हिन्दू धर्म में एकादशी व्रत या ग्यारस तिथि का महत्त्व  

जयपुर से राजेंद्र गुप्त


हिंदू धर्म में एकादशी या ग्यारस एक महत्वपूर्ण तिथि है। एकादशी व्रत की बड़ी महिमा है। एक ही दशा में रहते हुए अपने आराध्य देव का पूजन व वंदन करने की प्रेरणा देने वाला व्रत ही एकादशी व्रत कहलाता है। पद्म पुराण के अनुसार स्वयं महादेव ने नारद जी को उपदेश देते हुए कहा था, एकादशी महान पुण्य देने वाली होती है। कहा जाता है कि जो मनुष्य एकादशी का व्रत रखता है उसके पितृ और पूर्वज कुयोनि को त्याग स्वर्ग लोक चले जाते हैं।

एकादशी व्रत क्या है?

हिंदू पंचांग की ग्यारहवीं तिथि को एकादशी कहते हैं। एकादशी संस्कृत भाषा से लिया गया शब्द है जिसका अर्थ होता है ‘ग्यारह’। प्रत्येक महीने में एकादशी दो बार आती है–एक शुक्ल पक्ष के बाद और दूसरी कृष्ण पक्ष के बाद। पूर्णिमा के बाद आने वाली एकादशी को कृष्ण पक्ष की एकादशी और अमावस्या के बाद आने वाली एकादशी को शुक्ल पक्ष की एकादशी कहते हैं। प्रत्येक पक्ष की एकादशी का अपना अलग महत्व है। वैसे तो हिन्दू धर्म में ढेर सारे व्रत आदि किए जाते हैं। लेकिन इन सब में एकादशी का व्रत सबसे पुराना माना जाता है। हिन्दू धर्म में इस व्रत की बहुत मान्यता है।

एकादशी व्रत का महत्व क्या है?

पुराणों के अनुसार एकादशी को ‘हरी दिन’ और ‘हरी वासर’ के नाम से भी जाना जाता है। इस व्रत को वैष्णव और गैर-वैष्णव दोनों ही समुदायों द्वारा मनाया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि एकादशी व्रत हवन, यज्ञ , वैदिक कर्म-कांड आदि से भी अधिक फल देता है। इस व्रत को रखने की एक मान्यता यह भी है कि इससे पूर्वज या पितरों को स्वर्ग की प्राप्ति होती है। स्कन्द पुराण में भी एकादशी व्रत के महत्व के बारे में बताया गया है। जो भी व्यक्ति इस व्रत को रखता है उनके लिए एकादशी के दिन गेहूं, मसाले और सब्जियां आदि का सेवन वर्जित होता है। भक्त एकादशी व्रत की तैयारी एक दिन पहले यानि कि दशमी से ही शुरू कर देते हैं। दशमी के दिन श्रद्धालु प्रातः काल जल्दी उठकर स्नान करते हैं और इस दिन वे बिना नमक का भोजन ग्रहण करते हैं।

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एकादशी व्रत का नियम क्या है?

एकादशी व्रत करने का नियम बहुत ही सख्त होता है जिसमें व्रत करने वाले को एकादशी तिथि के पहले सूर्यास्त से लेकर एकादशी के अगले सूर्योदय तक उपवास रखना पड़ता है। यह व्रत किसी भी लिंग या किसी भी आयु का व्यक्ति स्वेच्छा से रख सकता है। एकादशी व्रत करने की चाह रखने वाले लोगों को दशमी (एकादशी से एक दिन पहले) के दिन से कुछ जरूरी नियमों को मानना पड़ता है। दशमी के दिन से ही श्रद्धालुओं को मांस-मछली, प्याज, दाल (मसूर की) और शहद जैसे खाद्य-पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए। रात के समय भोग-विलास से दूर रहते हुए, पूर्ण रूप से ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।

एकादशी के दिन सुबह दांत साफ़ करने के लिए लकड़ी का दातून इस्तेमाल न करें। इसकी जगह आप नींबू, जामुन या फिर आम के पत्तों को लेकर चबा लें और अपनी उँगली से कंठ को साफ कर लें। इस दिन वृक्ष से पत्ते तोड़ना भी ‍वर्जित होता है इसीलिए आप स्वयं गिरे हुए पत्तों का इस्तेमाल करें और यदि आप पत्तों का इतज़ाम नहीं कर पा रहे तो आप सादे पानी से कुल्ला कर लें। स्नान आदि करने के बाद आप मंदिर में जाकर गीता का पाठ करें या फिर पंडितजी से गीता का पाठ सुनें। सच्चे मन से ॐ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र जप करें। भगवान विष्णु का स्मरण और उनकी प्रार्थना करें। इस दिन दान-धर्म की भी बहुत मान्यता है इसीलिए अपनी यथाशक्ति दान करें।

एकादशी के अगले दिन को द्वादशी के नाम से जाना जाता है। द्वादशी दशमी और बाक़ी दिनों की तरह ही आम दिन होता है। इस दिन सुबह जल्दी नहाकर भगवान विष्णु की पूजा करते हैं और सामान्य भोजन को खाकर व्रत को पूरा करते हैं। इस दिन ब्राह्मणों को मिष्ठान्न और दक्षिणा आदि देने का रिवाज़ है। ध्यान रहे कि श्रद्धालु त्रयोदशी आने से पहले ही व्रत का पारण कर लें। इस दिन कोशिश करनी चाहिए कि एकादशी व्रत का नियम पालन करें और उसमें कोई चूक न हो।

एकादशी व्रत का भोजन या आहार क्या होना चाहिए?

शास्त्रों के अनुसार श्रद्धालु एकादशी के दिन आप इन वस्तुओं और मसालों का प्रयोग अपने व्रत के भोजन में कर सकते हैं –

  1. ताजे फल
  2. मेवे
  3. चीनी
  4. कुट्टू
  5. नारियल
  6. जैतून
  7. दूध
  8. अदरक
  9. काली मिर्च
  10. आलू
  11. साबूदाना
  12. शकरकंद
  13. सेंधा नमक

एकादशी व्रत का भोजन सात्विक होना चाहिए। कुछ व्यक्ति यह व्रत बिना पानी पिए संपन्न करते हैं जिसे निर्जला एकादशी के नाम से जाना जाता है।

एकादशी व्रत को क्या नही करना चाहिए ?

वृक्ष से पत्ते नही तोडना।

घर में झाड़ू न लगाएं। ऐसा इसीलिए किया जाता है क्यूंकि घर में झाड़ू आदि लगाने से चीटियों या छोटे-छोटे जीवों के मरने का डर होता है। और इस दिन जीव हत्या करना पाप होता है।

बाल न कटवाएं।

ज़रूरत हो तभी बोलें। कम से कम बोलने की कोशिश करें। ऐसा इसीलिए किया जाता है क्यूंकि ज्यादा बोलने से मुँह से गलत शब्द निकलने की संभावना रहती है।

एकादशी के दिन चावल का सेवन भी वर्जित होता है।

किसी का दिया हुआ अन्न आदि न खाएं।

मन में किसी प्रकार का विकार न आने दें।

यदि कोई फलाहारी है तो वे गोभी, पालक, शलजम आदि का सेवन न करें। वे आम, केला, अंगूर, पिस्ता और बादाम आदि का सेवन कर सकते है।

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एकादशी व्रत की कथा

हर व्रत को मनाये जाने के पीछे कोई न कोई धार्मिक वजह या कथा छुपी होती है। एकादशी व्रत मनाने के पीछे भी कई कहानियां है। एकादशी व्रत कथा को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। जैसा कि हम सब जानते हैं एकादशी प्रत्येक महीने में दो बार आती है, जिन्हें हम अलग-अलग नामों से जानते हैं। सभी एकादशियों के पीछे अपनी अलग कहानी छुपी है। एकादशी व्रत के दिन उससे जुड़ी व्रत कथा सुनना अनिवार्य होता है। शास्त्रों के अनुसार बिना एकादशी व्रत कथा सुने व्यक्ति का उपवास पूरा नहीं होता है।

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