दो साल से फरार IPS मणिलाल पाटीदार ने कोर्ट में किया सरेंडर
अंधा बांटे रेवड़ी अपने अपने को दे
ए अहमद सौदागर
लखनऊ। इस कहावत को उत्तर प्रदेश पुलिस ने एक बार फिर चरितार्थ कर दिया है। IPS अधिकारी मणिलाल पाटीदार के खिलाफ एफआईआर दर्ज होने के बाद कार्रवाई का ढिंढोरा दो साल से पीटा जा रहा था। कोर्ट से गिरफ्तारी के वारंट हासिल किए गए 82 और 83 ( कुर्की ) की कार्रवाई भी कागज़ों पर की गई, लेकिन हकीकत कुछ और ही थी। मणिलाल पाटीदार को शासन ने निलंबित करके डीजीपी मुख्यालय से संबद्ध किया और बर्खास्तगी के लिए केन्द्र सरकार को पत्रावली भेजी जो अभी भी दबी हुई है, यानी कि मणिलाल पाटीदार फिलहाल निलंबित हैं और देर सबेर बहाल होकर किसी जिले का कप्तान बनने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है। यही वजह है कि पुलिसकर्मियों में उनका डर बरकरार रहा। तभी दो साल में कोई भी मातहत उन्हें पकड़ नहीं सका और बड़े आराम से सूबे की राजधानी में न्यायालय पहुंचे और आत्मसमर्पण कर दिया।
एक निलंबित एवं फरार IPS अधिकारी की न तो सर्विलांस टीम लोकेशन ट्रेस कर सकी और न ही पुलिस के सुरमा उसे पकड़ पाए। सनद रहे कि मूल रूप से राजस्थान राज्य के रहने वाले और महोबा के एसीपी रहे IPS अधिकारी मणिलाल पाटीदार के खिलाफ महोबा के एक खनन व्यापारी से छह लाख रुपये की रिश्वत मांगने का आरोप लगाया था। इस मामले में उन्हें 9 सितंबर 2020 को निलंबित किया गया था तभी से वह फरार चल थे। बताया जा रहा है कि एसआईटी ने उन्हें व्यापारी को आत्महत्या के लिए उकसाने का दोषी ठहराया था। उन पर महोबा कोतवाली और विजिलेंस में मुकदमा दर्ज किया गया था।
मणिलाल पाटीदार 2014 बैच के IPS अधिकारी हैं। एडीजी जोन प्रयागराज ने उन पर एक लाख रुपये का पुरस्कार घोषित किया था। यूपी की पुलिस व एजेंसी मणिलाल पाटीदार को पकड़ने में नाकाम रही। उन्होंने शनिवार को लखनऊ में एडीजे 9 की कोर्ट में आत्मसमर्पण कर दिया। बताया जा रहा है कि महोबा निवासी खनन व्यापारी इंद्रकांत त्रिपाठी ने 7 सितंबर 2020 को वीडियो वायरल कर एसपी पर गंभीर आरोप लगाए थे। इंद्रकांत त्रिपाठी को 9 सितंबर 2020 को संदिग्ध हालात में गोली लगी थी और 14 सितंबर को कानपुर के अस्पताल में इलाज के दौरान मौत हो गई थी। सूबे की सरकार ने तत्कालीन आईजी वाराणसी विजय सिंह मीणा की अध्यक्षता में एक SIT का गठन कर जांच के लिए महोबा भेजा था। बार-बार बुलाए जाने के बाद भी पाटीदार एसआईटी के सामने पेश नहीं हुए थे। एसआईटी ने अपनी जांच में पाटीदार को आत्महत्या के लिए उकसाने का दोषी माना था।