राजेश श्रीवास्तव
लखनऊ। पिछले दिनों मैनपुरी चुनाव को लेकर शिवपाल और अखिलेश यादव की मुलाकात के बड़े मायने निकाले गये। लेकिन असल कहानी तो लोग कम ही पकड़ पाये। पूरी कहानी का संदेश तो खुद शिवपाल यादव ने अपने एक ट्वीट से कर दिया है। शिवपाल यादव ने भतीजे और सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव व बहू डिंपल से मुलाकात के बाद जो ट्वीट किया है वह ही सारी कहानी कह रहा है। मैनपुरी चुनाव को लेकर सियासी हलचल मचा हुआ है। वहीं इस चुनाव को लेकर सबकी नजर सपा परिवार पर है। वहीं चुनावी मुद्दे को लेकर शिवपाल यादव के इटावा स्थित घर पर पहुंच कर अखिलेश यादव ने मुलाकात की। डिपल यादव भी पहुंची। चर्चा मैनपुरी लोकसभा उप चुनाव को लेकर हुई। परिवार की एकजुटता पर भी। और शिवपाल यादव मान गए। दो दिन पहले तक शिवपाल अपनी पार्टी प्रसपा को मजबूत बनाने और इसे मुलायमवादी असली समाजवादी पार्टी बताने में जुटे थे। अचानक मान गए। राजनीति में यह असंभव नहीं है। मानना और रूठना तो राजनीति के दो अहम हिस्से हैं।
वहीं इस मुलाकात को लेकर काफी चर्चा चल रही है। कयास लगाया जा रहा है कि शिवपाल यादव की समाजवादी पार्टी में वापसी हो सकती है। चर्चा उन दोनों परिस्थितियों की। शिवपाल के सपा में आने और उनके सपा में न आने की। आज की परिस्थिति में दोनों ही स्थितियों में शिवपाल यादव की स्थिति बेहतर ही होने वाली है। शिवपाल यादव ने एक झटके में पूरे यादवलैंड की राजनीतिक विसात पर ‘शह’ हासिल कर ली है। यादवलैंड की पॉलिटिक्स में इमोशन और रिश्ते काफी अहम होते हैं। शिवपाल इसे बखूबी जानते और मानते हैं। इसलिए, उनके निर्णय पर खुशी भी जताई जा रही है और उन्हें उचित स्थान देने की मांग भी हो रही है।
शिवपाल मुलायम के सिद्धांतों के आधार पर प्रगतिशील समाजवादी पार्टी बनाने का ऐलान किया था। हालांकि, फायदा उन्हें नहीं मिला। लेकिन, समाजवादी पार्टी को नुकसान जरूर हो गया। 2०19 में सपा-बसपा गठबंधन के बाद भी पार्टी ने 2०14 से कोई भी बेहतर प्रदर्शन नहीं किया। 5 सीटों पर ही जीत दर्ज कर पाने में कामयाब हो पाए। यूपी चुनाव 2०22 में अखिलेश यादव ने शिवपाल को साथ में जोड़ा। हालांकि, पहले तीन चरणों तक उन्हें जसवंतनगर में ही सीमित करके छोड़ा गया। फिर ग्राउंड रिपोर्ट आई और पश्चिमी यूपी में किसान आंदोलन के बाद भी सपा गठबंधन के बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद से संबंधित मामला सामने आया, तो शिवपाल को समाजवादी पार्टी का स्टार प्रचारक बना दिया गया।
शिवपाल यादव ने अखिलेश यादव और डिपल यादव के साथ मुलाकात के बाद तस्वीरें जारी की। इसमें वे मुस्कुराते हुए दिख रहे हैं। बातचीत करते दिख रहे हैं। रणनीति बनाते दिख रहे हैं। हालांकि, उन्होंने ट्वीट में जो लिखा है, उसके शब्दों पर गौर करेंगे तो आपको उनके पीछे की राजनीति साफ समझ में आ जाएगी। शिवपाल यादव ने लिखा है कि जिस बाग को सींचा हो खुद नेता जी ने… उस बाग को हम सीचेंगे अपने खून पसीने से। अब बाग मतलब समाजवादी पार्टी ही समझ में आता है, क्योंकि अखिलेश यादव और डिपल यादव तो बाग नहीं ही कहे जाएंगे। साफ है कि शिवपाल की नजर समाजवादी पार्टी में एंट्री पर है।
वहां बड़ी भूमिका मिलने पर है। शिवपाल के दोनों हाथों में लड्डू हैं। शिवपाल जानते हैं कि समाजवादी पार्टी में अब उनकी डिमांड बढ़ेगी, सब लोग जानते हैं कि अगर डिंपल जीतीं तो साफ संदेश जायेगा कि मेरी वजह से डिंपल को जीत हासिल हुई है। शिवपाल इस क्रेडिट को अपने सिर-माथे ही रखना चाहेंगे, इसीलिए उन्होंने बैठक कर अपने कार्यकर्ताओं को जुटने का संदेश दे दिया है। दूसरी तरफ अगर अखिलेश यादव ने उन्हें पहले की तरह दांव दिया तो भी शिवपाल को कोई नुकसान नहीं होगा।
उन्होंने सभी कार्यकर्ताओं को संदेश दिया कि बड़े भाई मुलायम के न रहने पर उन्होंने बड़ा मन दिखाते हुए, अपना सब कुछ दांव पर लगाते हुए बहू के पक्ष में काम किया लेकिन अखिलेश ने ही उनके साथ दगा दिया। ऐसे में पार्टी का एक बड़ा तबका शिवपाल के साथ खड़ा होगा और खुद डिंपल यादव भी चाचा से मुंह नहीं मोड़ पायेंगे ऐसे में अखिलेश पर घर से लेकर बाहर तक दबाव पड़ेगा। और अखिलेश दूरी नहीं रख पायेंगे। इसीलिए शिवपााल भाजपा के इस बयान का कोई खंडन नहीं कर रहे हैं, जिसमें भाजपा नेता कह रहे हैं कि आज चाचा शिवपाल खून दे रहे हैं, लेकिन चुनाव के बाद अखिलेश उन्हें खून के आंसू रुलायेंगे। ऐसी स्थिति में शिवपाल भाजपा को भी संदेश देना चाहते हैं कि जिन शिवपाल को भाजपा दो सालों से टहला रही है, वह कितने ताकतवर हैं। बिना शिवपाल के अखिलेश को चित कर पाना आसान नहीं है, यह शिवपाल का बड़ा संदेश जायेगा।