अमूमन औषधियाँ वाली वनस्पतियां भी सिलबट्टे पर ही पीसी जाती है। ताकि उनका सारा तत्व संजोया रह सके। एक बार ओडिशा से एक तेलुगू नियोगी ब्राह्मण टीचर मुझसे मिले बड़ौदा के प्रतापनगर रेलवे कॉलोनी में मिलने आए। अपनी कन्या हेतु अच्छा साथी खोजने। उन्हें राष्ट्रपति वीवी गिरी ने श्रेष्ठतम प्राइमरी अध्यापक के राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया था। गिरि स्वयं (उड़ीसा के) नियोगी विप्र थे। हमारे सजातीय और संबंधी भी। तभी हमारी शादी के साल भर ही हुए थे।
हम पति पत्नी ने कुछ धन बचाकर बढ़िया सोफा सेट खरीदा था। वे मास्टर जी घर आए तो यही मेरी अपेक्षा थी कि वे हमारा नये, सुंदर सोफा सेट को निहारेंगे, तारीफ करेंगे। पर वाह ! वे प्राइमरी मास्टरजी बालकनी में खड़े होकर, रैलिंग थामे, सामने मैदान में उगे नीम वृक्षों की स्तुति करने लगे : “कितना प्रदूषण खत्म करता है। पत्तियां कितनी पाचक, रोग निवारक होती हैं, दतुअन से दांत बहुत निरोग रहते हैं” आदि। मेरा आक्रोशित होना स्वाभाविक था। मगर तभी मैंने सोचा कि अब कारण मिल गया कि इन मास्टर जी को राष्ट्रपति पुरस्कार क्यों दिया गया।