ज्योतिष में मंगल की दशा में शुभ एवं अशुभ प्रभाव

ज्योतिषाचार्य डॉ उमाशंकर मिश्रा


नवग्रहो में मंगल को सेनापति का पद मिला हुआ है। यह बल, पराक्रम और पुरुषत्व का प्रमुख कारक ग्रह है। कुंडली के तीसरे, छठे भाव का और छोटे भाई का यह कारक है। इसका मेष और वृश्चिक राशि पर अधिकार होता है। मेष राशि में यह मूलत्रिकोण बली होता है। तो वृश्चिक राशि में स्वराशि जितना बल पाता मतलब मूलत्रिकोण राशि से कुछ कम बल प्राप्त करता है।जिन जातको की कुण्डली में मंगल मजबूत और शुभ प्रभाव लिए होता ऐसे जातक निडर और साहसी होते है। भूमि, मकान का अच्छा सुख मंगल की शुभ और बली स्थिति प्रदान करती है कुंडली के बली चोथे भाव या बली चतुर्थेश से बली मंगल का सम्बन्ध अच्छा मकान सुख देने वाला होता है। पुलिस, मिलिट्री, सेना जैसी जॉब में उच्च पद इसी मंगल के शुभ प्रभाव से मिलती है। स्त्रियों की कुंडली में यह मांगल्य का कारक है, संतान आदि के सम्बन्ध में भी गुरु की तरह स्त्रियों की कुंडली में मंगल से भी विचार किया जाता है।

कुंडली के 10वें भाव में यह दिग्बल प्राप्त करके शुभ फल देने वाला होता है एक तरह से योगकारक होता है। कर्क लग्न में पंचमेश और दशमेश होकर व् सिंह लग्न में चतुर्थेश, नवमेश केन्द्रेश त्रिकोणेश होकर प्रबल योगकारी और शुभ फल देने वाला होता है।सहन शक्ति का कारक भी यही है, जिन जातको का मंगल अशुभ होता है वह कायरो की तरह व्यवहार करते है। साहस और पराक्रम की ऐसे जातको में कमी रहती है।मेष, कर्क, सिंह, धनु, मीन लग्न में इसकी मजबूत और शुभ स्थिति होना इन लग्न की कुंडलियो के लिए आवश्यक होता है।केंद्र त्रिकोण भाव में यह अपनी उच्च राशि मकर, मूलत्रिकोण राशि मेष और स्वराशि वृश्चिक में होने पर रूचक नाम का बहुत सुंदर योग बनाता है, जिसके फल राजयोग के सामान होते है।

कुण्डली के अन्य ग्रह और योग शुभ होने से रूचक योग की शुभता और ज्यादा बढ़ जाती है।शरीर में यह खून, मास, बल आदि का यह कारक है। जिन जातको के लग्न में मंगल होता है ऐसे जातको का चेहरा लालिमा लिए हुए होता है, ऐसे जातको की शारीरिक स्थिति भी मजबूत होती है। चंद्र के साथ मंगल का लक्ष्मी योग बनाता है। जिसके प्रभाव से मंगल के शुभ फलो में ओर ज्यादा वृद्धि हो जाती है। चंद्र के बाद सूर्य गुरु के साथ इसका सम्बन्ध बहुत ही शुभ रहता है, उच्च अधिकारी बनने के लिए मंगल के साथ गुरु सूर्य का सम्बन्ध दशम भाव से होने पर सफलता प्रदान करता है। शुक्र बुध के साथ इसका सम्बन्ध सम रहता है तो शनि राहु केतु के साथ सम्बन्ध होने पर मंगल के फल नेगेटिव हो जाते है। शनि के साथ सम्बन्ध होने पर अशुभ विस्फोटक योग बनाता है तो राहु केतु के साथ अंगारक योग। मंगल की शुभता में वृद्धि करने के लिए ताबे का कड़ा, ताबे की अंगूठी, पहनना इसके शुभ प्रभाव में वृद्धि करता है। मेष, कर्क, सिंह, मीन लग्न में मूंगा पहनना मंगल की शुभता और बल में वृद्धि के लिए शुभ फल देने वाला होता है। कभी भी नीच ग्रह का रत्न नही पहनना चाहिए यदि वह योगकारी होकर भी नीच है तब भी ऐसे ग्रह का रत्न पहनना कभी शुभफल देने वाला नही होता।

मांगलिक कुंडली विचार…

लग्ने व्यये च पाताले, जामित्रे चाष्ट कुजे।

कन्या जन्म विनाशाय, भर्तुः कन्या विनाशकृत।।

अर्थात जन्म कुंडली में लग्न स्थान से 1, 4, 7, 8, 12वें स्थान में मंगल हो तो ऐसी कुंडली मंगलिक कहलाती है। श्लोकानुसार जिस ब्यक्ति की कुंडली में मंगल उपर्युक्त भावों में हो तो उसे विवाह के लिए मांगलिक वर-वधू ही खोजना चाहिए। इसके अलावा यदि पुरुष या स्त्री की कुंडली में 1, 4, 7, 8, 12वें भाव में शनि, राहु, सूर्य, मंगल हो तो कुंडली का मिलान हो जाता है। यदि एक की कुंडली में मंगल उपरोक्त भावों में स्तिथ हो तथा दूसरे की कुंडली में नहीं हो तो इस प्रकार के जातको के विवाह संबंध नहीं होने चाहिए। यदि अनजाने में भी कोर्इ विवाह संपन्न हो जाते हैं। तो या तो ऐसे संबंध कष्टकारी होते हैं या फिर दोनो में मृत्यु योग की भी संभावना हो सकती है। अत: दोष का निवारण भली भाँति कर लेना चाहिए।

कुंडली मे भावानुसार मंगल के फल…

प्रथम भाव : कार्य सिद्धि में विघ्न, सिर में पीडा, चंचल प्रवृति, व्यक्तित्व पर प्रभाव, स्वभाव, स्वास्थ्य, प्रतिष्ठा, समृद्धि, बुद्धि।

द्वितीय भाव : पैतृक सम्पति सुख का अभाव, परिवार, वाणी, निर्दयी प्रवृति, जीवन साथियो के बीच हिंसा, अप्राकृतिक मैथुन ।

चतुर्थ भाव : परिवार व भाइयो से सुख का अभाव, घरेलू वातावरण, संबंधी, गुप्त प्रेम संबंधी, विवाहित जीवन में ससुराल पक्ष और परिवार का हस्तक्षेप, आनुवांशिक प्रकृति।

सप्तम भाव : वैवाहिक जीवन प्रभावित, पतिपत्नी का व्यक्तित्व, जीवन साथी के साथ रिश्ता, काम शक्ति, जीवन के लिए खतरा, यौन रोग।

अष्टम भाव : मित्रों का शत्रुवत आचरण, आयु, जननांग, विवाहेतर जीवन, अनुकूल उद्यम करने पर भी मनोरथ कम, मति।

द्वादश भाव : विवाह, विवाहेतर काम क्रीड़ा, क्राम क्रीड़ा या योन संबंधो से उत्पन्न रोग, काम क्रीड़ा कमजोरी, शयन सुविधा, शादी में नुकसान, नजदीकी लोगो से अलगाव, परस्पर वैमनस्य, गुप्त शत्रु।

यदि किसी जातक को मंगल ग्रह के विपरीत परिणाम प्राप्त हो रहे, हों तो उनकी अशुभता को दूर करने के लिए निम्र उपाय करने चाहिएं-

मंगल के देवता हनुमान जी हैं, अंत: मंदिर में लड्डू या बूंदी का प्रसाद वितरण करें। हनुमान चालीसा, हनुमत-स्तवन, हनुमद्स्तोत्र का पाठ करें। विधि-विधानपूर्वक हनुमान जी की आरती एवं शृंगार करें। हनुमान मंदिर में गुड़-चने का भोग लगाएं।

यदि संतान को कष्ट या नुक्सान हो रहा हो तो नीम का पेड़ लगाएं, रात्रि सिरहाने जल से भरा पात्र रखें एवं सुबह पेड़ में डाल दें।

  • पितरों का आशीर्वाद लें। बड़े भाई एवं भाभी की सेवा करें, फायदा होगा।
  • लाल कनेर के फूल, रक्त चंदन आदि डाल कर स्नान करें।
  • मूंगा, मसूर की दाल, ताम्र, स्वर्ण, गुड़, घी, जायफल आदि दान करें।
  • मंगल यंत्र बनवा कर विधि-विधानपूर्वक मंत्र जप करें और इसे घर में स्थापित करें।
  • मंगल मंत्र ॐ क्रां क्रीं क्रौं स: भौमाया नम:।’ मंत्र के 40000 जप करें या कराएं फिर दशांश तर्पण, मार्जन व खदिर की समिधा से हवन करें।

अन्य मंत्र: ”ऊँ अं अगारकाय नम:

मूंगा धारण करें।

मंगलवार के व्रत एक समय बिना नमक बाल भोजन से अथवा फलाहार रह कर करें।

अन्य उपाय : हमेशा लाल रुमाल रखें, बाएं हाथ में चांदी की अंगूठी धारण करें, कन्याओं की पूजा करें और स्वर्ण न पहनें, मीठी तंदूरी रोटियां कुत्ते को खिलाएं, ध्यान रखें, घर में दूध उबल कर बाहर न गिरे।

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