“सुपरइम्पोजिशन टेस्ट“ सुलझाएगा दिल्ली मर्डर केस की गुत्थी,

क्या है कंकाल की ‘कुंडली’ बताने वाला सुपरइम्पोजिशन टेस्ट?


रंजन कुमार सिंह


यह पहला मौका नहीं है जब कोर्ट ने इस टेस्ट की परमिशन दी है। इससे पहले मर्डर और बम ब्लास्ट के मामले में यह टेस्ट किया जा चुका है। सुपरइम्पोजिशन टेस्ट एक फॉरेंसिक टेक्नीक है, जिसका इस्तेमाल अज्ञात खोपड़ी की जांच के लिए किया जाता है। मर्डर और बम ब्लास्ट के कई मामलों में सुपरइम्‍पोजिशन टेस्‍ट किया जा चुका है। दिल्ली के जनकपुरी में 59 साल के शख्स के मर्डर की जांच के लिए कोर्ट ने सुपरइम्पोजिशन टेस्ट करने की अनुमति दे दी है। शख्स की हत्या के बाद उसे पेट्रोल में डुबोकर नाले में फेंक दिया गया था। पुलिस ने नाले से उस शख्स की खोपड़ी और दूसरे अंग बरामद किए हैं। मारे गए व्यक्ति की पहचान जनकपुरी में रहने वाले असित सान्याल के रूप में हुई थी। चूंकि सान्याल के बड़े भाई की मौत पहले ही चुकी थी और वो अकेले रहते थे।

इसलिए बरामद हुई खोपड़ी उसी शख्स की थी या नहीं, इसे जानने के लिए सुपरइम्पोजिशन टेस्ट किया जाएगा। यह पहला मौका नहीं है जब कोर्ट ने इस टेस्ट की परमिशन दी है। इससे पहले मर्डर और बम ब्लास्ट के मामले में यह टेस्ट किया जा चुका है। सुपरइम्पोजिशन टेस्ट एक फॉरेंसिक टेक्नीक है जिसका इस्तेमाल अज्ञात खोपड़ी यानी सिर के कंकाल की जांच के लिए किया जाता है। इससे कई तरह बातें सामने आती हैं।

क्या है सुपरइम्पोजिशन टेस्ट

साइंस डायरेक्ट की रिपोर्ट के मुताबिक, सुपरइम्पोजिशन टेस्ट का इस्तेमाल खासतौर पर सिर के कंकाल की जांच करने के लिए किया जाता है। इस टेस्ट के जरिये अंजान खोपड़ी की जांच की जाती है। फॉरेंसिक एक्सपर्ट इस तकनीक का इस्तेमाल तब करते हैं जब इंसान की पहचान अनुमान के मुताबिक नहीं हो पाती है और जांच अधिकारी को संदेह रहता है कि बरामद खोपड़ी किसी विशेष लापता इंसान की हो सकती है। पिछले 5 सालों में सुपरइम्पोजिशन तकनीक में काफी डेवलपमेंट हुआ है जिसकी वजह से कई बातें सामने आती हैं।

ऐसे किया जाता है यह टेस्ट

सुपरइम्पोजिशन टेस्ट की मदद से जांच के दौरान मिले सिर के कंकाल और मौत से पहले उस शख्स की तस्वीरों की एनालिसिस की जाती है। दोनों की तुलना करके यह समझने की कोशिश की जाती है कि उनमें कितनी समानताएं हैं। टेस्ट के दौरन चेहरे खोपड़ी और उस इंसान की तस्वीरों की जांच की जाती है। टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, जांच के लिए एक्सपर्ट सबसे पहले संदिग्ध इंसान की तस्वीरों से एक खोपड़ी की संरचना तैयार करते हैं। हर के एक पॉइंट को तस्वीरों के मुताबिक तैयार किया जाता है। इसके बाद एक्सपर्ट अज्ञात खोपड़ी और उस संरचना का मिलान करते हैं।

दिल्ली मर्डर केस से पहले शीना बोरा मर्डर केस में भी इस तकनीक का प्रयोग किया गया था। इसके अलावा 1945 में एडोल्फ हिटलर के अवशेषों की पहचान भी सुपर इम्पोजिशन टेस्ट में इस्तेमाल होने वाली तकनीक के जरिये हुई थी।  यह एक पुरानी तकनीक है। पहले इस टेस्ट को मैन्युअली किया जाता था, लेकिन अब डिजिटल युग में यह तकनीक एडवांस्ड हो गई है। अब पहले के मुकाबले समय की काफी बचत होती है। बेहतर और सटीक परिणाम सामने आते हैं। भारत में इस टेस्ट को करने से पहले कोर्ट से अनुमति लेनी पड़ती है।

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