भाई मेरे, मेरे अंदर से शत शत नमन,
केवल और केवल यह शत शत नमन,
का सादर आदर भाव निकल रहा है,
यह भी आपकी कविता का असर है।
आपको कदाचित संख्या भान नहीं होगा,
कितने मित्रों की तलाश पूर्ण किया होगा,
उपवन में सुंदर पुष्प खिलाते जाते हो,
उनकी ख़ुशबू सबको देकर ख़ुश होते हो।
शुभ संदेशों की टोकरी में नित प्रति,
नव पुष्प नूतन हार सजाते जाते हो,
हम सब की उसी बगीचे की नित प्रति
की चाहत से प्यास बुझाते रहते हो।
यही सुधीजन होने का बड़ा बड़प्पन है,
प्रतिरोज रोज़ कविता के पुष्प खिलाते हो,
कल्पना और भावों के अमृत जल से
रचनाओं को सिंचित करते रहते हो।
पर हम बीते कल को सोंच दुःखी रहते हैं,
आने वाले कल के लिए चिंतित रहते हैं,
पर सच्चाई तो यही है कि जो जीवन
वर्तमान में है वह बस इसी पल में है।
स्वास्थ्य यदि सबसे बड़ा उपहार है,
तो संतोष ही सबसे बड़ा धन भी है,
यही वफादारी सबसे बड़ा सबंध है,
आदित्य इसी में सारा संसार निहित है।