बैकुंठ चतुर्दशी: भगवान विष्णु और शंकर दोनों की आराधना का दिन, पापों से मुक्त होकर होती है बैकुंठ प्राप्ति,

जयपुर से राजेंद्र गुप्ता


बैकुंठ चतुर्दशी कार्तिक पूर्णिमा से एक दिन पहले मनाया जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि का विशेष महत्व है। इसे बैकुंठ चतुर्दशी कहा जाता है। कार्तिक माह के दौरान शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को भगवान विष्णु के साथ-साथ भगवान शिव के भक्तों के लिए भी पवित्र माना जाता है क्योंकि बैकुंठ चतुर्दशी के दिन श्रीहरी विष्णु और भगवान शंकर दोनों की आराधना की जाती है। मान्यता है कि इस दिन श्रीहरि विष्णु की पूजा करने पर साधक को बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है और शिव की कृपा से पापों से मुक्ति मिलती है। वाराणसी के अधिकांश मंदिर वैकुंठ चतुर्दशी मनाते हैं और यह देव दिवाली के एक और महत्वपूर्ण अनुष्ठान से एक दिन पहले आता है। वाराणसी के अलावा, वैकुंठ चतुर्दशी ऋषिकेश, गया और महाराष्ट्र के कई शहरों में भी मनाई जाती है।

बैकुंठ चतुर्दशी की तिथि

कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि प्रारंभ: 6 नवंबर 2022, रविवार, सायं 4: 28 मिनट पर
कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि समाप्त: 7 नवंबर 2022, सोमवार सायं 4: 15 मिनट पर
शास्त्रों के अनुसार बैकुंठ चतुर्दशी पर विष्णु जी की पूजा निशिता काल में की जाती है, इसलिए बैकुंठ चतुर्दशी 6 नवंबर को मनाई जाएगी।

बैकुंठ चतुर्दशी का मुहूर्त

निशिताकाल पूजा मुहूर्त- 06 नवंबर 2022, 11:45 पीएम – से 07 नवम्बर, 2022 12:37 एएम तक
सुबह पूजा का मुहूर्त – 06 नवंबर 2022, प्रातः 11.48 – दोपहर 12.32 तक,

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बैकुंठ चतुर्दशी महत्व

बैकुंठ चतुर्दशी का दिन बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। यह दिन इसीलिए विशेष हैं क्यूंकी इस दिन भगवान विष्णु और भगवान शिव दोनों की आराधना की जाती है। शिव पुराण के अनुसार बैकुंठ चतुर्दशी के दिन ही भगवान शिव ने भगवान विष्णु को सुदर्शन चक्र दिया था। धार्मिक मान्यता के अनुसार यदि कोई भक्त इस दिन भगवान विष्णु की 1 हजार कमल के फूल से पूजा करता है तो उसे बैकुंठ धाम में स्थान प्राप्त होता है।

बैकुण्ठ चतुर्दशी की पूजा विधि

चतुर्दशी के दिन प्रातः काल स्नान आदि से निवृत होकर व्रत का संकल्प लें।

इसके बाद श्री हरि विष्णु की 108 कमल पुष्पों से पूजा करें।

अब भगवान शंकर की भी पूजा अनिवार्य रूप से करें।

इस पूरे दिन विष्णु और शिव जी के नाम का उच्चारण करें।

पूजा के दौरान इस मंत्र जाप को अवश्य करें-विना यो हरिपूजां तु कुर्याद् रुद्रस्य चार्चनम्। वृथा तस्य भवेत्पूजा सत्यमेतद्वचो मम।।

वैकुंठ चतुर्दशी की पौराणिक कथाएं

वैकुंठ चतुर्दशी की पौराणिक कथा के अनुसार एक बार की बात है नारद जी पृथ्वी लोक से घूम कर बैकुंठ धाम पंहुचते हैं। भगवान विष्णु उन्हें आदरपूर्वक बिठाते हैं और प्रसन्न होकर उनके आने का कारण पूछते हैं।  नारद जी कहते है- हे प्रभु! आपने अपना नाम कृपानिधान रखा है। इससे आपके जो प्रिय भक्त हैं वही तर पाते हैं। जो सामान्य नर-नारी है, वह वंचित रह जाते हैं। इसलिए आप मुझे कोई ऐसा सरल मार्ग बताएं, जिससे सामान्य भक्त भी आपकी भक्ति कर मुक्ति पा सकें। यह सुनकर विष्णु जी बोले- हे नारद! मेरी बात सुनो, कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को जो नर-नारी व्रत का पालन करेंगे और श्रद्धा-भक्ति से मेरी पूजा-अर्चना करेंगे, उनके लिए स्वर्ग के द्वार साक्षात खुले होंगे। इसके बाद विष्णु जी जय-विजय को बुलाते हैं और उन्हें कार्तिक चतुर्दशी को स्वर्ग के द्वार खुला रखने का आदेश देते हैं। भगवान विष्णु कहते हैं कि इस दिन जो भी भक्त मेरा थोडा़-सा भी नाम लेकर पूजन करेगा, वह बैकुंठ धाम को प्राप्त करेगा।

पौराणिक मतानुसार एक बार भगवान विष्णु देवाधिदेव महादेव का पूजन करने के लिए काशी आए। वहां मणिकर्णिका घाट पर स्नान करके उन्होंने 1000 (एक हजार) स्वर्ण कमल पुष्पों से भगवान विश्वनाथ के पूजन का संकल्प किया। अभिषेक के बाद जब वे पूजन करने लगे तो शिवजी ने उनकी भक्ति की परीक्षा के उद्देश्य से एक कमल पुष्प कम कर दिया।  भगवान श्रीहरि को पूजन की पूर्ति के लिए 1000 कमल पुष्प चढ़ाने थे। एक पुष्प की कमी देखकर उन्होंने सोचा मेरी आंखें भी तो कमल के ही समान हैं। मुझे ‘कमल नयन’ और ‘पुंडरीकाक्ष’ कहा जाता है। यह विचार कर भगवान विष्णु अपनी कमल समान आंख चढ़ाने को प्रस्तुत हुए।

विष्णु जी की इस अगाध भक्ति से प्रसन्न होकर देवाधिदेव महादेव प्रकट होकर बोले- ‘हे विष्णु! तुम्हारे समान संसार में दूसरा कोई मेरा भक्त नहीं है। आज की यह कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी अब ‘बैकुंठ चतुर्दशी’ कहलाएगी और इस दिन व्रतपूर्वक जो पहले आपका पूजन करेगा, उसे बैकुंठ लोक की प्राप्ति होगी। भगवान शिव ने इसी बैकुंठ चतुर्दशी को करोड़ों सूर्यों की कांति के समान वाला सुदर्शन चक्र, विष्णु जी को प्रदान किया। शिवजी तथा विष्णुजी कहते हैं कि इस दिन स्वर्ग के द्वार खुले रहेंगें। मृत्युलोक में रहना वाला कोई भी व्यक्ति इस व्रत को करता है, वह अपना स्थान बैकुंठ धाम में सुनिश्चित करेगा।

धनेश्वर नामक एक ब्राह्मण था जो बहुत बुरे काम करता था, उसके ऊपर कई पाप थे। एक दिन वो गोदावरी नदी में स्नान के लिए गया, उस दिन वैकुंठ चतुर्दशी थी। कई भक्तजन उस दिन पूजा अर्चना कर गोदावरी घाट पर आए थे, उस भीड़ में धनेश्वर भी उन सभी के साथ था। इस प्रकार उन श्रद्धालु के स्पर्श के कारण धनेश्वर को भी पुण्य मिला। जब उसकी मृत्यु हो गई तब उसे यमराज लेकर गए और नरक में भेज दिया। तब भगवान विष्णु ने कहा यह बहुत पापी हैं पर इसने वैकुंठ चतुर्दशी के दिन गोदावरी स्नान किया और श्रद्धालुओं के पुण्य के कारण इसके सभी पाप नष्ट हो गए इसलिए इसे वैकुंठ धाम मिलेगा। अत: धनेश्वर को वैकुंठ धाम की प्राप्ति हुई।


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