- धर्ममय रथ पर आरुढ़ हो धर्मयुद्ध करें
- संसार के विकारों को जीतने के लिए दृढ़ संकल्प जरूरी
- कर्म भूभि मे कर रहे हम सतत युद्व
- न दैन्यं न पलायनम्,न विरत होंगे न भगेंगे
- विजयदशमी -सत्य पर दृढ़ता पूर्व डटे रहें
बीकेमणि
नौदिन का पवित्र संकल्प व्रत रहकर देवी उपासना करुंगा। व्रत पूर्ण हुआ,हवन नवमी को करके ,कन्या पूजन फिर आज दशमी को पारण। यह व्रत,यह निष्ठा,यह संकल्प और संकल्प पूरा होने पर हृदय मे उपजा संतोष और भीतर से आनंद की अनुभूति,यही देवी दुर्गा का अनुग्रह है। यही वह अभेद्य किला है जो अपवित्र विचारों को दूर करता है। विकारों को समाप्त करता है। यही दैत्यों पर विजय है। ब्रह्मचर्य व्रत रहना भी तेजोमय बनाता है। तेजो दीप्त आनन हमे सात्विक वृत्ति मे ले आता है। अब रजोगुणी वृत्ति हो तो भी वह सत्वमय होगा। विजय दशमी को दस विकारों पर विजय का आत्माराम का उद्घोष महत्वपूर्ण है। आज से कर्म पथ पर फिर निकलेंगे और दिग्विजय प्राप्त करेंगे। यह विजय रथ ,वही धर्म रथ है ,जिसे श्री राम ने विभीषच से कहा था…….
‘सखा धर्ममय अस रथ जाके। जीति न सकहिं कतहुं रिपु ताके।
यहा अजय संसार रिपु जीति सकइ सो वीर।
जाके अस रथ होइ दृढ़,सुनहु सखा मतिधीर।।
धर्म मय रथ कैसा है?
सौरज धीरज तेहि रथ चाका।सत्यसील दृढ़ ध्वजा पताका।। बल विवेक दम परहित घोरे। छमा दया समता रजु जोरे।। ईस भजन सारथी सुजाना । विरति चर्म संतोष कृपाना।दान परसु बुधि सक्ति प्रचंडा।वर विज्ञान कठिन कोदंडा।। अमल अचल मन त्रोन समाना। सम दम नियम सिलीमुख नाना।। कवच अभेद विप्र गुरु पूजा। एहि सम विजय उपाय न दूजा।।…श्रीराम का वही अजेय स्वरूप स्मरण कर आज विजय मुहूर्त से फिर अपने कर्मभूमि पर धर्म युद्ध मे जुट जायं। चाहे खेती करें या नौकरीअथवा व्यापार, चाहे अध्यापन करें या सेना मे हो या पुलिस कर्मी हो या राजनेता …इस धर्म युद्ध मे हमें सफलता सुनिश्चित है।