तेलुगुभाषियों का वरलक्ष्मी व्रत देवी लक्ष्मी की प्रसन्नता का पर्व है। वरलक्ष्मी देवी वह है जो वर (वरदान) देती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह व्रत देवी पार्वती द्वारा समृद्धि और सुख की प्राप्ति के लिए किया गया था। वरलक्ष्मी व्रत श्रावण माह के अंतिम शुक्रवार के दिन रखा जाता है, सरल भाषा में समझे तो श्रावण पूर्णिमा अर्थात रक्षा बंधन से पहिले आने वाले शुक्रवार को वरलक्ष्मी की पूजा एवं व्रत किया जाता है। इसे करने से अष्टलक्ष्मी की पूजा के समान पुण्य प्राप्त होता है। इससे दरिद्रता समाप्त होती है एवं परिवार में सुख-संपत्ति की वृद्धि होती है। यह व्रत आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, तमिलनाडु एवं महाराष्ट्र जैसे दक्षिण भारतीय राज्यों में बहुत अधिक लोकप्रिय है। इस दिन ज्यादातर विवाहित महिलाएं अपने पति और परिवार के सदस्यों के कल्याण, धन, संपत्ति और वैभव के लिए यह व्रत करती हैं।
दिवाली की रात लक्ष्मी माता के साथ-साथ काली मां की भी पूजा की जाती है, इसे काली चौदस कहते हैं। हिंदू धर्म में मान्यता के अनुसार काली पूजा के दिन ही मां काली 64 हजार योगिनियों के साथ प्रकट हुई थी। उन्होंने रक्तबीज सहित कई असुरों का संहार किया था। इसीलिए बंगाली समुदाय के लोग इस पूजा को शक्ति पूजा के रूप में भी मानते हैं। पश्चिम बंगाल, ओड़िसा, असम, झारखंड के इलाकों में दिवाली के दिन को मां काली की पूजा धूमधाम से की जाती है। बंगाली परंपरा में दीपावली को काली पूजा ही कहें कर संबोधित किया जाता है। अत: आज के समतावादी युग में पति—पत्नी को एकसाथ एक ही व्रत करना चाहिए। तभी फल की प्राप्ति होगी।
K Vikram Rao
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