दो टूक : पहले डोकलाम फिर गलवान और अब तवांग, आखिर चीन चाहता क्या है?

राजेश श्रीवास्तव


अब तक दर्जनों बार भारतीय सेना के जज्बे और उसकी वीरता के चलते मुंह की खाने के बावजूद चीन कोई सबक लेने को तैयार नहीं दिखता है। खुद कोरोना के चलते उसकी अपनी हालत खस्ता है। लेकिन चीन है कि अपनी हरकतों से बाज आने को नहीं है । लेकिन सीमा पर दुस्साहसी चीन को सबक सिखाने वाली अपने शौर्य, साहस और अनुशासन के चलते दुनियाभर की सेनाओं में सबसे विशिष्ट स्थान और सम्मान रखने वाली भारतीय सेना पर हर देशवासी को गर्व है। विषम प्राकृतिक चुनौतियों को झेलते हुए भी हमारे सुरक्षा बल जिस तरह दिन-रात भारत की पावन भूमि की रक्षा में तैनात रहते हैं यह उसी का प्रतिफल है कि हम हर बार चीन को सबक सिखाने में सफल रहते हैं ।

दरअसल चीन मनोवैज्ञानिक आधार पर भी लड़ाई लड़ता है। डोकलाम में उसने मुँह की खाई फिर गलवान में उसने हिमाकत की और जब उसे वहां भी तगड़ा जवाब मिला तो उसने तवांग में हरकत की। तवांग ही नहीं चीन पूरे अरुणाचल प्रदेश पर अपना दावा करता है और तवांग उसके लिए रणनीतिक रूप से महत्व इसलिए भी रखता है क्योंकि यह चीने से तिब्बत तक जाने के लिए शॉर्टकट रास्ता है। तवांग ही नहीं अन्य इलाकों को लेकर भी चीन शुरू से ही भारत पर दबाव बनाता रहा है। बार-बार मंुह की खाने के बावजूद चीन की हिम्मत बढ़ी हुई है। लेकिन अब चीन को जवाब मिलने लगा है। वह एलएसी पर आक्रामक गतिविधियों के माध्यम से भारत को परेशान करना चाहता है। लेकिन अब हालात बदल चुके हैं। उन्होंने कहा कि तवांग की चौकी पर कब्जा करने के चीनी सेना के प्रयास विफल होना दर्शाता है कि चीन की दादागिरी का समय अब समाप्त हो चुका है।

1993 में भारत और चीन के बीच समझौता हुआ था, लेकिन उस समझौते को चीन तोड़ता रहता है । चीन शुरू से ही समझौते को तोड़ता रहा और हम उसका अक्षरश: पालन करते रहे। यही नहीं हमारे तत्कालीन रक्षा मंत्री एके एंटनी ने तो यहां तक कह दिया था कि यदि हम सीमा पर बुनियादी ढांचा मजबूत करेंगे तो चीन नाराज हो जायेगा। शायद चीन ने इसे हमारी कमजोरी मान लिया था। चीन को लेकर हम यह तो कह रहे हैं कि यह 1962 नहीं 2०22 है । इसके पीछे हमारी सैन्य क्षमता और उसका उत्साह है। तवांग में जो कुछ हुआ उसका हमें पहले ही अंदाजा था इसलिए हमारी तैयारी पूरी थी तभी तो हमारे पचास और उनके 3०० सैनिक होते हुए भी हम उन पर भारी पड़े। आज हमारी वायुसेना पूर्वोत्तर में एलएसी के निकट युद्धाभ्यास कर रही है तो वहीं मेघालय में भारत और कजाकिस्तान की सेनाओं का आतंकवाद-रोधी अभ्यास शुरू हुआ है।

इसके पहले हाल ही में उत्तराखंड के औली में हमने अमेरिका के साथ युद्धाभ्यास किया जिस पर चीन ने नाराजगी भी जताई थी। आमने सामने की लड़ाई में तो हम किसी को भी मात दे रहे हैं लेकिन चीन की ओर से अब युद्ध का तरीका बदल कर साइबर वार किया जा रहा है। हाल ही में भारत में साइबर अटैक हुए, जिसमें चीन का हाथ सामने आया। यह एक गंभीर मुद्दा है। चीन अब रणनीति बदल कर साइबर वार पर ही अपना ध्यान केंद्रित कर रहा है। हमें साइबर हमलों का जवाब देने और बचाव की क्षमता बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करना होगा और इस संबंध में नागरिकों में जागरूकता भी लानी पड़ेगी ताकि वह साइबर हमलों के शिकार नहीं हों। साथ ही हमें एंटी ड्रोन सिस्टम भी बदलती तकनीक को देखते हुए विकसित करने की जरूरत है। फिलहाल इतना तय है कि अब चीन भारत की ओर न ही देखो  तो उसकी भलाई है, लेकिन चीन अपनी विस्तारवाद की नीति के चलते बार-बार हमें ललकारता रहता है।

चीन से खतरे को देखते हुए उस पर क्यों हर सत्र में पहले ही चर्चा नहीं होती? सरहद पर यह सेना ही तय कर सकती है कि कब और कैसे जवाब देना है। वर्तमान सरकार का कहना है कि सीमाओं पर बुनियादी ढांचा तेजी के साथ बढ़ाया गया है और तीनों सेनाओं की युद्धक क्षमता में भी अभूतपूर्व वृद्धि की गयी है। लेकिन विपक्ष इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं है।
बुनियादी ढांचा तेजी से विकसित हुआ है इसलिए पहले जहां जवानों तक पानी पहुँचाना भी मुश्किल होता था आज वहां सेना की गाड़ियां आसानी से पहुँच रही हैं और भारी हथियार भी पहुँच रहे हैं। तवांग में जो कुछ हुआ उसके बाद सारा मीडिया वहां पहुँचा हुआ है और वहां बुनियादी ढांचे के निर्माण संबंधी जो रिपोर्टें आ रही हैं वह दर्शा रही हैं कि सरकार ने बहुत कुछ किया है। पूर्वी लद्दाख में इस समय हालात सामान्य हैं। जो कहते हैं कि चीन हमारे घर में घुसकर बैठा हुआ है तो वह आज से नहीं 1962 से है। दोनों देशों के बीच कोई सीमा रेखा जब तक निर्धारित नहीं होती तब तक विवाद बना रहेगा इसीलिए भारत को चाहिए कि वह आगे बढ़कर अपनी सीमा घोषित कर दे।

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