इल्तुतमिश ने तोड़ा, मोदी ने संवारा!

महाकाल शिवलिंग की वीरगाथा !!


के. विक्रम राव


खोरासान के बटमार मुहिउद्दीन मोहम्मद गोरी के गुलाम कुतुबुद्दीन ऐबक के ही गुलाम शम्सुद्दीन इल्तुतमिश ने करीब नौ सदियां बीते धर्मनगरी उज्जैन को खण्डित किया था, लूटा था। स्वयंभू दक्षिणामूर्ति शिवलिंग को क्षिप्रा नदी में फेंक दिया था। ऐसा ही फरगना के डाकू जहीरूद्दीन बाबर द्वारा श्रीराम जन्मस्थल पर जघन्य प्रहार हुआ था। आलमगीर औरंगजेब के वहशियानापन का शिकार बने विश्वनाथ मंदिर को तो मोदी ने विभूषित किया। भारत ऋणी है। राजा भोज द्वारा पूजित, कालिदास द्वारा महिमा मंडित, बारह लिंगों में से एक शंकर भगवान का यह देवालय जंबुद्वीप में प्राचीन ज्ञान का भण्डार रहा, मेधा का पर्याय और आस्था केन्द्र की धुरी। हिन्दुओं के धैर्य और शौर्य की सीमा अपार थी। अत: स्वाधीनता के बाद दशकों तक वे शांति से सुधार हेतु प्रतीक्षारत रहा। पराधीन प्रजा तो बेबस ही रही थी। आजादी के सात दशकों बाद वोट के लुटेरे, मजहब के दलालों की उदासीनता से ही शासन में लोकास्था डिगी। इस बीच अयोध्या का भी समाधान हो गया है। सोमनाथ को तो सरदार वल्लभभाई पटेल ने पहले ही संवार दिया था, जवाहरलाल नेहरु के जोरधार प्रतिरोध के बावजूद। अत: भला हो नरेन्द्र दामोदरदास मोदी का कि अपने सहप्रदेशीय सरदार पटेल की भांति वे भी तत्पर हुये राष्ट्र गौरव को संजोने के लिये।

मगर गत सप्ताह महाकाल मंदिर को संवारकर मोदी ने कई पीढ़ियों पर उपकार कर दिया। उज्जयिनी का यह देवालय प्राचीन ज्ञान का भंडार रहा। उज्जयिनी भारत की प्राचीनतम महान नगरियों में एक है महाकालेश्वर। इतिहास, धर्म, दर्शन, कला, साहित्य, योग—वेदांत, आयुर्वेद—ज्योतिष, साधु—संत, पर्व वाली। चमत्कार की यह विलक्षण नगरी भारत के हृदय ”मालव प्रदेश” में स्थित है। इस नगरी में एक तरफ काल—गणना का केन्द्र, ज्योतिष की जन्मभूमि, और स्वयं ज्योतिर्लिंग भूतभावन भगवान महाकाल की नगरी है, तो दूसरी ओर जगदगुरु कृष्ण भी यहीं विद्याध्ययन करने आये थे, उन्हीं महर्षि संदपनी की यह नगरी है। यहां पर संवत प्रवर्तक ”सम्राट विक्रम” ने अपना शासन चलाया। शकों और हूणों को परास्त कर पराक्रम की पताका फहरायी तो यहीं पर महाकविगण भास, कालिदास, भवभूति और भर्तृहरि ने कला—साहित्य के अमर ग्रंथों का प्रणयन भी किया और वैराग्य की धूनि भी रमाई। श्रृंगार—नीति और वैराग्य की अलख जगाने वाले तपस्वी, ‘जदरूप’ और योगी पीर मत्येन्द्रनाथ की साधना—स्थली भी यहीं हैं। चण्डप्रद्योत, उदयन—वासवदत्ता, चण्डाशोक के न्याय और शासन की केन्द्र धुरी रही है यह, नवरत्नों से सजी—धजी कैसी रही होगी ये उज्जयिनी! ज्योतिष जगत के सूर्य वराहमिहिर, चिकित्सा के चरक, धन्वंतरि और शंकु—घटखर्पर—वररूचि जैसे महारथियों से अलंकृत रही थी !

क्या गुल खिले दलित-मुस्लिम जोड़ से यूपी में !

यहां कालखण्डों की अवधि तथा सीमा नहीं होती। मगर भूमंडल को स्पंदन की अनुभूति यहीं होती है। ज्योतिर्लिंग के सान्निध्य से ही अवसान के बाद नवजीवन का संचार भी होता है। यात्रा अनंत होती है, अंत से। काल की रेखायें ही मिट जातीं हैं। स्तंभ हैं 108 जो शिव के आनंद का ताडव का ही स्वरूप है। यूं तो वेद, पुराण, उपनिषद, कथा—सरित्सागर, बाणभट्ट की कादम्बरी, शूद्रक के मृच्छकटिकम और आयुर्वेद, योग, वैदिक—वांगमय, योग—वेदांत, काव्य, नाटक से लेकर कालिदास के मेधदूत तक इस नगरी के गौरवगान से भरे पड़े हैं। पाली, प्राकृत—जैन, बौद्ध और संस्कृत—साहित्य के असंख्य ग्रंथों में उज्जैन के वैभव का विस्तार से वर्णन हुआ है। परिमल कवि ने इसे स्वर्ग का टुकड़ा कहा है तो सट्टक कर्पूर मंजरी एवं काव्य मीमांसा के ​कवि राजशेखर ने इसे स्वर्ग से ही सुंदर नगरी निरूपित किया है। उज्जयिनी का सर्वाधिक विषद् विवरण ब्रह्मापुराण, स्कंदपुराण के अवंति खंड में हुआ है। कनकश्रृंगा, कुशस्थली, अवंतिका, उज्जयिनी, पद्मावती, कुमुदवती, अमरावती, विशाली, प्रतिकल्पा, भोगवती, हिरण्यवती अनेक नामों से इस नगरी को सम्मानित हुयी।

इसमें शिवपर्वती विवाह, त्रिपुरासुर वध, त्रिनेत्रधारी का तांडव आदि वर्णित है। यह धर्मनगरी स्कंद पुराण की अवंती खण्ड में उल्लेखित है। ब्रह्माण्ड का मूल है। मूर्ति की उपासना मात्र से सारे ग्रहों का नियंत्रण तथा संचालन होता है। शिवर्लिंग पर अरुण पराग (सिंदूर) लगाकर प्रधानमंत्री ने जब ”जयमहाकाल” का सूत्र उच्चारा था तो लोकास्था अधिक जागृत हो गयी थी कि अब भारत में सांस्कृतिक नवक्रांति होगी। यही कवि कालिदास द्वारा महाकाल वन की जो परिकल्पना की है उसे समुचित और दिव्यरूप में साकार किया गया है।

महाकाल मंदिर के जीर्णोंद्धार और परिमार्जन की भी एक गाथा है। अपने संबोधन में नरेन्द्र मोदी ने एक ऐतिहासिक प्रसंग का जिक्र किया। वे प्रधानमंत्री पद की शपथ (26 मई 2014) लेने की दो वर्ष बाद ही 2016 में सिहस्थ महाकुंभ पर उज्जैन आये थे। तभी उन्होंने सपना देखा और संकल्प लिया कि यवन आक्रांताओं द्वारा नष्ट किये गये इस तीर्थस्थल को मूलस्वरूप में लायेंगे।लोग स्मरण करते है जब प्रधानमंत्री पद संभालते ही मोदी ने संसद भवन के प्रवेश द्वार पर माथा टेका था। इस मंदिर महाकाल में भी गत सप्ताह उन्होंने साष्टांग दंडवत किया था। रूद्राक्ष की माला फेरी। तीन मिनट ध्यानस्थ हुये। परिक्रमा की। जब वे काशी से लोकसभा का नामांकन करने 2014 गये थे तो उनकी घोषणा थी कि उन्हें ”गंगा मां ने बुलाया है।”क्षिप्रा के बाद अब उन्हें यमुना पुकार रही है। मथुरा को भी यवन आक्रांताओं के चंगुल से मुक्त कराना है। कृष्ण अभी भी जेल में हैं। मस्जिद के अतिक्रमण से घिरे हैं। कृष्ण के प्रदेश गुजरात के ही मोदी हैं। अत: अब यमुना उन्हें आवाज दे रही है। ”त्राहिमाम” की पुकार से।

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