबीर, राजकुमार- वजाहत खान, शाहिद- राजू और शहबाज रईस डॉ. जावेद की भूमिका में थे। मंच के पीछे संयोजन व प्रस्तुति नियंत्रण रविदत्त तिवारी ने, सह-निर्देशन अल्तमश आजमी ने, प्रकाश एम.हफीज व जीशान ने, संगीत सोनी त्रिपाठी ने, वेशभूषा एम.शकील ने और अन्य व्यवस्थाएं आमिर मुख्तार, उपेन्द्र सोनी, चौधरी जिया इमाम, जाफर जैक्सन, जुहैब खान, मुहम्मद मुनीर, शफी खान, सलमा खान, सोनी तिवारी, शाहरूख शाहिद, इशरत आफरीन, जीशान खान ने सम्भालीं।